यात्रा - Swar Swatantra https://swarswatantra.in Latest News | Breaking News | Live News Mon, 21 Apr 2025 02:56:43 +0000 hi-IN hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 https://swarswatantra.in/wp-content/uploads/2021/06/swarswatantra-2-150x150.png यात्रा - Swar Swatantra https://swarswatantra.in 32 32 पर्यटकों का कौसानी के प्रति घटता रुझान https://swarswatantra.in/archives/10751?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25af%25e0%25a4%259f%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%258c%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a8%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0 https://swarswatantra.in/archives/10751#respond Mon, 21 Apr 2025 02:54:46 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10751 क्यों कम होने लगा कौसानी, बैजनाथ के प्रति पर्यटकों का रुझान ? यह सवाल अब कौसानी बैजनाथ के होटल व्यवसाइयों के लिए चिंता का सबब बन चुका है। विगत दो वर्षो में उत्तराखण्ड के धधकते वनों ने पर्यटन को प्रभावित किया है तो दूसरी ओर नैनीताल के कैंची धाम में बेतहाशा भीड़ और ट्रेफिक जाम ... Read more

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क्यों कम होने लगा कौसानी, बैजनाथ के प्रति पर्यटकों का रुझान ? यह सवाल अब कौसानी बैजनाथ के होटल व्यवसाइयों के लिए चिंता का सबब बन चुका है। विगत दो वर्षो में उत्तराखण्ड के धधकते वनों ने पर्यटन को प्रभावित किया है तो दूसरी ओर नैनीताल के कैंची धाम में बेतहाशा भीड़ और ट्रेफिक जाम की समस्या ने पर्यटकों का रूझान उत्तराखण्ड के अन्य पर्यटक स्थलों के प्रति कम किया है। अब पर्यटक कैंची धाम से मुक्तेश्वर और नैनीताल का रूख करने लगे हैं। कौसानी के व्यापारी और होटल कारोबारियों का मानना था कि कौसानी में शराब की दुकान खुलने से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा लेकिन जगह-जगह लगने वाले ट्रेफिक जाम ने पर्यटकों का कौसानी मोह भंग किया है। शराब की दुकानों के साथ सरकार को सड़क यातायात संबंधी मुद्दों पर भी ध्यान देना होगा। व्यापारी कहने लगें हैं कि कैंची धाम से वापस जा रहे हैं पर्यटक। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए क्या कर रहा है पर्यटन विभाग ?
अप्रैल मई में कौसानी और बैजनाथ पर्यटकों से गुलजार रहते थे। कोविड के बाद विगत दो सालों में कौसानी और बैजनाथ में पर्यटकों की आमद कम होने से होटल और लोकल व्यवसाई परेशान और चिंतित हैं। होटल एसोसियन और व्यापार संघ के जिलाध्यक्ष बबलू नेगी ने बताया कि कौसानी में पर्यटकों के लिए मनोरंजन के विकल्प होने चाहिए । यातायात को और सुगम बनाना होगा। कैंची धाम में लगातार जाम लगने से पर्यटक आगे का रुख करने से कतराते हैं। क्या सरकार के पास ट्रैफिक जाम से निपटने का कोई तरीका नहीं है ? इस वजह से कौसानी और बैजनाथ में पर्यटक नहीं पहुंच पा रहे हैं। होटल व्यवसाय चौपट हो गया है। हेली सेवा का लाभ पर्यटकों को मिले इसके लिए हैली पैड से कौसानी तक टैक्सी की सुविधा देनी चाहिए। बैजनाथ के व्यापारियों ने कहा कि बैजनाथ में संग्रहालय और शौचालय की व्यवस्था नहीं है, इस कारण पर्यटकों को ऐतिहासिक शोध से वंचित होना पड़ता है, शौचालय की सुविधा नहीं मिल पाती है। सरकार इस दिशा में जल्दी काम करेगी तो उसका असर पर्यटन पर पड़ेगा।
विपिन जोशी, गरुड़

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सामाजिक सरोकारों का प्रतीक कत्यूर महोत्सव https://swarswatantra.in/archives/10746?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%2595-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25a4 https://swarswatantra.in/archives/10746#respond Sun, 13 Apr 2025 02:44:45 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10746 कत्यूर महोत्सव क्यों ? यह सवाल सभी के लिए जरूरी होना चाहिए। समस्त विभाग क्यों तत्पर दिखते हैं इस महोत्सव के लिए ? कुछ दिनो से कौसानी महोत्सव पर भी लोगों के बयान शोसल मीडिया में दिखने लगे हैं। कोई महोत्सव किसी समाज के जीवन का प्रतीक या संकेत होता है या महोत्सव एक नया ... Read more

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कत्यूर महोत्सव क्यों ? यह सवाल सभी के लिए जरूरी होना चाहिए। समस्त विभाग क्यों तत्पर दिखते हैं इस महोत्सव के लिए ? कुछ दिनो से कौसानी महोत्सव पर भी लोगों के बयान शोसल मीडिया में दिखने लगे हैं। कोई महोत्सव किसी समाज के जीवन का प्रतीक या संकेत होता है या महोत्सव एक नया ट्रेन्ड है अपनी सांस्कृतिक पहचान को मंचीय तरीके से परोसने का। बदलते दौर में अब मेलों की शक्ल महोत्सवों में तब्दील होने लगी है। अब ग्रामीण परिवेश नगरीय संस्कृति में बदलने लगा है तो सांस्कृतिक स्वरूप और जीवन शैली में बदलाव आऐंगे ही। परंपरागत लोक को भी नए जमाने के ग्लैमर में पहॅुचने का हक तो है ही हम उसे रोक नहीं सकते। हमारे जीवन में बहुत से तनाव हैं और सुकून भी कम होने लगा है।
इन महोत्सवों के बहाने ही सही कुछ समय स्क्रीन स्को्रलिंग से तो राहत मिलती है। लोग अपनी जगह में बैठ कर मंचीय कार्यक्रमों का लुत्फ उठाते हैं। आसपास लगे स्टॉलों का अवलोकन करते हैं। सहरकारी योजनाओं की जानकारियों से ऑन द स्पॉट रूबरू होते हैं। दूर-दराज के मित्रों से मिलते हैं, कुछ नए दोस्त भी परिचय के दायरे में आते हैं। स्थानीय व्यापारियें को भी आर्थिक सबलता मिलती है। स्थानीय कलाकारों को मंच मिलता है, अपनी पहचान दिखाने का अवसर भी प्राप्त होता है। पारंपरिक मेलां को मेल मिलाप का माध्यम माना जाता था। तब साधन कम थे, सूचना तकनीकी का प्रभाव आधुनिक नहीं था। वाचिक परंपरा आधारित ज्ञान था। आज लोक जीवन की परिभाषा ही बदल गई है। एआई जैसे इंटरनेट टूल सबकी जेम में हैं। दुनियां तेजी से बदल रही है और बदल चुके हैं संस्कृति के वाहक मेले जो अब महोत्सवों के रूप में नजर आते हैं। बाजार आधारित व्यवस्था ने हमारे सोचने समझने पर भी नियंत्रण कर लिया है। ऐसे माहौल में आधुनिक महोत्सवों का क्या प्रभाव हमारे जन-जीवन में पड़ता है यह अध्ययन का विषय हो सकता है।
गरूड़ में नगर पंचायत बनने के बाद पहली बार कत्यूर महोत्सव का आयोजन हो रहा है। मौसम की बेरूखी भी महोत्सव में खलल डाल सकती है। भकुनखोला खेल मैदान में सरकारी विभागों के स्टॉल लगेंगे, खेल आयोजन, खाने पीने के स्टॉल भी होंगे। इस बार चर्खा और झूला मैदान के बाहर लगेगा। मुख्य सांस्कृतिक मंच खेल मैदान में लगेगा। कार्यक्रम में स्कूलों की सांस्कृति झांकी, उद्घाटन, वन विभाग का लेजर शो, दीपोत्सव, स्टार नाईट में माया उपाध्याय, कमला देवी, गोविन्द गोस्वामी, जितेन्द्र तोमकियाल प्रमुख होंगे। स्थानीय कलाकारों को भी मंच प्रस्तुति के अवसर मिलेंगे। मेंहदी, ऐपन, शकुनाखर गायन प्रतियोगता को भी इस बार महोत्सव में स्थान मिला है।
उद्घाटन कार्यक्रम में विधायक बागेश्वर, विधायक कपकोट, केन्द्रीय मंत्री, दर्जा प्राप्त मंत्री, एसडीएम गरूड़, डीएम बागेश्वर, तहसीलदार गरूड़, नगर पंचायत अध्यक्ष गरूड़, जिला पर्यटन अधिकारी, कत्यूर महोत्सव समिती के सभी सदस्य, समस्त पत्रकार बंधु, महिला समूह, समस्त नगर पंचायत सभासद गरूड़, समस्त सरकारी विभाग एवं नागरिक संगठन के सदस्य शामिल होंगे।

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आग का तांडव हर ओर सिर्फ धुँआ : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10741?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2586%25e0%25a4%2597-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25a4%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25a1%25e0%25a4%25b5-%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%2593%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25ab-%25e0%25a4%25a7%25e0%25a5%2581%25e0%25a4%2581 https://swarswatantra.in/archives/10741#respond Tue, 08 Apr 2025 14:40:50 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10741 बागेश्वर जनपद के जंगलों में नहीं थम रहा आग का तांडव. जनपद के अलग-अलग क्षेत्रों के जंगलों में लगातार भीषण आग लगने से जहा एक ओर वन संपदा को भारी नुकसान हो रहा है, साथ ही आग लगने से चारों ओर धुवां छा गया है, जिससे कौसानी से हिमालय का दीदार करने आए पर्यटकों को ... Read more

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बागेश्वर जनपद के जंगलों में नहीं थम रहा आग का तांडव. जनपद के अलग-अलग क्षेत्रों के जंगलों में लगातार भीषण आग लगने से जहा एक ओर वन संपदा को भारी नुकसान हो रहा है, साथ ही आग लगने से चारों ओर धुवां छा गया है, जिससे कौसानी से हिमालय का दीदार करने आए पर्यटकों को हिमालय नहीं दिखने से पर्यटक मायूस नजर आ रहे हैं. होटल व्यवसायी भी निराश हैं. व्यवसायियों का कहना है कि कौसानी में पर्यटक अच्छे मौसम व हिमालय के दीदार करने को पहुंचता है, ऐसे में चारों ओर आग के धुंए ने विजिबिलिटी कम कर दी है और हिमालय के दीदार नहीं होने से कौसानी आए पर्यटक मायूस हो लौटने को मजबूर हैं.
सामाजिक कार्यकर्त्ता,गिरीश कोरंगा ने बताया कि इस बार समय से पहले ही जंगलों में भीषण आग लग गयी हैं,जंगलों में आग की वजह से यहां आए पर्यटक मायूस लौट रहे हैं क्योंकि उन्हें हिमालय का दीदार नहीं हो पा रहा है, उन्होंने बताया की चारों ओर अभी से धुँवा ही धुँवा फैल गया हैं, जिससे बुजर्गो को भी दिक्कतें हो रही हैं. दमे के मरीजों के लिए यह सीजन मुश्किल भरा है. उन्होंने वन विभाग से आग पर नियंत्रण कर व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए कहा है.
उप जिलाधिकारी गरुड़ जीतेन्द्र वर्मा ने बताया की पिछले वर्ष के फायर अनुभव के आधार पर हमने इस वर्ष सर्दियों से ही दावानल की घटनाओं की रोकथाम हेतु योजना बनाई हैं, कई जगहों पर शिविर भी लगाए गए हैं, इन शिविरों में एसडीआएफ, फायर फ़ोर्स, पुलिस विभाग,राजस्व विभाग स्थानीय नागरिक संगठन शामिल रहे, गावों में भी शिविर लगाने की योजना है. उक्जात संदर्गभ में जागरूकता अभियान भी चलाये जा रहे हैँ. कृषि भूमि तथा वन भूमि में लगाई जाने वाली आग वातावरण के लिए हानिकारक हैं इस बात की जानकारी लोगो को दी जा रही हैं. वर्तमान में तीन आग की घटनाये सेटेलाइट से रिकार्ड हुई हैं, जिले में 32 फायर क्रू स्टेशन बनाये गए हैँ, जिसमे प्रत्येक क्रू स्टेशन में 4 फायर वाचार नियुक्त हैँ, आग लगाने वालों व आग की जानकारी देने वालों की सूचना देने वालों को इनाम भी दिया जायेगा .उन्होंने स्थानीय लोगो अपील की हैं की इस तरह की घटनाओं से बचें, तांकी पर्यटक यहाँ आकर प्राकृतिक छटा का आनंद लें व अच्छा संदेश लेकर जाएँ.
गड़खेत रेंज के वन श्रेत्र अधिकारी केवलानंद पांडे ने लोगों से अपील की है कि फायर सीजन में अपनी नाप भूमि हो या जंगलात की भूमि उसे आग से बचाने में विभाग की मदद करें। केवलानंद पांडे ने जानकारी दी कि उन्होंने अभी तक 38 खूंखार जानवरों को पिंजड़े में कैद किया है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति और वन्य जीव के प्रति वन विभाग अपनी टीम के साथ हमेशा तत्पर है।
पांडे ने बताया कि आम तौर पर तीन प्रकार की आग जंगलों में लगती है। जो आग के व्यवहार और जंगल की संरचना पर आधारित होती हैं।
सतही आग , यह आग जंगल की सतह पर फैलती है और मुख्य रूप से सूखी घास, पत्तियाँ, टहनियाँ और छोटे पौधों को जलाती है। यह सबसे आम प्रकार की जंगल की आग है और इसे नियंत्रित करना अपेक्षाकृत आसान होता है।
मुकुट आग ,यह आग पेड़ों की चोटियों (मुकुट) तक पहुँचती है और तेजी से फैलती है, खासकर जब हवा तेज होती है। यह बहुत तीव्र और खतरनाक होती है, क्योंकि यह बड़े पैमाने पर पेड़ों को नष्ट कर देती है।
भूमिगत आग , यह आग जमीन के नीचे जलती है, जहाँ जैविक पदार्थ जैसे पीट या जड़ें मौजूद होती हैं।यह धीरे-धीरे जलती है और लंबे समय तक सुलगती रह सकती है, जिससे इसे बुझाना मुश्किल होता है।
बागेश्वर के वनों में फिलहादल सतही आग ज्यादा फैल रही है। समुदाय और विभाग के समन्वय से इस प्रकार की आग को नियंत्रित किया जा सकता है।

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पानी का घालमेल : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10732?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a8%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%2598%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25b2-%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%259c%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25b6%25e0%25a5%2580 https://swarswatantra.in/archives/10732#respond Sun, 06 Apr 2025 07:48:59 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10732 पानी का घालमेल : भारत सरकार और उत्तराखण्ड सरकार की बहुउद्देशीय योजना थी जल जीवन मिशन याने घर-घर नल। बस सिर्फ नल क्योकी जल या तो गायब है या फिर तुर-तुर करके रेंगता हुआ किसी स्टैण्ड पोस्ट तक पहॅुच भी गया तो गनीमत समझो। किस्सा है वैसे तो संपूर्ण उत्तराखण्ड का लेकिन एक गॉव से ... Read more

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पानी का घालमेल :
भारत सरकार और उत्तराखण्ड सरकार की बहुउद्देशीय योजना थी जल जीवन मिशन याने घर-घर नल। बस सिर्फ नल क्योकी जल या तो गायब है या फिर तुर-तुर करके रेंगता हुआ किसी स्टैण्ड पोस्ट तक पहॅुच भी गया तो गनीमत समझो। किस्सा है वैसे तो संपूर्ण उत्तराखण्ड का लेकिन एक गॉव से समझते हैं जल जीवन मिशन के घोटाले को विस्तार से। दो वर्ष पूर्व तैलीहाट के ग्रामीणों के अथक प्रयासों से 65 लाख की परियोजना पर काम शुरू हुआ। नदी के किनारे लिफ्ट योजना के तहत 260 मीटर गहरी ड्रील कराई गई 13 पाईप लगने थे ग्रामीण बताते हैं कि 260 मीटर गहरा डी्रल होना था लेकिन सिर्फ 35 मीटर डी्रल किया गया और काफी राजैनतिक दबाव के बाद ग्रामीणों के हो हल्ला करने के बाद 5 अप्रैल को पेयजल योजना को पानी का डिस्चार्ज नापने के लिए दो घंटा चलाया गया। पानी का डिस्चार्ज स्टोरेज टैंक पर नापना था, हालांकी स्टोरेज टैंक अभी बना नहीं है। पानी का डिस्चार्ज बहुत कम है 4 सेकेण्ड में 1 लीटर पानी भर रहा है। स्टोरेज टैंक की क्षमता है 27500 लीटर इस हिसाब से टैंक को लगभग 27 घंटे लगेंगे भरने में यदि पानी लगातार चालू रहा तो।
दो साल से जल जीवन मिशन की योजना में अटक-अटक कर निर्माण कार्य चल रहा है। ग्रामीणों ने मनरेगा स्कीम में जो टैंक बनाया था अब उसे स्टोरेज टैंक बनाया जा रहा है। रेता मिट्टी में तब्दील हो रहा है विभागीय एक्शन और जेई कहते हैं कि एक महीने में टैंक बन कर तैयार हो जाएगा। तब तक इस सूखे सीजन में ग्रामीण पानी के संघर्ष से जूझते रहेंगे। इस पूरे किस्से में कौन दोषी है। योजना का मुख्य ठेकेदार कहता है कि विभाग ने उसे भुगतान नहीं किया है, विभाग कहता है कि कार्य संतोषजनक नहीं है तो भुगतान में विलंब हो रहा है। स्वयं मैंने तीन शिकायतें जल जीवन मिशन की उक्त योजना के खिलाफ तहसील प्रशासन को दी हैं। उस पर भी कोई लिखित जवाब नहीं आया है। मुख्य मंत्री पोर्टल में भी मामला लगाया है। साथ में सूचना के अधिकार से जानकारी मांगी है। ग्राम वासियों का एक ही सवाल है कि सरकार ने 65 लाख खर्च किए हैं तो उसका समुचित लाभ ग्रामीणों को मिलना चाहिए। सरकारी योजनाओं का बुरा हाल तब होता है जब जनता योजना के प्रति जागरूक न हो। समय-समय पर निगरानी करने और विभाग से जानकारी लेने के बाद भी परियोजना का हाल संतोषजनक नहीं है तो स्थिति की गंभीरता जग जाहिर है। उक्त प्रकरण पर ग्रामीणों ने दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री शिव सिंह बिष्ट से भी मुलाकात की मंत्री महोदय ने फोन पर एक्शन को निर्देश देते हुए कहा कि एक सप्ताह में पानी की लाइन शुरू नहीं हुई तो अग्रिम कार्यवाही की जाएगी। एक्शन साहब अब हरकत में है। पानी तो चढ़ चुका है लेकिन इस चढ़ाई में पानी का दम फूल गया है साथ में योजना को भी दमा न हो जाए। इस गंभीर मामले पर विभाग तुरंत कार्यवाही करे, पाइप लाइन की मुख्य स्रोत पर गहराई की जांच डीपीआर के आधार पर हो।

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शराब संस्कृति पर साहित्यिक चर्चा https://swarswatantra.in/archives/10729?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b6%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25ac-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25b8%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2583%25e0%25a4%25a4%25e0%25a4%25bf-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25af https://swarswatantra.in/archives/10729#respond Sun, 06 Apr 2025 06:59:40 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10729 पंत विथिका में शराब की संस्कृति पर साहित्यिक चर्चा. उत्तराखंड के कौसानी में हाल ही में जो कुछ हुआ, उसने साहित्यप्रेमियों और संस्कृति के रखवालों को झकझोर कर रख दिया है. प्रकृति के कवि, युगवाणी के शिल्पी और मानवतावाद के पुरोधा सुमित्रानंदन पंत की स्मृति में बनी पंत विथिका, जहां शब्दों में सौंदर्य, संवेदना और ... Read more

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पंत विथिका में शराब की संस्कृति पर साहित्यिक चर्चा.
उत्तराखंड के कौसानी में हाल ही में जो कुछ हुआ, उसने साहित्यप्रेमियों और संस्कृति के रखवालों को झकझोर कर रख दिया है. प्रकृति के कवि, युगवाणी के शिल्पी और मानवतावाद के पुरोधा सुमित्रानंदन पंत की स्मृति में बनी पंत विथिका, जहां शब्दों में सौंदर्य, संवेदना और शांति का वास होता है, वहां शराब की दुकान के समर्थन में एक बैठक का आयोजन, न केवल अप्रत्याशित है, बल्कि चिंताजनक और शर्मनाक भी है.
सुमित्रानंदन पंत न केवल छायावादी युग के स्तंभ थे, बल्कि वे आधुनिक भारत की सांस्कृतिक आत्मा के प्रतीक रहे. कौसानी, जो उनकी जन्मभूमि है, वर्षों से साहित्यप्रेमियों और पर्यटकों के लिए एक तीर्थ समान रहा है. ऐसे स्थान पर किसी वाणिज्यिक और विवादित विषय जैसे शराब की दुकान खोलने के पक्ष में बैठक का होना, एक प्रकार से उस पवित्र स्थल की आत्मा को आहत करने जैसा ही है. शराब का मुद्दा सामाजिक, स्वास्थ्य और नैतिक दृष्टिकोण से हमेशा संवेदनशील रहा है। जिस स्थल पर राष्ट्र और प्रकृति को समर्पित कविताएं गूंजी हों, वहां ऐसी चर्चा का होना न केवल अनुचित है, बल्कि युवाओं के लिए भी गलत संदेश देता है. पंतजी की कविता में जिस निर्मलता और आत्मिक शुद्धता की बात थी, उसके विपरित शराब की दुकान खोले जाने की प्रबल भावना और ललक इस बैठक के लिए सहमति प्रदान करने वाले पंत विथिका के संरक्षक को जरूर दिखाई दे रही होगी तभी तो उन्होंने आनन—फानन विथिका के आंगन के साथ ही भीतरी मुख्य कक्ष भी तुरंत ही खोल दिया. अब पंत विथिका के संरक्षक के सामने भी तो किंकर्तव्य विमूढ़ वाली स्थिति हो गई होगी.
दबी आवाज में कुछ लोगों का कहना है कि पर्यटन और विकास का मार्ग स्वच्छ संस्कृति से होकर गुजरता है, न कि नशे के प्रोत्साहन से. पंत विथिका जैसे स्थल का प्रयोग यदि सांस्कृतिक जागरूकता, साहित्यिक गोष्ठियों और शिक्षा के उद्देश्यों के बजाय शराब की दुकान के समर्थन जैसे विषयों के लिए होने लगे, तो यह पूरे समाज के लिए एक चेतावनी के साथ ही कलंक हुआ.
क्या कभी इन सवालों के उत्तर मिल पाएंगे. क्या यह निर्णय स्थान की गरिमा और उसकी ऐतिहासिक-सांस्कृतिक पहचान की अवहेलना नहीं है? क्या हम अपने साहित्यिक पूर्वजों के योगदान को इस तरह तुच्छ मुद्दों में घसीट सकते हैं? क्या विकास की परिभाषा अब सिर्फ राजस्व और वाणिज्य बनकर रह गई है? कौसानी क्षेत्र में अवैध शराब किसके संरक्षण में फल फूल रहा होगा? वैसे सवाल तो ये भी उठता है कि, इस पर खबरनवीसों की नजर क्योंकर चूक गई होगी..??
आज जब हम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, तब यह आवश्यक है कि हम अपनी जड़ों को न भूलें. सुमित्रानंदन पंत केवल एक कवि नहीं थे, वे एक युगद्रष्टा थे, जिनकी संवेदना आज भी कौसानी की हवाओं में जीवित है. उनका अपमान, केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरी सांस्कृतिक चेतना का अपमान है.
कौसानी, जहां सूरज की पहली किरण हिमालय की चोटियों पर पड़ती है, वहीं कहीं कोने में शराब की अवैध नदी भी बहती है. और हां, ये नदी बिना बारिश के भी कभी सूखती नहीं है.
माना जाता है कि यहां की जलवायु अवैध शराब बेचने के लिए बहुत अनुकूल है. पर असली कमाल तो उस छाया का है जो इसे संरक्षण देती है. अब वो छाया कौन है? कोई पेड़ नहीं, साहब… वो तो कुछ छायादार नीति नियंता वाले बड़े लोग हुऐ.
पुलिस का जबाव, यहां सब ठीक है.
प्रशासन से पूछो तो जबाव मिलेगा, ‘जांच करेंगे’
जनप्रतिनिधि से पूछो तो वो कहे, ‘हमें विश्वास है कि सब ठीक चल रहा है.’
और शराब माफिया से पूछो तो…?
वो तो कहे, ‘हमारे ग्राहक संतुष्ट हैं, धन्यवाद.’
लोग कहते हैं कौसानी स्वर्ग है. हाँ, बस यहां देवता की जगह शराब ने लेनी शुरू कर दी है. अब कोई शिकायत करे तो वही पुरानी बात, ‘शराब पीना अपराध नहीं, अवैध बेचना अपराध है. और वो तो…’ऊपर’ वाले देख ही लेंगे.’
अफसोस..! नीति-नियंताओं के कानों में सिर्फ शराब समर्थक और शराबियों की मधुर आवाजें ही गूंजायमान हो रही हैं. जनता की आवाजें तो हमेशा से ही नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह ही हुई जो कभी भी नीति-नियंताओं के कानों तक पहुंच ही नही पाती हैं. वैसे भी उन्हें ये बेसूरे राग तो बिल्कुल भी पसंद नही हुए.
पत्रकार केशव भट्ट की रिपोर्ट

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सवाल आस्था का है : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10722?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b2-%25e0%25a4%2586%25e0%25a4%25b8%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25a5%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2588-%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%259c%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25b6 https://swarswatantra.in/archives/10722#respond Sun, 06 Apr 2025 01:57:33 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10722 सवाल आस्था का है उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध शक्ति पीठ कोट भ्रामरी में चैत की नवरात्री में लगता है दियारी मेला। संतान प्राप्ति की चाह में महिलाएं जलते दिए को हाथ में लेकर रात भर खड़ी रहती हैं। यह एक कठिन तपस्या जैसा ही है। मंदिर के अंदर बहुत से दिए जलते हैं और कार्बन डॉइआक्साइड ... Read more

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सवाल आस्था का है
उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध शक्ति पीठ कोट भ्रामरी में चैत की नवरात्री में लगता है दियारी मेला। संतान प्राप्ति की चाह में महिलाएं जलते दिए को हाथ में लेकर रात भर खड़ी रहती हैं। यह एक कठिन तपस्या जैसा ही है। मंदिर के अंदर बहुत से दिए जलते हैं और कार्बन डॉइआक्साइड बनती है। आम तौर पर उस स्थान में आम जन दस मिनट नहीं ठहर सकता लेकिन संतान प्राप्ति की चाह में महिलाएं रात भर जलते दिए को हाथ में लेकर माता रानी का ध्यान करती हैं। मंदिर के प्रांगण में अन्य महिलाएं रात भर जगराता करती हैं भजन संध्या का आयोजन होता है। भक्तों की ओर से भण्डारे की व्यवस्था भी की जाती है। अगाध आस्था के बीच कोई यह सवाल नहीं करता कि रात भर दिया हाथ में लेकर खड़े रहने से संतान प्राप्ति कैसे हो जाएगी। जहां मेडिकल सांइस हार गया वहीं से शुरू होती है आस्था की जीत। यह बिल्कुल वैसा ही है कि मानो तो देवता न मानो तो पाषाण। मन की धारणाएं और प्रबल विश्वास ही आस्था है इसी से जन्म लेती है मान्यताएं। ऐसा नहीं कि इस मान्यता को यूं ही मान लिया जाए। क्षेत्र की उन महिलाओं से बात की जिन्होने दियारी व्रत लिया और उनको निश्चित समय में संतान प्राप्ति हुई। गरूड़ क्षेत्र में ही ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे या कहें कि प्रत्येक गॉव में ऐसे उदाहरण हैं। लेकिन व्यक्तिगत सूचनाएं होने की वजह से नाम सार्वजनिक नहीं किए जाते। दियारी मेले में एक मित्र मिले उन्होने कहा कि शादी के सात साल बाद दियारी मेले में व्रत लेने के बाद उनको संतान प्राप्ति हुई। यही वजह है कि दियारी मेले में निःसंतान दंपती दूर-दूर से यहां आते हैं और व्रत अनुष्ठान करने के बाद संतान प्राप्ति का सुख भोगते हैं।
कुमॉउ ही नहीं वरन गढ़वाल क्षेत्र से भी भक्त कोट भ्रामरी मंदिर में दियारी व्रत लेने आते हैं। इस व्रत के दौरान 24 घंटे तक बिना पानी पिए जलता दिया हाथ में लेकर मां का ध्यान लगाना होता है। व्रत वाली महिलाओं के साथ कोई एक महिला उनके परिवार से होती है जो रात भर दिए में तेल डालती है, दिया 24 घंटे तक अखण्ड रहना चाहिए यह महत्वूर्प शर्त होती है। दियारी व्रत संपन्न होने के बाद विधि विधान से पूजा पाठ करती है और व्रत संपन्न होता है। कोट भ्रामरी का दियारी मेला उत्तराखण्ड में प्रसिद्ध है। आस्था और विश्वास से हजारों निःसंतान दंपतियों को संतान का सुख मिला है। कुछ लोग इसे पुत्र प्राप्ति व्रत से भी प्रचारित करते हैं, यह शोध का विषय हो सकता है लेकिन संतान प्राप्ति के लिए दंपती यहां सदियों से जुटते रहें हैं। चैत मॉह में कोट भा्रमरी का आभा मंडल आस्था से परिपूर्ण और माता के जयकारों से गूंजायमान रहता है।

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कब खुलेगा बैजनाथ संग्रहालय : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10704?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25ac-%25e0%25a4%2596%25e0%25a5%2581%25e0%25a4%25b2%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%2597%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25ac%25e0%25a5%2588%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25a8%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a5-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%2597%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25be https://swarswatantra.in/archives/10704#respond Thu, 03 Apr 2025 01:18:59 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10704 बैजनाथ संग्रहालय, जो 1983 से बंद पड़ा है और जिसमें सातवीं सदी की 108 ऐतिहासिक मूर्तियां संरक्षित हैं, के खुलने की मांग लंबे समय से उठती रही है। हाल ही में कत्यूर महोत्सव की समीक्षा बैठक में इस मुद्दे को फिर से जोर-शोर से उठाया गया। हाल में गुमानी पंत पुरस्कार से सम्मानित गोपाल दत्त ... Read more

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बैजनाथ संग्रहालय, जो 1983 से बंद पड़ा है और जिसमें सातवीं सदी की 108 ऐतिहासिक मूर्तियां संरक्षित हैं, के खुलने की मांग लंबे समय से उठती रही है। हाल ही में कत्यूर महोत्सव की समीक्षा बैठक में इस मुद्दे को फिर से जोर-शोर से उठाया गया। हाल में गुमानी पंत पुरस्कार से सम्मानित गोपाल दत्त भट्ट ने कहा संग्रहालय के खुलने से न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि राजस्व में वृद्धि होगी और कत्यूरी काल के समृद्ध इतिहास, संस्कृति व आस्था का प्रसार भी संभव हो सकेगा।
साहित्यकार मोहन जोशी ने कहा कि गरुड़ में हेली सेवा शुरू होने से पर्यटकों का बैजनाथ धाम तक पहुंच आसान हुआ है, जिससे पर्यटकों की संख्या में इजाफा होने की संभावना बढ़ी है। ऐसे में संग्रहालय का बंद रहना एक बड़ा अवरोध हो सकता है।
पूर्व विधायक ललित फर्सवान ने इस मांग का पुरजोर समर्थन किया है। उनका कहना है कि बैजनाथ धाम, जो भारत और वैश्विक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, कत्यूरी शासन के एक हजार साल के इतिहास को अपने में समेटे हुए है। इस क्षेत्र के मंदिर, जो कत्यूरी काल में बने, पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं।
हालांकि, संग्रहालय के ताले कब खुलेंगे, इस सवाल का अभी कोई ठोस जवाब नहीं मिल सका है। यह मामला स्थानीय प्रशासन और संबंधित अधिकारियों के समक्ष विचाराधीन है। संग्रहालय को खोलने के लिए सरकारी स्तर पर योजना, बजट और संरक्षण कार्यों की जरूरत होगी, जिसमें समय लग सकता है। फिर भी, जनता की मांग और कत्यूर महोत्सव की समीक्षा बैठक में उठे स्वरों से यह स्पष्ट है कि इस दिशा में जल्द कदम उठाने की आवश्यकता है। संग्रहालय के खुलने से न सिर्फ बैजनाथ की धरोहर को नई पहचान मिलेगी, बल्कि यह क्षेत्र पर्यटन मानचित्र पर और भी प्रमुखता से उभरेगा।
फिलहाल, इस बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन जन दबाव और समर्थन को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि कत्यूर महोत्सव में उसे जनता के लिए खोला जाए।
विपिन जोशी
संपादक,स्वर स्वतंत्र

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कौसानी में शराब विरोध प्रदर्शन https://swarswatantra.in/archives/10699?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%258c%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a8%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%25b6%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25ac-%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25a7-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0 https://swarswatantra.in/archives/10699#respond Sat, 29 Mar 2025 15:37:16 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10699 विपिन जोशी कौसानी में शराब विरोध प्रदर्शन: महिलाओं के आंदोलन का स्थानीय लोगों ने किया विरोध, कांग्रेस का समर्थन कौसानी, 29 मार्च 2025: उत्तराखंड के कौसानी में शराब के खिलाफ चल रहा विरोध प्रदर्शन उस समय तनावपूर्ण हो गया, जब शराब विरोधी प्रदर्शन कर रही महिलाओं का कुछ स्थानीय लोगों ने विरोध किया। आसपास के ... Read more

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विपिन जोशी
कौसानी में शराब विरोध प्रदर्शन: महिलाओं के आंदोलन का स्थानीय लोगों ने किया विरोध, कांग्रेस का समर्थन
कौसानी, 29 मार्च 2025: उत्तराखंड के कौसानी में शराब के खिलाफ चल रहा विरोध प्रदर्शन उस समय तनावपूर्ण हो गया, जब शराब विरोधी प्रदर्शन कर रही महिलाओं का कुछ स्थानीय लोगों ने विरोध किया। आसपास के गांवों से आई 20 महिलाओं सहित कुल 70 प्रदर्शनकारी महिलाएं नारे लगाते हुए कौसानी तिराहे पर पहुंची थीं। इस दौरान कुछ लोग शराब की दुकान के पक्ष में बोलते हुए प्रदर्शनकारी महिलाओं से उलझ पड़े और कुतर्क करने लगे।

प्रदर्शन में शामिल प्रमुख महिलाओं में हीरा रावत, प्रभा डोसाद, बबली तिवारी, गंगा दोसाद, भावना तिवारी, प्रेमा थापा और देवकी देवी शामिल थीं, जो सभी कौसानी की रहने वाली हैं। लक्ष्मी आश्रम की सदस्या शोभा बिष्ट ने बताया कि प्रदर्शनकारी महिलाओं और आश्रम, दोनों का कुछ स्थानीय लोगों ने विरोध किया। उन्होंने कहा, “हम शराब के खिलाफ लंबे समय से आवाज उठा रहे हैं, लेकिन कुछ लोग इसे नजरअंदाज कर हमारे प्रयासों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।”

मामला गर्माया, कांग्रेस का समर्थन
शराब को लेकर कौसानी में स्थिति तल्ख होती जा रही है। इस बीच, कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे पर अपनी सक्रियता दिखाने का फैसला किया है। पूर्व विधायक ललित फर्सवान ने जानकारी दी कि कांग्रेस पार्टी कौसानी में शराब विरोध के समर्थन में उपवास पर बैठेगी और लक्ष्मी आश्रम के आंदोलन को मजबूती प्रदान करेगी। उन्होंने कहा, “शराब के खिलाफ यह लड़ाई सामाजिक न्याय और क्षेत्र की शांति के लिए जरूरी है। हम आश्रम और स्थानीय महिलाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।”

प्रदर्शन की पृष्ठभूमि
कौसानी में शराब की दुकानों के खिलाफ विरोध का इतिहास पुराना है। लक्ष्मी आश्रम और स्थानीय महिलाएं लंबे समय से इस मुद्दे पर आंदोलनरत हैं, उनका मानना है कि शराब की उपलब्धता से क्षेत्र में नशे की लत और सामाजिक समस्याएं बढ़ रही हैं। आज का प्रदर्शन भी इसी कड़ी का हिस्सा था, लेकिन स्थानीय स्तर पर मिला विरोध इस आंदोलन के लिए नई चुनौती बनकर उभरा है।

स्थानीय प्रशासन ने अभी तक इस मामले में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह प्रदर्शन किस दिशा में बढ़ता है और क्या कांग्रेस का समर्थन इस आंदोलन को नई ताकत दे पाता है।

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कौसानी में बढ़ने लगी रार शराब पर संग्राम https://swarswatantra.in/archives/10675?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2586%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25a6%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%25a8%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%25b6%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25ac-%25e0%25a4%2595 https://swarswatantra.in/archives/10675#respond Fri, 28 Mar 2025 03:19:03 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10675 कौसानी में बढ़ने लगी रार शराब पर संग्राम : आमने सामने व्यापार संघ और लक्ष्मी आश्रम

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कौसानी में बढ़ने लगी रार शराब पर संग्राम : आमने सामने व्यापार संघ और लक्ष्मी आश्रम
विपिन जोशी, कौसानी
आंदोलनों की जमीन पर शराब की दुकान खुलना अच्छे संकेत नहीं हैं। साहित्यकार प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मस्थली और महात्मा गांधी की साधना स्थली के रूप में कौसानी को जाना जाता है। आजादी के बाद आज तक कौसानी में शराब की दुकान खोलने के खूब प्रयास सरकार द्वारा किए गए लेकिन लक्ष्मी आश्रम और स्थानीय समुदाय की जागरूकता और विरोध के सामने हर बार सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा। परन्तु अब 2025 में स्थितियां बिल्कुल अलग हैं लोकल व्यापारियों ने सरकारी शराब की दुकान खोलने के पक्ष में एसडीएम को ज्ञापन दिया है। स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि कौसानी के लगभग हर ढाबे में, होटल में पर्यटकों को और लोकल लोगों को शराब परोसी जाती है, अवैध रूप से मंहगी दामों में शराब बेची जाती है। यदि दुकान खुलेगी तो कम कीमतों पर वैध शराब लोगों को मुहैया होगी, शराब की तस्करी पर भी लगाम लगेगी। ये है व्यापार संघ का पक्ष।
लक्ष्मी आश्रम विगत सात दशक से कौसानी में बालिका शिक्षा और गांधी विचार पर सघन कार्य कर रहा है। पूर्व में मिथ कैथरीन सरला बहन और वर्तमान में राधा भट् के नेतृत्व में लक्ष्मी आश्रम ने देश भर में रचनात्मक शिक्षा और जन आंदोलनों पर खूब काम किया है। चंडी प्रसाद भट्, नीमा वैष्णव, सदन मिश्रा, विमला दीदी, राजीव लाचन शाह, पदमश्री शेखर पाठक, कमला बहन, बंसती बहन जैसे दर्जनों सर्वोदयी कार्यकर्ताओं का जुड़ाव लक्ष्मी आश्रम से रहा है। राधा भट् 90 की उम्र में भी सामाजिक मुद्दों के लिए मुखरता से प्रस्तुत हैं। राधा भट्ट 1970 में पौड़ी जेल में रही। नशा नहीं रोजगार दो, चिपको आंदोलन, टिहरी बांध आंदोलन, गरूड़ का कन्धार शराब विरोधी आंदोलन, नदी बचाओ अभियान जैसे कई रचनात्मक आंदोलनों में लक्ष्मी आश्रम की महिती भूमिका रही है। राधा भट्ट कहती हैं कि चाहे जो हो जाए वे कौसानी में शराब की दुकान नहीं खुलने देंगे। कौसानी को आध्यात्मिक और प्राकृतिक शांति के लिए जाना जाता है। शराब आएगी तो अशांती लाऐगी। पर्यटक अपनी रूटीन जिन्दगी में सुकून के पल ढूढ़ने आते हैं उनको शराब परोसना यहां की स्थानीय जनता का और गांधी समेत सुमित्रानंनदन पंत की साहित्यक थाती का भी अपनान है।
लक्ष्मी आश्रम अहिंसक सत्याग्रह के साथ कौसानी में आंदोलन जारी रखेगा। अभी तो जुलूस और प्रदर्शन के माध्यम से हमने एक संकेत मात्र दिया है। यदि सरकार नहीं चेती तो प्रदर्शन और मुखर होगा। इस संबंध में आश्रम ने जिलाधिकारी अल्मोड़ा को भी ज्ञापन दिया है। आज भले ही स्थानीय व्यापारी अपने मुनाफे के लिए शराब की दुकान का समर्थन कर रहे हों लेकिन दीर्घकालिक परिणाम अच्छे नहीं होंगे। कौसानी की बची खुची शांती व्यवस्था भंग होगी और महिलाओं और बच्चों को इसका दंश झेलना होगा। व्यापारी रोजगार सृजन के नए विचार और प्यान लेकन सरकार के प्रतिनिधियों के पास क्यों नहीं जाते ? सरकार की तमाम योजनाएं हैं जो रिवर्स पलायन और स्वरोजगार के क्षेत्र में मदद करती हैं। क्या शराब ही एक मात्र विकल्प है जिससे मार्केट में चहल-पहल बढ़ेगी ? इस सवालों पर सोचने की आवश्यकता है। प्रशासन को सघन अभियान चलाना चाहिए और शराब परोसने वाले होटलों और रेस्तरां में छापे मारी करनी चाहिए। पता नहीं प्रशासन क्यों मूंक दर्शक बना हुआ है। लक्ष्मी आश्रम प्रशासन से मांग करता है कि कौसानी में अवैध शराब पर शिकंजा कसे। किसी भी प्रकार से कौसानी में शराब स्वीकार्य नहीं होगी वह चाहे किसी भी रूप में हो।
उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध साहित्यकार गोपाल दत्त भट्ट ने कौसानी में शराब की दुकान खुलने पर रोष प्रकट करते हुए कहा कि सरकार कौसानी को संवारने के लिए क्या कर रही है ? अनासक्ति आश्रम यहां है, पंथ वीथिका यहां पर है, लक्ष्मी आश्रम सक्रीय तौर पर जन मुद्दों के लिए खड़ा रहाता है। शराब से भी जरूरी मुद्दे राह देख रहे हैं। पेयजल की समस्या है, स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत है शराब की दुकान की नहीं। इसलिए सरकार को तुरंत अपना फैसला वापस लेना चाहिए। इस मसले पर सर्वोदयी संस्थाओं को स्थानीय जनता को साथ में लेकर सत्याग्रह करना होगा।

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रोजी-रोटी की तलाश में संघर्षरत चेहरे https://swarswatantra.in/archives/10663?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%259c%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%259f%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%25a4%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b6-%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%2582 https://swarswatantra.in/archives/10663#respond Tue, 18 Mar 2025 01:44:33 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10663 विमला देवी जयपुर, राजस्थान राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित हवा महल, अपनी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है. इसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते रहते हैं, जिसकी वजह से यह पूरा इलाका हमेशा गुलज़ार रहता है. पर्यटकों की वजह से यहां की व्यापारिक गतिविधियां भी खूब रहती हैं. जिससे बड़ी ... Read more

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विमला देवी
जयपुर, राजस्थान

राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित हवा महल, अपनी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है. इसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते रहते हैं, जिसकी वजह से यह पूरा इलाका हमेशा गुलज़ार रहता है. पर्यटकों की वजह से यहां की व्यापारिक गतिविधियां भी खूब रहती हैं. जिससे बड़ी संख्या में महिलाओं और पुरुषों को रोज़गार हासिल होता है. लेकिन कुछ महिलाएं और पुरुष ऐसे भी हैं जो अपनी आजीविका के लिए यहां रेहड़ी-पटरी पर दुकान लगाते हैं, संघर्ष करते हैं और अपनी मेहनत के बलबूते पर परिवार के लिए दो वक़्त की रोटी की व्यवस्था करते हैं. अस्थाई दुकान होने की वजह से इन्हें प्रतिदिन कई प्रकार की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता रहता है. इसके बावजूद यह अपनी मेहनत और संघर्ष से रोज़ एक नई कहानी लिखते हैं.

इन्हीं में एक 60 वर्षीय मदीना बानो भी हैं, जिनकी आंखों में संघर्ष की झलक और आत्मनिर्भरता की चमक साफ देखी जा सकती है. उनके दो बेटे और बहुएं हैं, लेकिन वे उनका ख्याल नहीं रखते हैं. बुढ़ापे में जब इंसान को अपने परिवार के सहारे की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब मदीना बानो को अपने ही परिवार से उपेक्षा झेलनी पड़ रही है. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. पति की मौत के बाद मदीना बनो किसी पर निर्भर रहने से बेहतर खुद ही रोज़ी रोटी कमाने निकल पड़ी. वह रोज़ाना हवा महल के पास एक कोने में बैठकर मिट्टी के खिलौने बेचती हैं. रंग-बिरंगे खिलौने न केवल बच्चों का मन मोहते हैं, बल्कि उनकी जीविका का एकमात्र साधन भी हैं.

दिनभर तपती धूप में बैठकर वे राहगीरों को अपनी दुकान की ओर आकर्षित करने का प्रयास करती हैं. कभी-कभी बिक्री अच्छी होती है, तो दिन आराम से कटता है, लेकिन कई बार उन्हें खाली हाथ भी घर लौटना पड़ता है. बावजूद इसके, वे उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ती हैं. सांगानेरी गेट की रहने वाली मदीना बनो बताती हैं कि वह होलसेल दुकानों से इन खिलौनों को खरीदती हैं. एक खिलौने पर उन्हें 20 रुपए तक मिल जाते हैं. इस तरह प्रतिदिन उन्हें 200 रुपए तक मिल जाते हैं. लेकिन प्रचंड गर्मी के दिनों में उन्हें एक दिन में 50 रूपए भी नहीं मिल पाते हैं. इसके बावजूद वह हिम्मत नहीं हारती हैं.

संघर्ष की इस कहानी में 41 वर्षीय ममता भी हैं, जो अपने परिवार के भरण पोषण के लिए कपड़े की फेरी लगाती हैं. उनके पति एक कपड़ा मिल में कर्मचारी के रूप में काम करते हैं. ममता बताती हैं कि बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए पांच वर्ष पूर्व उन्होंने खुद का रोज़गार शुरू करने का निर्णय लिया. हालांकि उनके पति ने उनका साथ दिया लेकिन पुरानी विचारधारा वाले उनके सास ससुर ने इसका काफी विरोध किया. लेकिन धीरे धीरे जब आमदनी होने से परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी होने लगी तो उन्होंने ममता का विरोध करने की जगह उनका हौसला बढ़ाने लगे. हवा महल से करीब 11 किमी दूर दुर्गापुर की रहने वाली ममता स्वयं सहायता समूह से भी जुड़ी हुई हैं. इसके बावजूद उन्हें आजीविका के लिए रोज़ संघर्ष करनी पड़ती है.

वहीं उत्तर प्रदेश के जौनपुर के रहने वाले 38 वर्षीय प्रकाश, पिछले कई वर्षों से हवा महल के सामने चने और नमकीन बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं. उनके दो बच्चे अभी स्कूली शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. घर की आमदनी और बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए उनकी पत्नी मुन्नी आसपास के घरों में घरेलू सहायिका के रूप में काम करती हैं. इस तरह दोनों मिलकर परिवार की जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करते हैं. प्रकाश का जीवन आसान नहीं है. अस्थाई दुकान होने के कारण हमेशा उनकी रोजी-रोटी पर संकट मंडराता रहता है. उनके लिए हर दिन एक नई चुनौती के रूप में आता है, लेकिन वह हर मुश्किल का सामना करते हुए अपने परिवार के लिए संघर्षरत करते हैं.

हालांकि रोजगार की जद्दोजहद से अलग 75 वर्षीय कमला देवी, हवा महल के पास ही एक प्याऊ चलाती हैं. जहां वह लोगों को सेवाभाव से पानी पिलाती हैं. उनकी झुर्रियों से भरा चेहरा अनुभव और सेवा की भावना से ओतप्रोत होता है. गर्मी के दिनों में जब हवा महल घूमने आये लोग प्यास से बेहाल होते हैं, तब उनकी प्याऊ एक वरदान साबित होती है. कमला देवी बिना किसी स्वार्थ के राहगीरों को शुद्ध और ठंडा पानी पिलाती हैं. इसके बदले में वह कभी पैसे की मांग नहीं करती हैं. लेकिन जब कोई उन्हें पैसा देता है तो वह मना भी नहीं करती हैं.

वह मानती हैं कि सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है. उनका यह निस्वार्थ भाव हर किसी को प्रेरित करता है. हालांकि उनकी अपनी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, फिर भी वे दूसरों की मदद करने से पीछे नहीं हटतीं हैं. वह सुबह आठ बजे से शाम सात बजे तक लोगों को शीतल जल पिलाने का काम करती हैं. वह बताती हैं कि उनका केवल एक बेटा है जो घर पर गौशाला चलाता है, जिसका दूध बेचकर घर का राशन आ जाता है. इसके अतिरिक्त उन्हें वृद्धा पेंशन भी मिलती है. जिससे मां बेटे का गुज़ारा चल जाता है. इसीलिए वह पानी पिलाने का पैसा नहीं मांगती हैं.

हवा महल के पास पर्यटक अपनी यादों को संजोने के लिए तस्वीरें खिंचवाते हैं, वहीं दूसरी ओर मदीना बानो, ममता और प्रकाश जैसे कई ऐसे लोग हैं, जो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की जद्दोजहद में लगे रहते हैं. उनकी दुनिया पर्यटकों की चमक-दमक से दूर एक अलग ही हकीकत बयां करती है. इनका जीवन अस्थिरता से भरा हुआ है. जहां इनकी मुश्किलें कभी खत्म नहीं होती हैं. वे सर्दी, गर्मी और बरसात में भी अपने व्यवसाय को चलाने की कोशिश करते हैं. अस्थाई दुकान होने की वजह से कई बार उन्हें आर्थिक रूप से बहुत नुकसान भी उठाना पड़ता है. इन तमाम मुश्किलों के बावजूद, इन लोगों के चेहरे पर एक अलग ही चमक होती है. यह चमक संघर्ष की है, मेहनत की है और कभी हार न मानने की भावना की है.
लेखिका संघर्ष संस्थान, दूदू से जुड़ी हैं

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