Vipin Joshi
लोक सभा चुनाव के परिणाम के बाद संघ और बीजेपी में तकरार बढ़ गई है. इस बात का संकेत सर संघ संचालक मोहन भागवत के बयान से पता चलता है . जिसमे मोहन भागवत कहते हैं सेवक को अहंकार नहीं करना चाहिए , काम करना चाहिए , साथ में भागवत ने मणिपुर हिंसा पर भी पहला बयान दिया और जलते मणिपुर पर सवाल करते हुवे कहा कि किसकी जिम्मेदारी है मणिपुर में शांति बहाल करना. इस बार चुनाव प्रचार में भी संघ ने बहुत सक्रियता नही दिखाई जिसका असर मोदी के चार सौ पार वाले सपने में पड़ा और अकेले बीजेपी बहुमत के नम्बर से काफी पीछे 240 पर रह गई. और घटक दलों के साथ मिलकर गठबंधन में चली गई यहाँ से एक अकेला सब पर भारी की कहानी भी बदल गई. अब सब दलों को साथ लेकर चलने की मजबूरी होगी और सत्ता की हनक पर भी कुछ लगाम लगेगी. सहयोगी दल अपनी मांगों को लेकर मुखर होंगे, एक तरफ चंद्रबाबू नायडू हैं जो आन्ध्र को विषेश दर्जा दिलाने की मांग कर चुके हैं, तो नितीश कुमार भी बिहार के लिए विषेश दर्जे की मांग करंगे और इनके पलटने की भविष्वाणी तो भगवान् भी नहीं कर सकते. मौजूदा राजनीति में सबसे बड़ा सरप्राइज अगर कोई दे सकता है तो वो हैं नितीश कुमार जिनका राजनैतिक अनुभव मोदी जी के अनुभव से भी बड़ा है. यह तो वक्त तय करेगा कि नितीश कुमार कब तक चन्द्रबाबू के साथ गठबंधन में रहते हुवे एनडीए की नाव में सवार रहते हैं ?
दूसरी ओर समाचार पत्र भास्कर ने एक खबर छापी है जिसमे संघ की और से सरकार को कुछ सुझाव दिए गए हैं . अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि संघ और बीजेपी में सब कुछ ठीक ठाक नहीं है चुनाव के दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा भी कह चुके हैं कि राजनीति में बीजेपी को संघ की जरुरत अब नहीं है. यहाँ से आकलन करना आसन हो जाता है कि संघ भी बीजेपी की नीतियों से या कहें मोदी जी की नीतियों से खुश नहीं है. तस्वीर का दूसरा पहलु और मजेदार है पिछले एक दशक से संघ के अधिकांश प्रचारक बीजेपी के लिए काम करते हैं और सत्ता सुख भोग रहे हैं अब उनकी जीवन शैलियों में बड़े बदलाव भी आये हैं धन का आगमन भी हुआ है कल तक किफायती जीवन जीने वाले संघ कार्यकर्ता और प्रचारक आज महंगी गाड़ियों में घूम टहल रहे हैं. सत्ता का मद वक्त के अनुसार बढ़ता जाता है वह कम नहीं होता है. इसलिए बीजेपी कुछ भी उपाय कर सत्ता में बने रहना चाहती है तो संघ अपनी हिन्दू विचारधारा को और मजबूत करने के लिए अपने लोगो को सत्ता के करीब रखना चाहती है. इधर गठबंधन में रहना सरकार की मजबूरी है अब उनको चन्द्रबाबू नायडू के मुस्लिम कार्ड के साथ चलना होगा और यह बात किसी से छुपी नहीं है कि बीजेपी के निशाने में मुस्लिम हमेशा रहे हैं इस बार के चुनाव में मंगल सूत्र से भैस तक सारे बयान इस ओर इशारा करते हैं. ऐसे में मोदी जी को कहना पड़ा कि अब कार्यकर्ता अपने स्टेटस से मोदी का परिवार श्लोगन हटा दें , यह भी संघ के दवाव का एक छोटा संकेत है. अब बीजेपी वन मैन शो से उबरना चाहती है इसके लिए संघ के फार्मूले काम आयेंगे और आने वाले दिनों में बीजेपी में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं. पिछले एक दशक में बीजेपी एक पार्टी के स्थान पर कार्पोरेट कम्पनी के रूप में तब्दील हो गई थी ऊपर से मैनेजर का आदेश आता और नीचे कार्यकर्ता आँख मूँद कर आदेश मानता जाता लेकिन इस बार कार्यकर्ताओं ने आदेश नहीं माना और मोदी जी को २४० पर ही रुकना पड़ा. इसका असर यह हुआ कि व्यक्ति पूजा की हार हुई और देश में लोक तंत्र की जीत हुई. संघ ने साफ़ कर दिया है कि अब बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष ६० साल से ऊपर का नहीं होगा. कुछ और सुझाव भी संघ ने बीजेपी के लिए जारी किये हैं . यदि बीजेपी नहीं बदली तो मोदी जी का कार्पोरेट पार्टी माडल कमजोर होता जायेगा अब बीजेपी में बहस शुरू हो गई है मोदी परिवार चलेगा या संघ परिवार के रास्ते पर चलते हुवे बीजेपी पुनः खड़ी हो जाएगी. यह महत्वपूर्ण बात है. दूसरी ओर इंडिया में लगातार बैठकों का दौर चल रहा है. विभिन्न निर्दलीय सांसद इंडिया गठबंधन के संपर्क में हैं . राजनीति के जानकार कहने लगे हैं कि एनडीए गठबंधन छह माह में बिखर जायेगा .