Vipin Joshi
हिन्दी साहित्य जगत में विशेष पहचान बनाने वाले उत्तराखण्ड के साहित्यकारों की जमात में शामिल हिंदी और कुमाउनी साहित्य विधा को लगातार अपनी रचनाओं से प्रफुल्लित करने वाले मधुर कंठ के धनी लेखक, शिक्षक, रंगकर्मी मोहन जोशी ने ऋग्वेद के तीन खण्डो का कुमाउनी भावानुवाद किया है। पूर्व में आपने भगवत गीता समेत दर्जनों ग्रंथों का भावानुवाद किया है। मोहन जोशी ने साहित्य की विविध विधाओं में लेखन किया है। हिंदी और कुमाउनी भाषा को समदर्शी भाव से आगे बढ़ाने के लिए आपका समर्पण उनकी रचनाओं में दिखता है। स्थानीय मंच हो या राष्ट्रीय स्तर के मंच सभी वर्ग की दर्शक दीर्घाओं को आपने अपनी रचनाओं से मोहित किया है। आपकी कुमाउनी रचनाओं में कत्यूर घाटी की कुलदेवी भ्रामरी देवी पर रचित गीत और वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य पर कटाक्ष करती रचना हुक धैं रे कुकुरा बहुत लोकप्रिय हुई है। एक साहित्यकार होने की सभी शर्तो को लेखक अपनी कलम से पूर्ण करता है। बातचीत के दौरान मोहन जोशी ने बताया कि प्रिन्ट साहित्य और इंटरनेट के बीच चल रही प्रतियोगिता में हमेशा अच्छी रचनाएं अपनी जगत बना लेती हैं , मोहन जोशी कहते हैं कि जिसे दिलचस्पी होगी वह कहीं से भी साहित्य को खोज ही लेगा। इसलिए यह बात बहुत प्रभावी नहीं है कि इंटरनेट ने प्रिटं रिच को प्रभावित किया है।
मोहन जोशी ने अपनी पुस्तक विमोचन के मौके पर बताया कि एक ग्रंथ का भावानुवाद करने में उनको एक से दो साल का समय लगता है। इसके अलावा मोहन जोशी ने ज्ञानार्जन नाम से बाल साहित्य और नवोदित साहित्यकारों के लिए मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी शुरू किया है। इस पत्रिका का डिजिटल फाॅर्मेट पीडीएफ में भी मौजूद है। देश विदेश से रचनाकार ज्ञानार्जन पत्रिका से जुड़ते हैं साथ में ज्ञानार्जन विद्यालय के विद्यार्थियों को भी अपनी रचनाओं के लिए एक मंच मिलता है। यह एक रचनात्मक पहल है। हाल ही में कत्यूर महोत्सव के अवसर पर आपने कत्यूर घाटी के साहित्यकारों की रचनाओं का एक संकलन भी प्रकाशित किया था जिसे उत्तराखण्ड में काफी लोकप्रियता मिली।
मोहन जोशी ने आन लाइन तकनीक का उपयोग कर देश भर के साहित्यकारों को जोड़ने का महती कार्य किया है। इस क्रम में 2 जून 2024 को मोहन कृति पटल का एक हजारवां ऐपीसोड प्रसारित किया गया इस आनलाइन संवाद में हिंदी साहित्य अकादमी से प्रो. देव सिंह पोखरिया शामिल रहे आपकी अध्यक्षता में आज का संवाद किया गया। संवाद को रोचक बनाते हुए डाॅं. तिलकराज जोशी जी ने अपनी रचना प्रस्तुत की। आपने कहा कि संचार और साहित्य के लिए अनेक पटल बने हैं इनके बनने के पीछे व्यक्तिगत हित हैं लेकिन मोहन कृति पटल को अनेको विधाओं के मर्मज्ञ साहित्यकार मोहन जोशी ने अविरल बनाये रखा है। मोहन कृति पटल के सूत्रधार मोहन जोशी अत्यन्त रचनाधर्मी और संवदनशील लेखक हैं। संवाद में लोकगायक नेरेन्द्र सिंह नेगी मौजूद रहे। संवाद का संचालन डाॅ. प्रभा पन्त ने किया। रवाल्टी भाषा के प्रख्यात लेखक महावीर रवाल्टा ने अपनी रचना प्रस्तुत की। उक्त संवाद में जौनसारी, गढ़वाली, कुमाउनी, हिंदी कविताओं का दौर देर रात तक जारी रहा। मुख्य वक्ता लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने मोहन कृति पटल के एक हजारवें अंक की सफलता पर सभी को बधाई देते हुए उत्तराखण्ड के जलते सुलगते वनों पर अपनी रचना प्रस्तुत की। – धुंध – आजकाल यख पहाड़ों में फैली छू धुंध, अगाश में जिकडु में धुंध। नरेन्द्र सिंह नेगी ने उत्तराखण्ड के जलते सुलगते जंगलों पर अपनी संवेदनशील रचना प्रस्तुत करते हुए सभी को वास्तविकता से जोड़ते हुए व्यवस्था पर भी तीखे सवाल भी किए।