मनोरंजन - Swar Swatantra https://swarswatantra.in Latest News | Breaking News | Live News Mon, 28 Apr 2025 02:26:06 +0000 hi-IN hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 https://swarswatantra.in/wp-content/uploads/2021/06/swarswatantra-2-150x150.png मनोरंजन - Swar Swatantra https://swarswatantra.in 32 32 फिल्म समीक्षा : हेमवंती https://swarswatantra.in/archives/10768?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25ab%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25b2%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25ae-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b7%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%2580 https://swarswatantra.in/archives/10768#respond Mon, 28 Apr 2025 02:26:06 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10768 फिल्म समीक्षा गढ़वाली लघु फिल्म: हेमवंती *शादी के बाद टूटा दुःखो का पहाड़, चली गई हेमवंती की आँखों की रोशनी..हेमवंती और उत्तम की प्रेम कहानी..!* का सच्चा स्वरूप पर्दे पर देखिए गढ़वाली मूवी *हेमवंती* में। गढ़वाल और कुमाऊं अंचल ने संस्कृति के उन्नयन और उत्थान हेतु नित नए मील के पत्थर खड़े किए हैं,इसी कड़ी ... Read more

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फिल्म समीक्षा
गढ़वाली लघु फिल्म: हेमवंती

*शादी के बाद टूटा दुःखो का पहाड़, चली गई हेमवंती की आँखों की रोशनी..हेमवंती और उत्तम की प्रेम कहानी..!* का सच्चा स्वरूप पर्दे पर देखिए गढ़वाली मूवी *हेमवंती* में।
गढ़वाल और कुमाऊं अंचल ने संस्कृति के उन्नयन और उत्थान हेतु नित नए मील के पत्थर खड़े किए हैं,इसी कड़ी में कल २४अप्रैल को रिलीज हुई गढ़वाली मूवी *हेमवंती* का जिक्र बहुत जरूरी प्रतीत होता है।
*जहां मोहब्बत मजबूरी नहीं ताकत बन जाती है* की टैग लाइन पर *उत्तराखंडी लोक कलाकार uk 13* बैनर तले लेखक,निर्माता और निर्देशक सचिन रावत के निर्देशन में फिल्माई गई इस सच्ची कहानी पर आधारित लघु फिल्म का कथानक और फिल्मांकन का सामंजस्य इतना सटीक बना है कि पूरे सवा घंटे दर्शकों को बांधे रखने की पूरी ताकत रखता है, उत्तराखंडी संस्कृति का पूरा पूरा समावेश फिल्म की लोकेशन और डायलॉग्स में देखने को मिलता है।
फिल्म की सूटिंग लोकेशन गढ़वाल अंचल के बजीरा (जखोली), बधानी ताल,गुप्तकाशी, डीलाना गांव की है।
छायांकन निर्देशक सौरभ पंवार ने फिल्म में बेहतरीन छायांकन स्टोरी के अनुरूप किया है।
फिल्म के मुख्य कलाकार अनुष्का पंवार,पीयूष बुटोला,विनीता राना, लखपत राना,अंकिता मेहरा,शीतल नेगी, अवनि राना, त्रिपण राना,सचिन रावत, रितिक राना,सविता पुंडीर ने इस लघु फिल्म में कहानी के अनुरूप जीवन्त अभिनय किया है।
फिल्म के असली किरदार रुद्रप्रयाग जिले के उत्तम गांव – फलासी दुर्गाधार चोपता के उत्तम और हेमवंती हैं।
फिल्म का कथानक पूरी तरह से पर्वतीय मध्यम वर्गीय परिवारों के इर्द गिर्द घूमता है। सच्ची कहानी पर आधारित इस लघु फिल्म में उत्तम और हेमवंती को प्यार होता है और उनका प्यार परिवारों की सहमति से परवान भी चढ़ता है दोनों एक दूसरे को अपने जीवन की सच्चाई भी खुलकर बता देते हैं।सामान्यतया प्यार और विवाह के मामलों में दोनों ही पक्ष अच्छाइयों का बखान करते हैं और बुराइयों पर पर्दा डाल देते हैं परन्तु इस कहानी में हेमवंती उत्तम को पहले ही बता देती है कि उसे शुगर की बिमारी है जिसका कोई स्थाई इलाज उसे नहीं मिल पा रहा है,उत्तम भी प्यार की पींगे बढ़ाते समय खुद को पुलिस की नौकरी में बताता था परन्तु विवाह प्रस्ताव के दौरान बता देता है कि वह कोई सरकारी नौकरी में नहीं है बल्कि होटल प्रबन्धन की पढ़ाई करता है दोनों एक दूसरे की कमजोरियों को समझ एक दूजे के हो जाते हैं। शुगर बढ़ जाने कारण हेमवंती को विवाह के कुछ समय बाद ही आंखों में झिलमिलाहट होने लगती है उसे गर्भ स्राव भी हो जाता है और उसकी आंखों की रोशनी पूरी तरह चली जाती है,बावजूद इसके गृहस्थ धर्म और सप्तपदी के साथ फेरों की मर्यादा निभाते हुए दोनों एक दूसरे के प्रति समर्पित हैं रील लाइफ में भी और रियल लाइफ में भी।आंखों की रोशनी चले जाने के बाद भी अंदाजन अनुमान लगाकर हेमवंती गृहस्थी के रोजमर्रा कामों को कुशलता से संचालित कर रही हैं और उत्तम बदली हुई परिस्थितियों में गांव में ही छोटा रेस्टोरेंट चलाकर गृहस्थी की गाड़ी ढो रहे हैं,जिन्दगी जटिल जरूर है पर दोनों का एक दूसरे के प्रति समर्पण इसे चलने लायक भी बना दे रहा है।
खुद की लीवर संक्रमण जैसी गंभीर बिमारी के बावजूद निर्माता निर्देशक सचिन रावत का दावा भी और वादा भी है कि फिल्म से होने वाली आय का बड़ा हिस्सा हेमवंती और उत्तम को सहयोग की जाएगी।
कुल मिलाकर मनोरंजन,मध्यवर्गीय परिवारों की हकीकत,बीमारियों के प्रति लापरवाही, सद्चरित्र,सहजता और ईमानदारी का पुट लिए यह फिल्म न केवल देखी जानी चाहिए बल्कि शुगर बिमारी रोकथाम जागरूकता एवं स्कूली शिक्षा के साथ इसका सार्वजनिक उपयोग भी किया जाना चाहिए।
समीक्षक : हरीश जोशी
स्वतंत्र पत्रकार

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पर्यटकों का कौसानी के प्रति घटता रुझान https://swarswatantra.in/archives/10751?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25af%25e0%25a4%259f%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%258c%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a8%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0 https://swarswatantra.in/archives/10751#respond Mon, 21 Apr 2025 02:54:46 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10751 क्यों कम होने लगा कौसानी, बैजनाथ के प्रति पर्यटकों का रुझान ? यह सवाल अब कौसानी बैजनाथ के होटल व्यवसाइयों के लिए चिंता का सबब बन चुका है। विगत दो वर्षो में उत्तराखण्ड के धधकते वनों ने पर्यटन को प्रभावित किया है तो दूसरी ओर नैनीताल के कैंची धाम में बेतहाशा भीड़ और ट्रेफिक जाम ... Read more

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क्यों कम होने लगा कौसानी, बैजनाथ के प्रति पर्यटकों का रुझान ? यह सवाल अब कौसानी बैजनाथ के होटल व्यवसाइयों के लिए चिंता का सबब बन चुका है। विगत दो वर्षो में उत्तराखण्ड के धधकते वनों ने पर्यटन को प्रभावित किया है तो दूसरी ओर नैनीताल के कैंची धाम में बेतहाशा भीड़ और ट्रेफिक जाम की समस्या ने पर्यटकों का रूझान उत्तराखण्ड के अन्य पर्यटक स्थलों के प्रति कम किया है। अब पर्यटक कैंची धाम से मुक्तेश्वर और नैनीताल का रूख करने लगे हैं। कौसानी के व्यापारी और होटल कारोबारियों का मानना था कि कौसानी में शराब की दुकान खुलने से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा लेकिन जगह-जगह लगने वाले ट्रेफिक जाम ने पर्यटकों का कौसानी मोह भंग किया है। शराब की दुकानों के साथ सरकार को सड़क यातायात संबंधी मुद्दों पर भी ध्यान देना होगा। व्यापारी कहने लगें हैं कि कैंची धाम से वापस जा रहे हैं पर्यटक। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए क्या कर रहा है पर्यटन विभाग ?
अप्रैल मई में कौसानी और बैजनाथ पर्यटकों से गुलजार रहते थे। कोविड के बाद विगत दो सालों में कौसानी और बैजनाथ में पर्यटकों की आमद कम होने से होटल और लोकल व्यवसाई परेशान और चिंतित हैं। होटल एसोसियन और व्यापार संघ के जिलाध्यक्ष बबलू नेगी ने बताया कि कौसानी में पर्यटकों के लिए मनोरंजन के विकल्प होने चाहिए । यातायात को और सुगम बनाना होगा। कैंची धाम में लगातार जाम लगने से पर्यटक आगे का रुख करने से कतराते हैं। क्या सरकार के पास ट्रैफिक जाम से निपटने का कोई तरीका नहीं है ? इस वजह से कौसानी और बैजनाथ में पर्यटक नहीं पहुंच पा रहे हैं। होटल व्यवसाय चौपट हो गया है। हेली सेवा का लाभ पर्यटकों को मिले इसके लिए हैली पैड से कौसानी तक टैक्सी की सुविधा देनी चाहिए। बैजनाथ के व्यापारियों ने कहा कि बैजनाथ में संग्रहालय और शौचालय की व्यवस्था नहीं है, इस कारण पर्यटकों को ऐतिहासिक शोध से वंचित होना पड़ता है, शौचालय की सुविधा नहीं मिल पाती है। सरकार इस दिशा में जल्दी काम करेगी तो उसका असर पर्यटन पर पड़ेगा।
विपिन जोशी, गरुड़

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सामाजिक सरोकारों का प्रतीक कत्यूर महोत्सव https://swarswatantra.in/archives/10746?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%2595-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25a4 https://swarswatantra.in/archives/10746#respond Sun, 13 Apr 2025 02:44:45 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10746 कत्यूर महोत्सव क्यों ? यह सवाल सभी के लिए जरूरी होना चाहिए। समस्त विभाग क्यों तत्पर दिखते हैं इस महोत्सव के लिए ? कुछ दिनो से कौसानी महोत्सव पर भी लोगों के बयान शोसल मीडिया में दिखने लगे हैं। कोई महोत्सव किसी समाज के जीवन का प्रतीक या संकेत होता है या महोत्सव एक नया ... Read more

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कत्यूर महोत्सव क्यों ? यह सवाल सभी के लिए जरूरी होना चाहिए। समस्त विभाग क्यों तत्पर दिखते हैं इस महोत्सव के लिए ? कुछ दिनो से कौसानी महोत्सव पर भी लोगों के बयान शोसल मीडिया में दिखने लगे हैं। कोई महोत्सव किसी समाज के जीवन का प्रतीक या संकेत होता है या महोत्सव एक नया ट्रेन्ड है अपनी सांस्कृतिक पहचान को मंचीय तरीके से परोसने का। बदलते दौर में अब मेलों की शक्ल महोत्सवों में तब्दील होने लगी है। अब ग्रामीण परिवेश नगरीय संस्कृति में बदलने लगा है तो सांस्कृतिक स्वरूप और जीवन शैली में बदलाव आऐंगे ही। परंपरागत लोक को भी नए जमाने के ग्लैमर में पहॅुचने का हक तो है ही हम उसे रोक नहीं सकते। हमारे जीवन में बहुत से तनाव हैं और सुकून भी कम होने लगा है।
इन महोत्सवों के बहाने ही सही कुछ समय स्क्रीन स्को्रलिंग से तो राहत मिलती है। लोग अपनी जगह में बैठ कर मंचीय कार्यक्रमों का लुत्फ उठाते हैं। आसपास लगे स्टॉलों का अवलोकन करते हैं। सहरकारी योजनाओं की जानकारियों से ऑन द स्पॉट रूबरू होते हैं। दूर-दराज के मित्रों से मिलते हैं, कुछ नए दोस्त भी परिचय के दायरे में आते हैं। स्थानीय व्यापारियें को भी आर्थिक सबलता मिलती है। स्थानीय कलाकारों को मंच मिलता है, अपनी पहचान दिखाने का अवसर भी प्राप्त होता है। पारंपरिक मेलां को मेल मिलाप का माध्यम माना जाता था। तब साधन कम थे, सूचना तकनीकी का प्रभाव आधुनिक नहीं था। वाचिक परंपरा आधारित ज्ञान था। आज लोक जीवन की परिभाषा ही बदल गई है। एआई जैसे इंटरनेट टूल सबकी जेम में हैं। दुनियां तेजी से बदल रही है और बदल चुके हैं संस्कृति के वाहक मेले जो अब महोत्सवों के रूप में नजर आते हैं। बाजार आधारित व्यवस्था ने हमारे सोचने समझने पर भी नियंत्रण कर लिया है। ऐसे माहौल में आधुनिक महोत्सवों का क्या प्रभाव हमारे जन-जीवन में पड़ता है यह अध्ययन का विषय हो सकता है।
गरूड़ में नगर पंचायत बनने के बाद पहली बार कत्यूर महोत्सव का आयोजन हो रहा है। मौसम की बेरूखी भी महोत्सव में खलल डाल सकती है। भकुनखोला खेल मैदान में सरकारी विभागों के स्टॉल लगेंगे, खेल आयोजन, खाने पीने के स्टॉल भी होंगे। इस बार चर्खा और झूला मैदान के बाहर लगेगा। मुख्य सांस्कृतिक मंच खेल मैदान में लगेगा। कार्यक्रम में स्कूलों की सांस्कृति झांकी, उद्घाटन, वन विभाग का लेजर शो, दीपोत्सव, स्टार नाईट में माया उपाध्याय, कमला देवी, गोविन्द गोस्वामी, जितेन्द्र तोमकियाल प्रमुख होंगे। स्थानीय कलाकारों को भी मंच प्रस्तुति के अवसर मिलेंगे। मेंहदी, ऐपन, शकुनाखर गायन प्रतियोगता को भी इस बार महोत्सव में स्थान मिला है।
उद्घाटन कार्यक्रम में विधायक बागेश्वर, विधायक कपकोट, केन्द्रीय मंत्री, दर्जा प्राप्त मंत्री, एसडीएम गरूड़, डीएम बागेश्वर, तहसीलदार गरूड़, नगर पंचायत अध्यक्ष गरूड़, जिला पर्यटन अधिकारी, कत्यूर महोत्सव समिती के सभी सदस्य, समस्त पत्रकार बंधु, महिला समूह, समस्त नगर पंचायत सभासद गरूड़, समस्त सरकारी विभाग एवं नागरिक संगठन के सदस्य शामिल होंगे।

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कहां रोपित हैं आईपीएल के पेड़ : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10719?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a4-%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2588%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%2586%25e0%25a4%2588%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%258f%25e0%25a4%25b2-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%25aa https://swarswatantra.in/archives/10719#respond Thu, 03 Apr 2025 01:57:42 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10719 आईपीएल में बीसीसीआई और टाटा ग्रुप की साझेदारी के तहत प्लेऑफ मैचों में प्रति डॉट बॉल 500 पेड़ लगाए जाते हैं। यह एक शानदार पहल है। आईपीएल के बढ़ते ग्लैमर के बीच पर्यावरण संरक्षण का विचार शुभ है। जिस तेजी से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है धरती में पेड़ो की संख्या उसी अनुपात में घट ... Read more

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आईपीएल में बीसीसीआई और टाटा ग्रुप की साझेदारी के तहत प्लेऑफ मैचों में प्रति डॉट बॉल 500 पेड़ लगाए जाते हैं। यह एक शानदार पहल है। आईपीएल के बढ़ते ग्लैमर के बीच पर्यावरण संरक्षण का विचार शुभ है। जिस तेजी से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है धरती में पेड़ो की संख्या उसी अनुपात में घट भी रही है। क्रिकेट के प्रति एशिया में खूब लोक प्रियता है, प्रति डाट बाल 500 पेड़ लगाने का संदेश विश्व भर में सकारात्मक संदेश देगा। पेड़ लगाने को यह पहल 2023 से शुरू हुई थी और 2025 तक जारी है। अब तक के आंकड़ों के आधार पर कुल पेड़ों की संख्या और उनके स्थानों का विवरण इस प्रकार है:आईपीएल 2023: प्लेऑफ में 294 डॉट बॉल्स हुईं, जिसके परिणामस्वरूप 1,47,000 पेड़ लगाए गए।
आईपीएल 2024: प्लेऑफ में 323 डॉट बॉल्स हुईं, जिससे 1,61,500 पेड़ लगाए गए।
आईपीएल 2025: खबर लिखे जाने तक (2 अप्रैल 2025 तक)
पूरे टूर्नामेंट में 312 डॉट बॉल्स दर्ज की गई हैं, जिसका मतलब है कि 1,56,000 पेड़ लगाए जा चुके हैं या लगाए जाने की प्रक्रिया में हैं। हालांकि, यह संख्या पूरे सीजन की है, न कि सिर्फ प्लेऑफ की, और सीजन अभी चल रहा है। प्लेऑफ के आंकड़े बाद में अपडेट होंगे।कुल पेड़ (2023 से 2025 तक अब तक):
1,47,000 (2023) + 1,61,500 (2024) + 1,56,000 (2025 अब तक) = 4,64,500 पेड़। यह अनुमानित आंकड़ा है, क्योंकि 2025 का सीजन पूरा नहीं हुआ है और प्लेऑफ के आंकड़े अभी शामिल नहीं हैं। ये पद कहां लगाए गए ?
ये पेड़ पूरे भारत में विभिन्न स्थानों पर लगाए जाते हैं ताकि पर्यावरणीय प्रभाव व्यापक हो। कुछ राज्यों जैसे असम, गुजरात, कर्नाटक, केरल, और शहरों जैसे चेन्नई, अहमदाबाद, और बेंगलुरु (जहां बीसीसीआई सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में 4,00,000 वां पेड़ लगाया गया) का जिक्र मिलता है। हालांकि, सटीक स्थानों की पूरी सूची सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है, क्योंकि बीसीसीआई और टाटा ग्रुप ने विस्तृत जानकारी साझा नहीं की है। 2025 का सीजन अभी चल रहा है, इसलिए अंतिम आंकड़े मई 2025 के बाद ही स्पष्ट होंगे। तब तक कुल संख्या और बढ़ सकती है।

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कब खुलेगा बैजनाथ संग्रहालय : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10704?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25ac-%25e0%25a4%2596%25e0%25a5%2581%25e0%25a4%25b2%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%2597%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25ac%25e0%25a5%2588%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25a8%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a5-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%2597%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25be https://swarswatantra.in/archives/10704#respond Thu, 03 Apr 2025 01:18:59 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10704 बैजनाथ संग्रहालय, जो 1983 से बंद पड़ा है और जिसमें सातवीं सदी की 108 ऐतिहासिक मूर्तियां संरक्षित हैं, के खुलने की मांग लंबे समय से उठती रही है। हाल ही में कत्यूर महोत्सव की समीक्षा बैठक में इस मुद्दे को फिर से जोर-शोर से उठाया गया। हाल में गुमानी पंत पुरस्कार से सम्मानित गोपाल दत्त ... Read more

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बैजनाथ संग्रहालय, जो 1983 से बंद पड़ा है और जिसमें सातवीं सदी की 108 ऐतिहासिक मूर्तियां संरक्षित हैं, के खुलने की मांग लंबे समय से उठती रही है। हाल ही में कत्यूर महोत्सव की समीक्षा बैठक में इस मुद्दे को फिर से जोर-शोर से उठाया गया। हाल में गुमानी पंत पुरस्कार से सम्मानित गोपाल दत्त भट्ट ने कहा संग्रहालय के खुलने से न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि राजस्व में वृद्धि होगी और कत्यूरी काल के समृद्ध इतिहास, संस्कृति व आस्था का प्रसार भी संभव हो सकेगा।
साहित्यकार मोहन जोशी ने कहा कि गरुड़ में हेली सेवा शुरू होने से पर्यटकों का बैजनाथ धाम तक पहुंच आसान हुआ है, जिससे पर्यटकों की संख्या में इजाफा होने की संभावना बढ़ी है। ऐसे में संग्रहालय का बंद रहना एक बड़ा अवरोध हो सकता है।
पूर्व विधायक ललित फर्सवान ने इस मांग का पुरजोर समर्थन किया है। उनका कहना है कि बैजनाथ धाम, जो भारत और वैश्विक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, कत्यूरी शासन के एक हजार साल के इतिहास को अपने में समेटे हुए है। इस क्षेत्र के मंदिर, जो कत्यूरी काल में बने, पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं।
हालांकि, संग्रहालय के ताले कब खुलेंगे, इस सवाल का अभी कोई ठोस जवाब नहीं मिल सका है। यह मामला स्थानीय प्रशासन और संबंधित अधिकारियों के समक्ष विचाराधीन है। संग्रहालय को खोलने के लिए सरकारी स्तर पर योजना, बजट और संरक्षण कार्यों की जरूरत होगी, जिसमें समय लग सकता है। फिर भी, जनता की मांग और कत्यूर महोत्सव की समीक्षा बैठक में उठे स्वरों से यह स्पष्ट है कि इस दिशा में जल्द कदम उठाने की आवश्यकता है। संग्रहालय के खुलने से न सिर्फ बैजनाथ की धरोहर को नई पहचान मिलेगी, बल्कि यह क्षेत्र पर्यटन मानचित्र पर और भी प्रमुखता से उभरेगा।
फिलहाल, इस बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन जन दबाव और समर्थन को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि कत्यूर महोत्सव में उसे जनता के लिए खोला जाए।
विपिन जोशी
संपादक,स्वर स्वतंत्र

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विश्व रंग मंच दिवस https://swarswatantra.in/archives/10671?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25b6%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b5-%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%2597-%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%259a-%25e0%25a4%25a6%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25b8 https://swarswatantra.in/archives/10671#respond Thu, 27 Mar 2025 12:28:55 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10671 रंगमंच का शिक्षा में उपयोग एक प्रभावी और रचनात्मक तरीका है, जिसके माध्यम से छात्रों को विभिन्न विषयों को समझने, अभिव्यक्त करने और आत्मविश्वास विकसित करने में मदद मिलती है। रंग मंच शिक्षा को रोचक बनाता है, छात्रों के समग्र विकास में भी योगदान देता है। रंगमंच शिक्षा में कैसे उपयोगी हो सकता है? इस ... Read more

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रंगमंच का शिक्षा में उपयोग एक प्रभावी और रचनात्मक तरीका है, जिसके माध्यम से छात्रों को विभिन्न विषयों को समझने, अभिव्यक्त करने और आत्मविश्वास विकसित करने में मदद मिलती है। रंग मंच शिक्षा को रोचक बनाता है, छात्रों के समग्र विकास में भी योगदान देता है। रंगमंच शिक्षा में कैसे उपयोगी हो सकता है? इस प्रश्न को इन बिंदुओं से समझ सकते हैं। रंगमंच के माध्यम से छात्र नाटक, भूमिका निभाने और संवाद के जरिए विषयों को अनुभव करते हैं। उदाहरण के लिए, इतिहास की घटनाओं को नाटक के रूप में प्रस्तुत करने से छात्र उन घटनाओं को बेहतर समझ सकते हैं। सामाजिकता का विकास, रंगमंच एक सामूहिक उपक्रम है। रंगकर्मी समूह में काम करते हैं। जिससे उनमें सहयोग, संचार और नेतृत्व जैसे कौशल विकसित होते हैं। उन्हें टीम वर्क के द्वारा दूसरों के दृष्टिकोण को समझने में मदद मिलती है।
भावनात्मक समझ और सहानुभूति , विभिन्न पात्रों की भूमिका निभाने से छात्र विभिन्न परिस्थितियों और भावनाओं को समझते हैं। इससे उनमें सहानुभूति और भावनात्मक बुद्धिमत्ता बढ़ती है।भाषा और अभिव्यक्ति में सुधार होता है। नाटक के संवाद लिखने और बोलने की प्रक्रिया से छात्रों की भाषा कौशल, शब्दावली और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। हिंदी जैसी भाषाओं में काव्यात्मकता और संवेदनशीलता को रंगमंच के जरिए प्रभावी ढंग से सिखाया जा सकता है। रंगमंच छात्रों को अपनी कल्पना का उपयोग करने और नए विचारों को प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता देता है। यह पारंपरिक शिक्षण विधियों से हटकर सोचने की क्षमता को प्रोत्साहित करता है। रंग मंच जटिल अवधारणाओं को सरल बनाता है, विज्ञान, गणित या सामाजिक अध्ययन जैसे विषयों को नाटक के माध्यम से सरल और रोचक बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, न्यूटन के नियमों को एक छोटे नाटक के जरिए प्रदर्शित करना।
भारत में रंगमंच का उपयोग पारंपरिक रूप से कथकली, नौटंकी और रामलीला जैसे लोक नाटकों के माध्यम से शिक्षा और नैतिकता सिखाने के लिए किया जाता रहा है। आधुनिक शिक्षा में इसे कक्षा में गतिविधियों, स्कूल नाटकों और कार्यशालाओं के रूप में शामिल किया जा सकता है।
कत्यूर रामलीला कमेटी के रंगकर्मी कैलाश बिष्ट विगत तीन दशक से रामलीआ और नौटंकी में विभिन्न पात्रों का किरदार निभाते आ रहे हैं। कैलाश बिष्ट कहते हैं मंच पर जाते ही वे किरदार में खो जाते हैं, बिष्ट को ताड़का , केवट, बंदी जन, सुमंत, कल्लू धोबी की भूमिका ने देखने के लिए दर्शक दूर दूर से आते हैं।
कत्यूर रामलीला मंच में महिला रंगकर्मियों ने भी अपना अच्छा स्थान बनाया नीमा गोस्वामी आंगनबाड़ी कार्यकर्ती हैं और रंगमंच में सक्रीय रहती हैं। नीमा के दोनों बेटों ने रामलीला में लंबे समय तक राम और लक्ष्मण की भूमिकाएं निभाई, नीमा आज भी कौशल्या की भूमिका करती हैं इनकी मधुर गायिकी दर्शकों द्वारा खूब सराही जाती है।
नीमा वर्मा, पेशे से शिक्षिका रह चुकी नीमा वर्मा शबरी की भूमिका करती है। बदलते दौर में रंग मंच भी बदला है। रामलीला, स्वांग, नुक्कड़ नाटक आधुनिकता की चमक दमक के आगे अपने महत्व के साथ टीके हुए हैं।

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कहीं राहत तो कहीं मुसीबत : बदलता मौसम https://swarswatantra.in/archives/10660?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25a4-%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%258b-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%2581%25e0%25a4%25b8%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%25ac%25e0%25a4%25a4-%25e0%25a4%25ac https://swarswatantra.in/archives/10660#respond Mon, 17 Mar 2025 23:23:18 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10660 विपिन जोशी, गरुड़ इन दिनों उत्तराखंड में मौसम में अचानक बदलाव देखने को मिल रहा है। अनिश्चित बारिश और बर्फबारी ने स्थानीय किसानों को कहीं राहत दी है तो कहीं मुश्किलें भी पैदा की हैं। इसका प्रमुख है भूमध्य सागर से उत्पन्न होने वाला पश्चिमी विक्षोभ है, यह विक्षोभ भूमध्य सागर से बनता है और ... Read more

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विपिन जोशी, गरुड़
इन दिनों उत्तराखंड में मौसम में अचानक बदलाव देखने को मिल रहा है। अनिश्चित बारिश और बर्फबारी ने स्थानीय किसानों को कहीं राहत दी है तो कहीं मुश्किलें भी पैदा की हैं। इसका प्रमुख है भूमध्य सागर से उत्पन्न होने वाला पश्चिमी विक्षोभ है, यह विक्षोभ भूमध्य सागर से बनता है और हिमालयी क्षेत्रों की ओर बढ़ता है। सर्दियों में बारिश और बर्फबारी का कारण भी पश्चिमी विक्षोभ है। लेकिन मार्च में भी पश्चिमी विक्षोभ का असर दिख सकता है, जैसा इस बार घटित हो रहा है।
अक्सर जब पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होकर उत्तर-पश्चिम भारत में प्रवेश करता है। जैसे इस बार उत्तराखंड में ऊंचाई वाले इलाकों जैसे बद्रीनाथ, केदारनाथ, औली, मुनस्यारी, कपकोट और चमोली में बर्फबारी तथा मैदानी क्षेत्रों में बारिश देखने को मिली। मौसम विभाग के अनुसार,15-16 मार्च को पश्चिमी विक्षोभ के कारण गरज, बिजली और तेज हवाओं के साथ बारिश और ओलावृष्टि की संभावना बनी थी। इस अनिश्चितता के पीछे कुछ कारण हो सकते हैं।
पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता: मार्च में आमतौर पर सर्दियाँ कमजोर पड़ने लगती हैं, लेकिन इस साल पश्चिमी विक्षोभ की ताजा लहर ने मौसम को अचानक बदल दिया। हिमालयी क्षेत्र में नमी बनने से, बारिश और बर्फबारी हुई । दूसरा प्रभाव जलवायु परिवर्तन का है, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से मौसम के पैटर्न में अनियमितता बढ़ी है। सामान्यतः मार्च में उत्तराखंड में मौसम शुष्क और गर्म होता है। लेकिन बदलते वैश्विक ताप और हवा के प्रवाह के कारण बारिश और बर्फबारी जैसी घटनाएँ इस महीने में भी देखी जा रही हैं। उत्तराखंड की पहाड़ी भौगोलिक स्थिति पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव को बढ़ाते हैं और नमी से भरी हवाओं को हिमालय से टकराने के लिए मजबूर करती है, तो अनिश्चित बारिश और बर्फबारी होती है। हाल के दिनों में मौसम विभाग ने उत्तराखंड के लिए येलो अलर्ट जारी किया था, जिसमें देहरादून, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग जैसे जिलों में हल्की बारिश और 3200 मीटर से अधिक ऊँचाई पर बर्फबारी की संभावना जताई गई है। यह बदलाव सर्दियों की कमी को पूरा करने में सहायक होता है, साथ ही यह अनिश्चितता यात्रियों और स्थानीय लोगों के लिए चुनौतियाँ भी पैदा कर रही है।

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मंत्री अग्रवाल का इस्तीफा : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10655?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%2585%25e0%25a4%2597%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b2-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%2587%25e0%25a4%25b8%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%25ab https://swarswatantra.in/archives/10655#respond Mon, 17 Mar 2025 02:23:45 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10655 कयास लगाए जा रहे हैं कि मंत्री अग्रवाल के इस्तीफे के पीछे नेगी दा के हालिया वायरल गीत की भी भूमिका है. देहरादून, उत्तराखंड सरकार के मंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल का इस्तीफा याने लोकतंत्र के जिंदा होने के संकेत हैं। कहते हैं व्यक्ति अपनी गरिमा और स्वाभिमान के लिए सड़क पर उतरता है तो कुछ ... Read more

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कयास लगाए जा रहे हैं कि मंत्री अग्रवाल के इस्तीफे के पीछे नेगी दा के हालिया वायरल गीत की भी भूमिका है.
देहरादून, उत्तराखंड सरकार के मंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल का इस्तीफा याने लोकतंत्र के जिंदा होने के संकेत हैं। कहते हैं व्यक्ति अपनी गरिमा और स्वाभिमान के लिए सड़क पर उतरता है तो कुछ भी असंभव नहीं। मंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल ने विधानसभा में उत्तराखंडियत का उपहास किया और असंसदीय भाषा शैली का प्रयोग किया। इस घटना का हर स्तर पर विरोध शुरू हुआ। उत्तराखंड क्रांति दल ने गैरसैण में प्रदर्शन भी किया और राज्य भर में एक यात्रा भी निकाली। पक्ष विपक्ष के विधायकों को उत्तराखंडीयत और पहाड़ के स्वाभिमान के नाम पर जगाने की मुहिम शुरू की। जनता के आक्रोश को प्रमुख समाचार पत्रों और यूट्यूबर्स ने छापना दिखाना शुरू किया। इसका असर भाजपा में हुआ, पार्टी ने मंत्रणा की और मंत्री साहब पर इस्तीफे का दबाव बढ़ता गया। आज सुबह आई कि भावुक होते हुए मंत्री साहब ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। मंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल कहते हैं कि उन्हें टारगेट किया गया, जिस जनता ने वोट दिया उसी जनता ने खुद के अपमान का बदला भी ले लिया। वहीं मशहूर गायक नरेंद्र नेगी बताते हैं कि अग्रवाल के इस्तीफे के पीछे उनके नए गीत की कोई भूमिका नहीं है। अब खुल कर कौन किसी नेता, विधायक, मंत्री के आगे आएगा यह दीगर बात है कि नेगी दा के गीतों ने समय समय पर उत्तराखंड की सत्ता परिवर्तन में भूमिका तो निभाई ही है। इस बार उनके गीत का कितना असर रहा ये शोध का नया विषय हो सकता है। बहरहाल स्वाभिमान और उत्तराखंडियत के सवाल पर बीजेपी को बैकफुट में जाना पड़ा और जनता के आक्रोश के चलते 2027 के चुनाव को मद्देनजर रखते हुए मंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।

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महिलाओं के लिए रोज़गार का माध्यम है नया बाजार https://swarswatantra.in/archives/10629?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%2593%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%258f-%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25bc%25e0%25a4%2597%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be https://swarswatantra.in/archives/10629#respond Fri, 28 Feb 2025 12:46:14 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10629 आशा नारंग अजमेर, राजस्थान राजस्थान का अजमेर पर्यटन और तीर्थ नगरी होने के कारण बहुत लोगों के लिए रोज़गार प्राप्त करने का एक अहम जरिया भी है. यहां के सभी बाज़ारों में सालों भर देसी और विदेशी पर्यटकों, तीर्थ यात्रियों और आम लोगों की आवाजाही लगी रहती है. जिससे बड़े स्तर के व्यापारियों से लेकर ... Read more

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आशा नारंग
अजमेर, राजस्थान

राजस्थान का अजमेर पर्यटन और तीर्थ नगरी होने के कारण बहुत लोगों के लिए रोज़गार प्राप्त करने का एक अहम जरिया भी है. यहां के सभी बाज़ारों में सालों भर देसी और विदेशी पर्यटकों, तीर्थ यात्रियों और आम लोगों की आवाजाही लगी रहती है. जिससे बड़े स्तर के व्यापारियों से लेकर छोटे स्तर तक रोज़गार करने वाले लोगों को आर्थिक रूप से लाभ होता है. इन बाजारों में महिलाएं भी छोटे स्तर पर अपना रोजगार चलाती हैं. इन्हीं में एक ‘नया बाजार’ भी है. करीब 60 साल पुराने इस बाजार में पिछले दो सालों से पिंकी अपने चाय की एक छोटी स्टॉल लगाती है. जिससे होने वाली आमदनी से उसके परिवार का भरण पोषण होता है. इस बाजार की सभी दुकानें पुरुष चलाते हैं. ऐसे में एक महिला के रूप में उन्हें अपनी दुकान चलाने के लिए किसी प्रकार की चुनौती का सामना नहीं होता है.

पिंकी इससे पहले एक ज्वेलरी शॉप में काउंटर असिस्टेंट के रूप काम कर चुकी हैं. वह कहती हैं कि दो साल पहले जब उन्होंने चाय की अपनी दुकान शुरू की थी तो उनके सामने पुरुषसत्तात्मक समाज में जगह बनाने की चुनौती थी. क्योंकि यहां की सभी दुकानें पुरुष ही चलाते हैं और उनमें काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी भी पुरुष होते हैं. ऐसे में उनके लिए यह काफी मुश्किल था. शुरू शुरू में उन्हें लोगों से बात करने में थोड़ी परेशानी होती थी. लेकिन ज्वेलरी शॉप में काम करने के अनुभव का उन्हें काफी लाभ मिला. वह बहुत जल्द इस मार्केट की दिनचर्या और व्यवहार को समझ गई.

पिंकी रोज़ सुबह 8 बजे दुकान पहुंच जाती हैं और साफ़ सफाई के बाद ग्राहकों के लिए चाय बनाना शुरू कर देती हैं. इस काम में उनका बेटा भी मदद करता है. जबकि उनकी दोनों बेटियां स्कूल और कॉलेज जाती हैं. वह रात 8 बजे तक इस दुकान को संभालती हैं. वह कहती हैं कि उन्होंने पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई की है. ऐसे में वह शिक्षा के महत्व को पहचानती हैं. हालांकि उनके बेटे को पढ़ाई में दिल नहीं लगता था. जिसके बाद वह पढ़ाई छोड़कर मां के कामों में हाथ बंटाने लगा.

पिंकी बताती हैं कि सबसे अधिक शाम के समय उनके दुकान पर भीड़ लगती है जब आसपास की दुकानों और ऑफिस से निकले लोग चाय की चुस्की के साथ चर्चा करते हैं. अक्सर यह चर्चा घर और ऑफिस से शुरू होकर देश और दुनिया के मुद्दों पर चलती है. वहीं दोपहर के समय ज़्यादातर अजमेर घूमने आये पर्यटकों की भीड़ जमती है. जब लोग एक पर्यटन स्थल से दूसरे पर्यटन स्थल को देखने जाने के बीच कुछ देर उनकी चाय पीकर अपनी थकान मिटाना चाहते हैं. ऐसे में चाय के साथ उन्हें पर्यटकों का अनुभव भी सुनने को मिलता रहता है. पिंकी कहती हैं कि उन्हें राजनीति की अधिक समझ नहीं है, लेकिन जब शाम में चाय के साथ उनकी दुकान पर देश और दुनिया की राजनीति पर चर्चा होती है तो उन्हें बहुत कुछ जानकारी मिल जाती है. वहीं पर्यटकों द्वारा भी उनकी चाय की दुकान पर बैठ कर चर्चा करने से उन्हें काफी कुछ जानकारियां प्राप्त हो जाती हैं.

इसी नया बाजार के एक मोड़ पर 65 वर्षीय लाली फूलों की माला बेचती हैं. वह पिछले 30 वर्षों से यह काम कर रही हैं. आसपास छोटे बड़े कई मंदिर होने के कारण प्रतिदिन उनकी अच्छी खासी माला बिक जाती है. जिससे उन्हें 500 से 600 रुपए तक की आमदनी हो जाती है. वह रोज़ाना 6 बजे सुबह यहां अपनी फूलों की टोकड़ी लेकर बैठ जाती हैं और रात 9 बजे तक रहती हैं. लाली बताती हैं कि प्रत्येक मंगलवार के अतिरिक्त पर्व त्योहारों के दिनों में उनकी पूरी माला बिक जाती है. जिससे उन्हें काफी आमदनी होती है और आर्थिक रूप से भी काफी लाभ मिलता है. वह बताती हैं कि उनके 2 बेटे हैं और दोनों ही अलग अलग दुकानों पर काम करके अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. ऐसे में वह अपने बेटों पर बोझ नहीं बनना चाहती हैं. इसलिए इस काम को करने में उन्हें ख़ुशी महसूस होती है. वह कहती हैं कि आमदनी के साथ साथ वह इसे ईश्वर की सेवा भी समझती हैं.

लाली बताती हैं कि पुरुष और महिलाएं सभी उनसे फूल खरीदने आते रहते हैं. उन्हें कभी किसी प्रकार की दिक्कत नहीं आई है. वह मदार गेट से रोज़ाना बीस किलो फूल खरीदती हैं. इसके लिए वह प्रतिदिन सुबह पांच बजे मदार गेट पहुंच जाती हैं. वह बताती हैं कि 30 वर्ष पूर्व जब उन्होंने फूल बेचने का काम शुरू किया था, तो उन्हें इसमें बहुत अधिक परेशानी नहीं आई लेकिन मंडी में उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता था. जहां केवल पुरुष ही आया करते थे. ऐसे में मोलभाव करने में उन्हें झिझक होती थी. लेकिन इतने वर्षों बाद अब उन्हें कोई परेशानी नहीं होती है. अब उन्हें प्रतिदिन बाजार भाव का पता रहता है.

वह कहती हैं कि पुरुषवादी समाज में महिलाओं को अपनी जगह बनानी पड़ती है. इसके लिए उसे घर से लेकर बाहर तक दोहरा संघर्षों से गुज़रना पड़ता है. विशेषकर छोटी पूंजी वाले कामों में उन्हें कदम कदम पर संघर्षों का सामना रहता है. लेकिन पिछले तीन दशकों में काफी बदलाव आया है. अब महिलाएं किसी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं. वह घर की आमदनी में बराबर की हिस्सेदार हो चुकी है. जिसे पुरुष प्रधान समाज को भी स्वीकार करने की ज़रूरत है.
(लेखिका अलवर मेवात शिक्षा एवं विकास संस्थान से जुड़ी हैं)

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खराब मौसम ने रोकी उड़ान: गरुड़ हैली सेवा https://swarswatantra.in/archives/10624?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2596%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25ac-%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%258c%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25ae-%25e0%25a4%25a8%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%2589%25e0%25a4%25a1%25e0%25a4%25bc%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%2597%25e0%25a4%25b0 https://swarswatantra.in/archives/10624#respond Fri, 28 Feb 2025 02:17:26 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10624 गरुड़ हैली सेवा की ट्रायल खराब मौसम की वजह से टली। 27 फरवरी को गरुड़ हेलीपैड में उड़ान का ट्रायल होना था, सुबह से ही प्रशाशन और हैरिटेज कंपनी का स्टाफ तैयारियों में जुटा था। लेकिन खराब मौसम की वजह से ट्रायल नहीं हो पाया। हैरिटेज एविएशन के प्रबंधक अभिलाष पटवाल ने बताया कि उनकी ... Read more

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गरुड़ हैली सेवा की ट्रायल खराब मौसम की वजह से टली।
27 फरवरी को गरुड़ हेलीपैड में उड़ान का ट्रायल होना था, सुबह से ही प्रशाशन और हैरिटेज कंपनी का स्टाफ तैयारियों में जुटा था। लेकिन खराब मौसम की वजह से ट्रायल नहीं हो पाया। हैरिटेज एविएशन के प्रबंधक अभिलाष पटवाल ने बताया कि उनकी टीम पूरी तरह से तैयार है चॉपर के उतरने की सभी व्यवस्थाएं अच्छी तरह से पूर्ण कर ली है। मौके पर अग्निशमन विभाग की टीम, स्वास्थ्य विभाग बैजनाथ, एसडीएम गरुड़, सहित स्थानीय ग्रामीण सुबह से इंतजार में थे। खराब मौसम के कारण चॉपर देहरादून से हल्द्वानी तक ही पहुंच पाया आगे की उड़ान नहीं भर पाया। मौसम ठीक होते ही हैली सेवा की ट्रायल की जाएगी। तकनीकी टीम के अप्रूवल के बाद गरुड़ से हल्द्वानी और देहरादून के लिए सेवा नियमित तौर पर शुरू की जायेगी।
गरुड़ से हल्द्वानी का किराया एक तरफ 3500 और देहरादून का किराया एक तरफ 4000 होगा। एक फेरे में 7 सवारी सफर कर सकेंगे। 28 फरवरी को ट्रायल सफल रहा तो जल्दी ही मार्च से रोजाना दो उड़ाने गरुड़ से शुरू हो जाएंगी।
विपिन जोशी

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