धर्म - Swar Swatantra https://swarswatantra.in Latest News | Breaking News | Live News Sun, 13 Apr 2025 02:44:45 +0000 hi-IN hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 https://swarswatantra.in/wp-content/uploads/2021/06/swarswatantra-2-150x150.png धर्म - Swar Swatantra https://swarswatantra.in 32 32 सामाजिक सरोकारों का प्रतीक कत्यूर महोत्सव https://swarswatantra.in/archives/10746?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%2595-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25a4 https://swarswatantra.in/archives/10746#respond Sun, 13 Apr 2025 02:44:45 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10746 कत्यूर महोत्सव क्यों ? यह सवाल सभी के लिए जरूरी होना चाहिए। समस्त विभाग क्यों तत्पर दिखते हैं इस महोत्सव के लिए ? कुछ दिनो से कौसानी महोत्सव पर भी लोगों के बयान शोसल मीडिया में दिखने लगे हैं। कोई महोत्सव किसी समाज के जीवन का प्रतीक या संकेत होता है या महोत्सव एक नया ... Read more

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कत्यूर महोत्सव क्यों ? यह सवाल सभी के लिए जरूरी होना चाहिए। समस्त विभाग क्यों तत्पर दिखते हैं इस महोत्सव के लिए ? कुछ दिनो से कौसानी महोत्सव पर भी लोगों के बयान शोसल मीडिया में दिखने लगे हैं। कोई महोत्सव किसी समाज के जीवन का प्रतीक या संकेत होता है या महोत्सव एक नया ट्रेन्ड है अपनी सांस्कृतिक पहचान को मंचीय तरीके से परोसने का। बदलते दौर में अब मेलों की शक्ल महोत्सवों में तब्दील होने लगी है। अब ग्रामीण परिवेश नगरीय संस्कृति में बदलने लगा है तो सांस्कृतिक स्वरूप और जीवन शैली में बदलाव आऐंगे ही। परंपरागत लोक को भी नए जमाने के ग्लैमर में पहॅुचने का हक तो है ही हम उसे रोक नहीं सकते। हमारे जीवन में बहुत से तनाव हैं और सुकून भी कम होने लगा है।
इन महोत्सवों के बहाने ही सही कुछ समय स्क्रीन स्को्रलिंग से तो राहत मिलती है। लोग अपनी जगह में बैठ कर मंचीय कार्यक्रमों का लुत्फ उठाते हैं। आसपास लगे स्टॉलों का अवलोकन करते हैं। सहरकारी योजनाओं की जानकारियों से ऑन द स्पॉट रूबरू होते हैं। दूर-दराज के मित्रों से मिलते हैं, कुछ नए दोस्त भी परिचय के दायरे में आते हैं। स्थानीय व्यापारियें को भी आर्थिक सबलता मिलती है। स्थानीय कलाकारों को मंच मिलता है, अपनी पहचान दिखाने का अवसर भी प्राप्त होता है। पारंपरिक मेलां को मेल मिलाप का माध्यम माना जाता था। तब साधन कम थे, सूचना तकनीकी का प्रभाव आधुनिक नहीं था। वाचिक परंपरा आधारित ज्ञान था। आज लोक जीवन की परिभाषा ही बदल गई है। एआई जैसे इंटरनेट टूल सबकी जेम में हैं। दुनियां तेजी से बदल रही है और बदल चुके हैं संस्कृति के वाहक मेले जो अब महोत्सवों के रूप में नजर आते हैं। बाजार आधारित व्यवस्था ने हमारे सोचने समझने पर भी नियंत्रण कर लिया है। ऐसे माहौल में आधुनिक महोत्सवों का क्या प्रभाव हमारे जन-जीवन में पड़ता है यह अध्ययन का विषय हो सकता है।
गरूड़ में नगर पंचायत बनने के बाद पहली बार कत्यूर महोत्सव का आयोजन हो रहा है। मौसम की बेरूखी भी महोत्सव में खलल डाल सकती है। भकुनखोला खेल मैदान में सरकारी विभागों के स्टॉल लगेंगे, खेल आयोजन, खाने पीने के स्टॉल भी होंगे। इस बार चर्खा और झूला मैदान के बाहर लगेगा। मुख्य सांस्कृतिक मंच खेल मैदान में लगेगा। कार्यक्रम में स्कूलों की सांस्कृति झांकी, उद्घाटन, वन विभाग का लेजर शो, दीपोत्सव, स्टार नाईट में माया उपाध्याय, कमला देवी, गोविन्द गोस्वामी, जितेन्द्र तोमकियाल प्रमुख होंगे। स्थानीय कलाकारों को भी मंच प्रस्तुति के अवसर मिलेंगे। मेंहदी, ऐपन, शकुनाखर गायन प्रतियोगता को भी इस बार महोत्सव में स्थान मिला है।
उद्घाटन कार्यक्रम में विधायक बागेश्वर, विधायक कपकोट, केन्द्रीय मंत्री, दर्जा प्राप्त मंत्री, एसडीएम गरूड़, डीएम बागेश्वर, तहसीलदार गरूड़, नगर पंचायत अध्यक्ष गरूड़, जिला पर्यटन अधिकारी, कत्यूर महोत्सव समिती के सभी सदस्य, समस्त पत्रकार बंधु, महिला समूह, समस्त नगर पंचायत सभासद गरूड़, समस्त सरकारी विभाग एवं नागरिक संगठन के सदस्य शामिल होंगे।

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सवाल आस्था का है : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10722?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b2-%25e0%25a4%2586%25e0%25a4%25b8%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25a5%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2588-%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%259c%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25b6 https://swarswatantra.in/archives/10722#respond Sun, 06 Apr 2025 01:57:33 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10722 सवाल आस्था का है उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध शक्ति पीठ कोट भ्रामरी में चैत की नवरात्री में लगता है दियारी मेला। संतान प्राप्ति की चाह में महिलाएं जलते दिए को हाथ में लेकर रात भर खड़ी रहती हैं। यह एक कठिन तपस्या जैसा ही है। मंदिर के अंदर बहुत से दिए जलते हैं और कार्बन डॉइआक्साइड ... Read more

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सवाल आस्था का है
उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध शक्ति पीठ कोट भ्रामरी में चैत की नवरात्री में लगता है दियारी मेला। संतान प्राप्ति की चाह में महिलाएं जलते दिए को हाथ में लेकर रात भर खड़ी रहती हैं। यह एक कठिन तपस्या जैसा ही है। मंदिर के अंदर बहुत से दिए जलते हैं और कार्बन डॉइआक्साइड बनती है। आम तौर पर उस स्थान में आम जन दस मिनट नहीं ठहर सकता लेकिन संतान प्राप्ति की चाह में महिलाएं रात भर जलते दिए को हाथ में लेकर माता रानी का ध्यान करती हैं। मंदिर के प्रांगण में अन्य महिलाएं रात भर जगराता करती हैं भजन संध्या का आयोजन होता है। भक्तों की ओर से भण्डारे की व्यवस्था भी की जाती है। अगाध आस्था के बीच कोई यह सवाल नहीं करता कि रात भर दिया हाथ में लेकर खड़े रहने से संतान प्राप्ति कैसे हो जाएगी। जहां मेडिकल सांइस हार गया वहीं से शुरू होती है आस्था की जीत। यह बिल्कुल वैसा ही है कि मानो तो देवता न मानो तो पाषाण। मन की धारणाएं और प्रबल विश्वास ही आस्था है इसी से जन्म लेती है मान्यताएं। ऐसा नहीं कि इस मान्यता को यूं ही मान लिया जाए। क्षेत्र की उन महिलाओं से बात की जिन्होने दियारी व्रत लिया और उनको निश्चित समय में संतान प्राप्ति हुई। गरूड़ क्षेत्र में ही ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे या कहें कि प्रत्येक गॉव में ऐसे उदाहरण हैं। लेकिन व्यक्तिगत सूचनाएं होने की वजह से नाम सार्वजनिक नहीं किए जाते। दियारी मेले में एक मित्र मिले उन्होने कहा कि शादी के सात साल बाद दियारी मेले में व्रत लेने के बाद उनको संतान प्राप्ति हुई। यही वजह है कि दियारी मेले में निःसंतान दंपती दूर-दूर से यहां आते हैं और व्रत अनुष्ठान करने के बाद संतान प्राप्ति का सुख भोगते हैं।
कुमॉउ ही नहीं वरन गढ़वाल क्षेत्र से भी भक्त कोट भ्रामरी मंदिर में दियारी व्रत लेने आते हैं। इस व्रत के दौरान 24 घंटे तक बिना पानी पिए जलता दिया हाथ में लेकर मां का ध्यान लगाना होता है। व्रत वाली महिलाओं के साथ कोई एक महिला उनके परिवार से होती है जो रात भर दिए में तेल डालती है, दिया 24 घंटे तक अखण्ड रहना चाहिए यह महत्वूर्प शर्त होती है। दियारी व्रत संपन्न होने के बाद विधि विधान से पूजा पाठ करती है और व्रत संपन्न होता है। कोट भ्रामरी का दियारी मेला उत्तराखण्ड में प्रसिद्ध है। आस्था और विश्वास से हजारों निःसंतान दंपतियों को संतान का सुख मिला है। कुछ लोग इसे पुत्र प्राप्ति व्रत से भी प्रचारित करते हैं, यह शोध का विषय हो सकता है लेकिन संतान प्राप्ति के लिए दंपती यहां सदियों से जुटते रहें हैं। चैत मॉह में कोट भा्रमरी का आभा मंडल आस्था से परिपूर्ण और माता के जयकारों से गूंजायमान रहता है।

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कब खुलेगा बैजनाथ संग्रहालय : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10704?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25ac-%25e0%25a4%2596%25e0%25a5%2581%25e0%25a4%25b2%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%2597%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25ac%25e0%25a5%2588%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25a8%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a5-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%2597%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25be https://swarswatantra.in/archives/10704#respond Thu, 03 Apr 2025 01:18:59 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10704 बैजनाथ संग्रहालय, जो 1983 से बंद पड़ा है और जिसमें सातवीं सदी की 108 ऐतिहासिक मूर्तियां संरक्षित हैं, के खुलने की मांग लंबे समय से उठती रही है। हाल ही में कत्यूर महोत्सव की समीक्षा बैठक में इस मुद्दे को फिर से जोर-शोर से उठाया गया। हाल में गुमानी पंत पुरस्कार से सम्मानित गोपाल दत्त ... Read more

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बैजनाथ संग्रहालय, जो 1983 से बंद पड़ा है और जिसमें सातवीं सदी की 108 ऐतिहासिक मूर्तियां संरक्षित हैं, के खुलने की मांग लंबे समय से उठती रही है। हाल ही में कत्यूर महोत्सव की समीक्षा बैठक में इस मुद्दे को फिर से जोर-शोर से उठाया गया। हाल में गुमानी पंत पुरस्कार से सम्मानित गोपाल दत्त भट्ट ने कहा संग्रहालय के खुलने से न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि राजस्व में वृद्धि होगी और कत्यूरी काल के समृद्ध इतिहास, संस्कृति व आस्था का प्रसार भी संभव हो सकेगा।
साहित्यकार मोहन जोशी ने कहा कि गरुड़ में हेली सेवा शुरू होने से पर्यटकों का बैजनाथ धाम तक पहुंच आसान हुआ है, जिससे पर्यटकों की संख्या में इजाफा होने की संभावना बढ़ी है। ऐसे में संग्रहालय का बंद रहना एक बड़ा अवरोध हो सकता है।
पूर्व विधायक ललित फर्सवान ने इस मांग का पुरजोर समर्थन किया है। उनका कहना है कि बैजनाथ धाम, जो भारत और वैश्विक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, कत्यूरी शासन के एक हजार साल के इतिहास को अपने में समेटे हुए है। इस क्षेत्र के मंदिर, जो कत्यूरी काल में बने, पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं।
हालांकि, संग्रहालय के ताले कब खुलेंगे, इस सवाल का अभी कोई ठोस जवाब नहीं मिल सका है। यह मामला स्थानीय प्रशासन और संबंधित अधिकारियों के समक्ष विचाराधीन है। संग्रहालय को खोलने के लिए सरकारी स्तर पर योजना, बजट और संरक्षण कार्यों की जरूरत होगी, जिसमें समय लग सकता है। फिर भी, जनता की मांग और कत्यूर महोत्सव की समीक्षा बैठक में उठे स्वरों से यह स्पष्ट है कि इस दिशा में जल्द कदम उठाने की आवश्यकता है। संग्रहालय के खुलने से न सिर्फ बैजनाथ की धरोहर को नई पहचान मिलेगी, बल्कि यह क्षेत्र पर्यटन मानचित्र पर और भी प्रमुखता से उभरेगा।
फिलहाल, इस बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन जन दबाव और समर्थन को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि कत्यूर महोत्सव में उसे जनता के लिए खोला जाए।
विपिन जोशी
संपादक,स्वर स्वतंत्र

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बढ़ते आवारा पशु https://swarswatantra.in/archives/10679?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2586%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25a8%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25b5%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25b6%25e0%25a5%2580 https://swarswatantra.in/archives/10679#respond Sat, 29 Mar 2025 01:32:50 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10679 विपिन जोशी गरुड़ में आवारा पशुओं के खिलाफ बढ़ता आक्रोश, संवेदनाओं का हनन और प्रशासन की चुप्पी । गरुड़ में आवारा पशुओं पर लोगों का गुस्सा अब थमने का नाम नहीं ले रहा। मानवीय संवेदनाओं का हर दिन मखौल उड़ रहा है। एक तरफ गाय को माता का दर्जा देकर गगरास खिलाने की परंपरा निभाई ... Read more

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विपिन जोशी
गरुड़ में आवारा पशुओं के खिलाफ बढ़ता आक्रोश, संवेदनाओं का हनन और प्रशासन की चुप्पी ।
गरुड़ में आवारा पशुओं पर लोगों का गुस्सा अब थमने का नाम नहीं ले रहा। मानवीय संवेदनाओं का हर दिन मखौल उड़ रहा है। एक तरफ गाय को माता का दर्जा देकर गगरास खिलाने की परंपरा निभाई जाती है, धार्मिक आयोजनों में गौदान से पुण्य कमाया जाता है और वैतरणी पार करने का विश्वास जताया जाता है, वहीं दूसरी ओर जब वही गाय दूध देना बंद कर देती है, तो उसे सड़कों पर बेसहारा छोड़ दिया जाता है। यह कैसी धार्मिकता है? क्या यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा नहीं ?
महिलाओं का आंदोलन और गौ सेवा सदन पर दबाव ,आवारा मवेशियों के खिलाफ आक्रोश अब सड़कों पर उतर आया है। बैजनाथ, गागरीगोल और भकुनखोला से आई महिलाओं का एक दल पहले बहुउद्देशीय शिविर गरुड़ पहुंचा और फिर नारेबाजी करते हुए गौ सेवा सदन तक मार्च किया। वहां उन्होंने आवारा मवेशियों को फिर से गौ सदन में बांध दिया। पिछले दो महीनों से ये महिलाएं कभी तहसील तो कभी गौ सेवा सदन में मवेशियों को छोड़कर अपना विरोध जता रही हैं। गौ सेवा सदन के संचालक विनोद कांडपाल का कहना है कि उनके पास अब अतिरिक्त मवेशियों के लिए जगह नहीं बची। वर्तमान में 130 मवेशी पहले से मौजूद हैं, जिसके चलते स्थिति अनियंत्रित हो रही है। महिलाएं अपनी एक सूत्रीय मांग पर अडिग हैं। उनका कहना है कि गौ सदन को दूसरी जगह स्थानांतरित किया जाए, ताकि अधिक मवेशियों को आश्रय मिल सके। यह मांग न केवल जायज है, बल्कि गंभीर हालात को देखते हुए तत्काल कार्रवाई की जरूरत को भी उजागर करती है।
सरकारी योजना लंबित
जिला पशु अधिकारी के अनुसार, गरुड़ के जैसर में 6 नाली भूमि पर 58 लाख 50 हजार रुपये की लागत से 150 मवेशियों के लिए एक गौशाला बनाने की योजना स्वीकृत हुई है। लेकिन यह योजना अभी शासन स्तर पर अटकी पड़ी है और निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है। कागजों में भले ही योजना तैयार हो, लेकिन जमीनी हकीकत में कोई प्रगति नजर नहीं आती।
प्रशासन की खामोशी और चुनावी चुनौती।
आवारा पशुओं की समस्या दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है, लेकिन प्रशासन की चुप्पी समझ से परे है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव सिर पर हैं, और यह मुद्दा कहीं नेताओं के लिए गले की हड्डी न बन जाए। जनता का आक्रोश अब सड़कों पर है, और यदि इसे अनदेखा किया गया तो यह राजनीतिक परिणामों को भी प्रभावित कर सकता है।
गरुड़ में यह विडंबना न केवल सामाजिक और धार्मिक मूल्यों पर सवाल उठाती है, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता को भी उजागर करती है। जरूरत है एक ठोस और त्वरित समाधान की, ताकि न गाय माता सड़कों पर भटकने को मजबूर हो, न ही जनता को अपने हक के लिए बार-बार सड़कों पर उतरना पड़े। क्या यह संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का समय नहीं है?

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किन्नरों की मनमानी क्षेत्र में आक्रोश : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10617?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a8%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25a8%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%25a8%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a8%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%2596 https://swarswatantra.in/archives/10617#respond Wed, 26 Feb 2025 01:58:16 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10617 अपनी आस्था से जो नजराना किन्नरों को मिले उनको स्वीकार करना चाहिए.

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तैलीहाट गांव के ग्रामीणों में किन्नरों की बेतहाशा वसूली के खिलाफ आक्रोश व्याप्त है। 2024 में गरुड़ के मालदे गांव के ग्रामीणों ने एसडीएम गरुड़ को तहसील दिवस के अवसर पर किन्नरों की मनमानी के खिलाफ ज्ञापन भी सौंपा था। ग्रामीणों 25 फरवरी मंगलवार को किन्नरों की मनमानी पर तैलीहाट, भकुनखोला, बैजनाथ के ग्रामीणों ने गरूड़ तहसील में एसडीएम गरूड़ जितेन्द्र वर्मा को ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि किन्नर समाज भी हमारे सामाजिक तानेबाने का हिस्सा है। लेकिन उनके द्वारा मनमानी से की गई वसूली को बर्दास्त नहीं किया जाएगा।
गरुड़ क्षेत्र में किन्नरों के अपने एजेंट भी हैं जो उनको ग्रामीण क्षेत्र में शादी, जनेऊ, नामकरण, ग्रह प्रवेश की खबर देते हैं इन ऐंजेटों का फिक्स कमिशन भी किन्नर तय करते हैं। किन्नरों का जिले वार अपना उगाही तंत्र भी है। इलाके वार किन्नर बंटे हैं करोड़ों में इलाके की बोलियां भी लगती हैं यह उनका अपना संचालन तंत्र है। ग्रामीणों का कहना है कि अपनी खुशी से कोई परिवार किन्नरों को जितना नजराना दे किन्नरों को उसे स्वीकार करना चाहिए। लेकिन किन्नर दस से बीस हजार तक की डिमांड करते हैं। किसी गरीब परिवार के लिए इतनी रकम देना संभव नहीं हो पाता। इसलिए क्षेत्र के ग्रामीणों ने उपजिलाधिकारी गरूड़ को प्रस्ताव दिया कि किन्नरों की मनमानी और अराजकता पर अंकुश लगे।
उपजिलाधिकारी गरूड़ ने स्वर स्वतंत्र से बात करते हुए कहा कि किन्नरों के प्रति सम्मान भाव है और उनको गॉव में आने से नहीं रोका जा सकता है। परन्तु किन्नरों को भी मनमानी नहीं करनी चाहिए। शुभ अवसरों पर वसूली का कोई कानूनी नियम नहीं है। उनको आस्था और खुशी से जो जितना नजराना दे स्वीकार करना चाहिए। किसी भी प्रकार की अराजकता के लिए ग्रामीण पुलिस हैल्प लाइन नंबर का उपयोग कर सकते हैं।
किन्नरों की मनमानी के खिलाफ ज्ञापन सौपने वालों में सरपंच कैलाश मेहरा, निवर्तमान ग्राम प्रधान पुष्पा देवी, ठाकुर मेहरा, एडवोकेट गिरीश कोरंगा, भूपाल दोसाद, दयाल सिंह, नन्दन सिंह, बसंत नेगी, कैलाश चन्दोला, महेंद्र मेहरा, दरवान सिंह, पूरन सिंह, प्रेम चन्द्र, आदि शामिल रहे।

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अलविदा दिसंबर 2024 : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10534?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2585%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a6%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25a6%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25ac%25e0%25a4%25b0-2024-%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%259c%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25b6%25e0%25a5%2580 https://swarswatantra.in/archives/10534#respond Mon, 23 Dec 2024 01:51:15 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10534 दिसंबर के साथ साल 2024 विदाई लेने को तैयार है. वक्त मुट्ठी में कसी रेत की मानिंद फिसल रहा है. लेकिन दूर दूर तक बारिश का नामोनिशा नहीं है. गेहूँ के खेत सूख चुके हैं, नहरों में झाड़ियाँ जमी हुई हैं लिफ्ट योजना के पंप जवाब दे चुके हैं. गेहूँ को पाला यानी तुषार मार ... Read more

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दिसंबर के साथ साल 2024 विदाई लेने को तैयार है. वक्त मुट्ठी में कसी रेत की मानिंद फिसल रहा है. लेकिन दूर दूर तक बारिश का नामोनिशा नहीं है. गेहूँ के खेत सूख चुके हैं, नहरों में झाड़ियाँ जमी हुई हैं लिफ्ट योजना के पंप जवाब दे चुके हैं. गेहूँ को पाला यानी तुषार मार देता है यदि समय पर सिंचाई ना हो तो पंप से सिंचाई करना महंगा हो गया है पेट्रोलियम महंगा हुआ तो सिंचाई भी महँगी हो गई. चलिए सिचाईं कर भी दी तो बची ख़ुशी कसर आवारा गाय, बैल और बंदरों ने पूरी कर दी है. बंदर के साथ जंगली सुवरों का आतंक भी खुल कर सामने आ चुका है. बंदरों ने लोगों को गंभीर रूप से चोटिल किया है तो कुछ मामलों में जान भी गवाई है.
किसान दो तरफा मार झेलने को विवश हैं. मौसम, तुषार और सूखे की मार से बचे तो जंगली जानवरों का ख़ौफ़ मुंह बाएं खड़ा रहता है. बंदरों से मुक्ति का कोई उपाय सूझे उससे पहले घर, खेत, रास्ते में गुलदार खड़ा घूरता है. यानी प्रकृति ने हर ओर से दस्तक दी है. चलिए दिसंबर में पिघलते हिमालय को काला पड़ते देख कुछ दुःख कर जैसे ही सभलते हैं तो कागज पत्री के चक्कर आदमी को घनचक्कर बना रहे हैं. हर दस्तावेज का डिजिटलाइजेशन हो गया है उस प्रक्रिया में कागज पाती का काम और मुश्किल हो गया है. आधार कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, बच्चों का वजीफा, आवास योजना के कागज और भी तमाम तरह के दस्तावेज. आम आदमी के को उलझाए रखने के बहुत अच्छे टूल हैं. सरकार दिखावे के लिए दूर दराज गावों में बहुउद्देशीय शिविर भी लगाती हैं लेकिन इन शिविरों की हकीकत हमको मालूम है, जैसे तहसील दिवस की औपचारिकता को सभी जानते हैं. शिकायत दर्ज तो जाती है परंतु समाधान होता नहीं दिखता.
गुजरते बीतते दिसंबर के आख़िरी सप्ताह में एक नजर इन्फ्रास्ट्रक्चर्स पर भी डाल लेते हैं. सड़क सुरक्षा सप्ताह धूम धाम से मनाया जाता है. लेकिन लंबित पड़ी सड़कों की सुध नहीं ली जाती है. सड़कों का नया डामरीकरण दो सप्ताह में उतर जाता है. आधी अधूरी घटिया सड़कें सड़क सुरक्षा और सुशासन के दावों को खारिज करती हैं .
अब शिक्षा व्यवस्था को देखें तो शिक्षा का बाजारीकरण और माफियाकरण दोनों तीव्रगति से फ़ैल रहा है. प्राइवेट स्कूलिंग विशुद्ध रूप से बाज़ारीकरण में लिप्त है तो वहीं सरकारी शिक्षा व्यवस्था को एनजीओ कल्चर धीरे धीरे घुन की तरह खोखला कर रहा है, सरकार की निजीकरण नीति एक दिन सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर भारी पड़ेगी तब सरकारी शिक्षा में गहरी सेंध लगा चुका एनजीओ कल्चर का सच सार्वजनिक होगा लेकिन क्या कन तब जब चिड़िया चुग गई खेत.
स्वास्थ्य व्यवस्था ख़ुद आईसीयू में बेहाल पड़ी है. ना जाने क्या हो गया है दिसंबर के जाते जाते बहुत जवान अधेड़ आयु वर्ग के लोगों को हृदय घात जैसी बीमारी के चलते दिवंगत होते देखा है. इस बात का गहन विश्लेषण भी कोई कर रहा होगा कि कोविड काल के बाद हृदयघात, ब्रेन हैमरेज जैसे मामलों में कितनी तेजी आई है .
कभी तो अवश्य सच सामने आयेगा इस बात पर भरोसा करने के अलावा जनता के पास कोई दूसरा रास्ता है क्या ? शायद नहीं.
दिसंबर तो चला जाएगा, तारीखें बदलेंगी, मौसम बदलेगा, कौन जाने बदलते बदलते सत्ता भी बदल जाए. इस बात पर भी भरोसा कर ही लेते हैं कि जब कभी सत्ता बदलेगी तो दुःख, अन्याय, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण, महंगाई से राहत मिलेगी, मिलनी तो इनसे मुक्ति चाहिए चलो राहत से भी काम चला लेंगे.
सब कुछ ग़लत और अशुभ तो नहीं घटा किसी के लिए शुभ और अच्छा सुखद भी रहा होगा 2024 तो उनको बधाई ऐसे लोगों का आने वाला कल और सुखद हो, ऐसी दुआ प्रार्थना करते हैं.
मानवीय हस्तक्षेप और अप्रासंगिक विकास नीतियों ने ग्लोबल वार्मिंग को न्यौता दिया जिसके दुष्परिणाम आज साफ़ तौर पर सामने दिख रहे हैं . काला पड़ता हिमालय, बदलता मौसम चक्र ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज के असर को भी दर्शा रहा है. ऐसे में भविष्य में बहुत सुखद महसूस होने के संकेत तो नहीं दिखते हैं. सामने भयानक संकट की आहट महसूस होती है.
इसलिए हे दिसंबर 2024, अब तक जो हुआ सो हुआ आगे के लिए हमारे बुद्धिजीवियों, नीतिनियंताओ, राजनीतिक दलों के नेताओं को सदबुद्धि प्रदान करना ताकि अब भविष्य में कोई बड़ी आपदा ना आने पाए. आपदा के बाद पीछे छूट जाती हैं एक टीस, अपनों की याद और बहुत से दुखद एहसास.

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भीमराव अंबेडकर का अपमान क्यों : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10531?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25ad%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b5-%25e0%25a4%2585%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25ac%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25a1%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%2585%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%2595 https://swarswatantra.in/archives/10531#respond Fri, 20 Dec 2024 02:09:48 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10531 संसद में देश के गृहमंत्री ने डाक्टर भीमराव अंबेडकर पर अमर्यादित टिप्पणी करके पूरे देश में खलबली मचा दी है. कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष आज भीमराव अंबेडकर के अपमान पर आक्रोशित है. पिछड़े और हाशिए के लोगों के लिए डाक्टर भीमराव अंबेडकर उनकी विचारधारा के आराध्य हैं. संविधान प्रद्दत लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्षधर लोग अब ... Read more

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संसद में देश के गृहमंत्री ने डाक्टर भीमराव अंबेडकर पर अमर्यादित टिप्पणी करके पूरे देश में खलबली मचा दी है. कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष आज भीमराव अंबेडकर के अपमान पर आक्रोशित है. पिछड़े और हाशिए के लोगों के लिए डाक्टर भीमराव अंबेडकर उनकी विचारधारा के आराध्य हैं. संविधान प्रद्दत लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्षधर लोग अब गृहमंत्री अमित साह के ख़िलाफ़ बड़े स्तर पर आंदोलन की तैयारी में हैं. संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने वालों की सूची में भीमराव अंबेडकर का नाम सबसे ऊपर दर्ज है. भीमराव अंबेडकर करोड़ो लोगो के लिए आदर्श और प्रेरणास्रोत हैं ऐसे में गृहमंत्री अमित शाह के द्वारा अपमान जनक व्यवहार पर आक्रोश बढ़ता जा रहा है. राजनैतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि यह घटना जनता का ध्यान भटकाने के लिए आयोजित की गई. सदन में अंबेडकर के अपमान की घटना के बाद बीजेपी सांसद ने विपक्ष के नेता राहुल गांधी पर धक्का मुक्की का आरोप लगाया और वे हॉस्पिटल में भर्ती हो गए. बीजेपी के सांसदों ने विपक्ष को सदन के अंदर जाने से रोका. लाठी डंडे लेकर बीजेपी के सांसद क्यों खड़े थे ? क्या भीमराव अंबेडकर सिर्फ दलितों के मसीहा थे ? अंबेडकर ने मानवता की बात की थी और दलितों को लोकतांत्रिक अधिकार दिलाने की बात की थी क्या ऐसा करना उचित नहीं था ? समाज के कुछ वर्ग किसी वर्ग का सामाजिक शोषण नहीं कर सकते. इस बात की पैरवी भीमराव अंबेडकर ने की थी. लेकिन बीजेपी के वरिष्ट नेता गृहमंत्री अमित शाह ने अपने बयान में मन की बात कर दी. जब मन की बात जुबा पर आई है तो हंगामा मचना तय है. देश भर के दलित अब सड़कों पर होंगे और आंदोलनात्मक प्रदर्शन से अपनी बात आगे पहुचाएँगे.
भीमराव अंबेडकर के अपमान के बाद दलित वोट बैंक से बीजेपी को आगामी चुनाव में भारी नुक़सान उठाना पड़ेगा. क्योंकि भीमराव अंबेडकर ने दलितों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी . सामाजिक समरसता कायम करने के लिए और जाति व्यवस्था को खत्म करने के लिए भीमराव अंबेडकर मील का पत्थर हैं. इसलिए भीमराव अंबेडकर के अपमान का मामला बीजेपी को भारी पड़ेगा. समता, समानता और न्याय की बात करने वाले नेता का अपमान कोई भी नागरिक सहन नहीं कर सकता. क्योंकि भीमराव अंबेडकर सभी राजनैतिक दलों के लिए पूज्य थे और रहेंगे. अब गृहमंत्री अमित शाह देश से माफ़ी माँग लें तो भी यह मुद्दा शांत होने वाला नहीं है. इसका परिणाम आने वाले दिनों में और ज़्यादा भयावह होगा. इस बात को बीजेपी के रणनीतिकार जितनी जल्दी समझ लें उनके लिए अच्छा होगा. भीमराव अंबेडकर के अपमान का मामला और तूल पकड़ेगा.

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क्यों जरूरी है समता सदभावना संवाद : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10500?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25af%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%2582%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2588-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25a4%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25a6%25e0%25a4%25ad%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b5 https://swarswatantra.in/archives/10500#respond Tue, 03 Dec 2024 03:21:38 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10500 धरती का हर जीव सम्मान के लिए जीता है। मनुश्य किसी भी देश या समाज का हो उसके लिए जीवन में पहली प्राथमिकता होती है सम्मान पूर्वक जीवन चर्या। जिसे पाने के लिए शिक्षा और परिवार उसका सहारा बनती है। परिवार में बेहतर संबंधों के साथ जीवन निर्वहन हो सके इसके लिए देश और संविधान ... Read more

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धरती का हर जीव सम्मान के लिए जीता है। मनुश्य किसी भी देश या समाज का हो उसके लिए जीवन में पहली प्राथमिकता होती है सम्मान पूर्वक जीवन चर्या। जिसे पाने के लिए शिक्षा और परिवार उसका सहारा बनती है। परिवार में बेहतर संबंधों के साथ जीवन निर्वहन हो सके इसके लिए देश और संविधान और जीवन मूल्य हैं। संवैधानिक मूल्यों का निर्वहन देश हित के साथ करते हुए विकास की राह में हर नागरिक अपनी भूमिका तय करता है। लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ सभी वर्गो व धर्म के लोग सदभावना के साथ सामाजिक समता को महसूस कर सकें और न्याय परक सामाजिक व्यवस्था में जी सकें यही उद्देश्य भारत के संविधान का रहा है। भारतीय संविधान में समरसता और न्याय का समावेश है। प्रत्येक नागरिक को मूलभूत सुविधाएं और अधिकार प्राप्त हैं। जीवन जीने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, भोजन का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, विचार अभिव्यक्ति का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार मूलभूत अधिकारों में प्रमुख हैं।
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी ने समाज के वंचित तबको के लिए सम्मान और समता की लड़ाई लड़ी। संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाबा साहेब का परिनिर्वाण दिवस 6 दिसंबर को मानाया जाता है। इस दिन लोकतंत्र के समर्पित सिपाही के जीवन को उनके कार्यो व सिद्धान्तो को याद किया जाता है। समाज के सभी वर्गो के लोग एकत्र होकर समानता और सदभावना के विचार को अपने जीवन में उतारने के लिए एकत्र होते हैं। साथ में मौजूदा सामाजिक राजनैतिक परिस्थितियों पर विमर्श करते हैं। आजादी के बाद भारत ने विकास के कई पायदान पार किए हैं। हमारे समाज का सामाजिक और आर्थिक जीवन बेशक बेहतरी की ओर अग्रसर हुआ है। विज्ञान और आधुनिकता ने हमें सोचने और अभिव्यक्त होने के नए अवसर दिए हैं। लेकिन इतना होने के बाद भी क्या हम सभी सम्मान और समता महसूस कर पाए हैं। जातिवाद और असमानता तथा लैंगिक विभेद, घरेलू हिंसा जैसे कई मुद्दे हमारे आसपास ही तैर रहे हैं। बेशक हम आधुनिक हुए हैं लेकिन आधुनिकता का असल विचार हमारी कार्य संस्कृति में कहीं दिखता भी नहीं। गांधी ने भी आधुनिकता पर कहा था कि आधुनिकता यदि इंसानी सभ्यता पर हावी होती है, मशीने यदि मानव का श्रम छीनती हैं तो ऐसी आधुनिकता समाज में असमानता की गहरी खाई पैदा करेगी। आज हम वैश्विक तौर पर गांधी जी के कथन को देख सकते हैं। ऐसी कौन सी शक्ति है जो अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए सामाजिक विभेद और उन्माद का प्रसार करती है। हमें संगठित होकर इन शक्तियों का मुकालबा करना होगा और समता, न्याय, सद्भावना के विचार को समझना होगा। हम सभी अपने दिल में हाथ रखकर सोचे और ईमानदारी से महसूस करे तो पाएंगे कि बाहर से समानता और समतावादी समाज में आंतरिक रूप से कितनी गहरी असमानता अभी भी कायम है। जाति और धर्म की गहरी रेखाएं हमारे मनों में खीच दी गई है। अगड़े पिछड़े का भाव हर पल हमारे दिमाग में डाला जाता है। किसी वर्ग विशेश के प्रति या जाति के प्रति वैमनस्य का भाव क्यों पैदा किया जाता है। हम भारत के लोग की विचारधारा को असमानता के मौजूदा मॉडल से धक्का लगता है, गहरी चोट भी लगती है। मानव रूप में विशिश्ठ होने का भाव, सर्वर्सेश्ठ होने का भाव प्रकृति प्रदद विविधता के साथ खिलवाड़ ही तो है। प्रकृति में कोई विभेद या असमानता नहीं है विविधतता है। प्रकृति के हर घटक का दूसरे घटक के साथ एक संबंध है जिसके असंतुलित होने से प्राकृतिक विपदाएं जन्म लेती हैं। इसी उदाहरण को मानव समाजों में देखें तो यहां विविधता के विचार को पनपने से पहले ही कुचलने की मनोवृति बना दी गई है। इसके लिए कौन दोशी है? यदि हम अपने इतिहास से सीखेंगे नहीं और वर्तमान का तथ्यपरक तार्किक विश्लेशण नहीं करेंगे तो यह सवाल हमेशा हमारे सामने बना रहेगा।
बाबा साहेब तो एक निमित्त हैं उनके परिनिर्वाण दिवस पर हम सभी ईमानदारी से समता और सदभावना के विचार को समझें और अपने जीवन में इस विचार को ढाल सकें। आज के संवाद का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी है कि हम व्यक्तिगत तौर से समानता और समता को जीने के लिए प्रतिबद्धता दिखाएं। वैचारिक समानता भी तभी आएगी तब व्यवहारिक समानता हमारे जीवन में, हमारी कार्य संस्कृति में दिखेगी। वह चाहे कोई संस्था हो या हमारा पारीवारिक जीवन। एक ऐसा समाज जहां सभी धर्म, जाति के लोग समता मूलक वातावरण में मधुर संबंधों के साथ जीते हों आज भी देश भर में दिख जाएंगे और उन्माद हिंसा का समर्थन करने वाले कुछ चंद लोग भी दिख जाएंगे। लेकिन हमें समता और सदभावना के साथ जीने वाले समाज की चाह रखनी चाहिए। ऐसा होगा सार्थकता पूर्ण शिक्षा के प्रसार और सामाजिक मुद्दों पर किए जाने वाले विमर्श से। प्रत्येक गॉव में एक छोटा सा पुस्तकालय हो, पढ़ने लिखने की संस्कृति विकसित हो और विमर्श केन्द्र बने। चाय की दुकानों में ताश खेलने से समता स्थापित नहीं होगी। समता और सदभावना के लिए हमें अपनी सोच बदलनी होगी। यह कार्य इतना आसान भी नहीं, लेकिन कठिन भी नहीं है। क्योंकी मानव का मूल स्वभाव में समता और न्याय निहित है, सम्मान निहित है, मानव कल्याण परस्पता की भावना निहित है। हमने नकली विकास के नाम पर दिखावे का एक बाहरी आवरण ओढ़ लिया है जिसे उतारे बिना समता और समानता का विचार समझना एक प्रकार से दिखावा ही होगा। गरूड़ कत्यूर घाटी में बाबा साहेब को श्रृद्वांजली और संवाद का यह आयोजन एक शुभ संकेत है। भविश्य में और अधिक लोग इस वैचारिक आयोजन से जुड़ कर समता मूलक समाज निर्माण के विचार में अपने योगदान की आहुति देंगे इस शुभ इच्छा के साथ। आप सभी का आभार।

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पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग की लापरवाही https://swarswatantra.in/archives/10478?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%2581%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a4%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b5-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b5%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b7%25e0%25a4%25a3-%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25ad https://swarswatantra.in/archives/10478#respond Wed, 20 Nov 2024 09:29:27 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10478 पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग की लापरवाही विपिन जोशी उत्तराखण्ड, बैजनाथ तैलीहाट मंदिर समूह के जीर्णोद्धार में विगत दो वर्ष पूर्व पुराने ढांचे को पुनः नए तरीके से विकसित किया गया. मंदिर अपने पुरातन वास्तुकला के स्वरूप में रहे इसके लिए भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग बनाया गया विभाग की ज़िम्मेदारी है कि पुरातन संस्कृति और विरासत की ... Read more

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पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग की लापरवाही
विपिन जोशी
उत्तराखण्ड, बैजनाथ तैलीहाट मंदिर समूह के जीर्णोद्धार में विगत दो वर्ष पूर्व पुराने ढांचे को पुनः नए तरीके से विकसित किया गया. मंदिर अपने पुरातन वास्तुकला के स्वरूप में रहे इसके लिए भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग बनाया गया विभाग की ज़िम्मेदारी है कि पुरातन संस्कृति और विरासत की निशानी के रूप में संरक्षित स्मारक अपने मूल स्वरूप में रहे. लेकिन मंदिरों का जीर्णोद्धार मानकों के अनुकूल नहीं किया गया है.अल्मोड़ा रीजन के पुरातात्विक अधिकारी नीरज मैथानी से दूरभाष पर हुई बात चीत में उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि मंदिरों के गर्भ ग्रह में तांबे की चादर लगानी चाहिए थी लेकिन बैजनाथ और तैलीहाट मंदिर समूह में टीन की सामान्य चादर लगाई गई हैं.मंदिरों की दीवारों में कैमिकल के साथ साथ सीमेंट का उपयोग भी किया गया है. आरटीआई कार्यकर्ता गोपाल वनवासी ने उक्त मामले की रिपोर्ट पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को कर दी है.
प्राचीन मंदिर रक्षक देवल में अतिरिक्त नए पत्थर जोड़े गए हैं जो मंदिर के पुरातन स्वरूप को परिवर्तित करते हैं. पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग स्मारकों के रखरखाव के नाम पर गुणवत्ता पूर्ण कार्य में हील हवाली करता दिख रहा है. रक्षक देवल और सत्यनारायण मंदिर में काफ़ी सारा मलवा भी पड़ा है.सौंदर्यीकरण हुआ है तो मंदिर परिसर में अभी तक मलवा क्यों पड़ा है ? पर्यटन विभाग की अनदेखी के साथ साथ यह पुरातन स्मारकों के साथ छेड़ छाड़ का मामला भी है.

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पशु धन स्मृद्धि का प्रतीक लिंग देव कौतिक : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10466?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25b6%25e0%25a5%2581-%25e0%25a4%25a7%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%2583%25e0%25a4%25a6%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25a7%25e0%25a4%25bf-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%2595 https://swarswatantra.in/archives/10466#respond Fri, 15 Nov 2024 08:48:16 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10466 लिंग देवता के मंदिर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ पशुपालकों ने देवता को चढ़ाई धिनाली पूजा अर्चना कर खुशहाली की मांगी मन्नत गढ़वाल से भी भारी संख्या में पहुंचे भक्तगण गरुड़। कत्यूर घाटी के दूरस्थ क्षेत्र में हरे-भरे जंगलों के बीच स्थित प्रसिद्ध लिंग देवता मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। हर समाज के अपने ... Read more

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लिंग देवता के मंदिर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
पशुपालकों ने देवता को चढ़ाई धिनाली
पूजा अर्चना कर खुशहाली की मांगी मन्नत
गढ़वाल से भी भारी संख्या में पहुंचे भक्तगण
गरुड़। कत्यूर घाटी के दूरस्थ क्षेत्र में हरे-भरे जंगलों के बीच स्थित प्रसिद्ध लिंग देवता मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। हर समाज के अपने स्थानीय लोक पर्व होते हैं जिनके प्रति आम जन में खास उत्साह देखा जाता है. उत्तराखंड की संस्कृति में खेती किसानी और पशुधन पर आधारित लोक पर्व है लिंग थान का कौतिक जो दिवाली के बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगता है. 15 नवंबर 2024 को गरुड़ ग़ैरलेख़ में लिंग थान का कौतिक लगा जहाँ श्रद्धालुओं ने लिंग देवता की पूजा अर्चना की और पशुपालकों ने देवता को धिनाली चढ़ाई। मक्खन का भोग लगाया।
गरुड़ पिंगलो घाटी के ग़ैरलेख़ में स्थित लिंग देवता मंदिर में शुक्रवार को भव्य मेला आयोजित किया गया। मेले में कत्यूर घाटी के दर्जनों गांवों के पशुपालक समेत ग्वालदम, देवाल से भी लोग पूजा-पाठ करने पहुंचे थे। क्षेत्र के पशुपालकों ने लिंग देवता को दूध, दही, घी, मक्खन का भोग लगाया और अपनी सुख-समृद्धि के अलावा पशुओं के लिए मन्नत मांगी। ऐसी मान्यता है कि लिंग देवता को मक्खन का भोग लगाने से धिनाली में वृद्धि होती है और पशुओं में भी बरक्कत आती है। इस मौके पर नौघर, सिटोली, माल्दे, गैरलेख, पिंगलों, मैगड़ीस्टेट, छ्त्यानी, मजकोट समेत ग्वालदम, देवाल, थराली, लोल्टी आदि क्षेत्रों से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे थे। इस दौरान जिपंस गोपाल सिंह किरमोलिया, भावना दोसाद,नंदन सिंह अल्मिया, भैरव नाथ टम्टा, सुनील दोसाद, दिनेश बिष्ट, बबलू नेगी, दिनेश नेगी, कैलाश पुरी,नवीन राम, सूरज बिष्ट, सुरेंद्र दोसाद, पंडित दीप लोहनी, रमेश कांडपाल, कैलाश जोशी, ललित कांडपाल, गोपाल दत्त, गिरीश तिवारी, कविता नेगी, इंद्रा फर्सवाण आदि मौजूद थे।

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