काफल पाको, मि नी चाख्यो

Compilation – Vipin Joshi

उत्तराखण्ड अपनी विशिष्ठ जैव विविधता और संस्कृति के लिए जाना जाता है। जीवन में सम्यकता और सहजीवन को महसूस करना हो तो उत्तराखण्ड के लोक जीवन में अनगिनत लोक गाथाएं मौजूद हैं। मौसम, फसल, पशु पक्षियों से लेकर मानव जीवन की जटिलता और नदियों पर ना जाने कितने गीत और कथाएं गढ़ी गई होंगी। ऐसी ही एक मशहूर लोक कथा है काफल पाक्यों मि नी चाख्यों। काफल फल पर आधारित यह कथा बहुत मार्मिक है। वाचिक परंपरा से आगे पहॅुचती इस कहानी को आपने अपने बचपन में जरूर सुना होगा। कहानी कुछ इस तरह है।
एक गांव में एक विधवा औरत अपनी सात साल की बेटी के साथ रहती थी। किसी प्रकार गरीबी में वो दोनों अपना गुजर बसर करते थे। एक बार माँ सुबह सवेरे घर से दूर जंगल में घास के लिए गयी और घास के साथ काफल भी तोड़ लायी। बेटी ने काफल देखे तो बड़ी खुश हुई। माँ ने कहा कि वह खेत में काम करने जा रही है, दिन में जब लौटेगी तब साथ में काफल खाएंगे। और माँ ने काफल टोकरी में रख दिए। बेटी दिन भर काफल खाने का इंतजार करती रही। बार बार टोकरी के ऊपर रखे कपड़े को उठा कर देखती और काफल के खट्टे-मीठे रसीले स्वाद की कल्पना करती। लेकिन उस आज्ञाकारी बच्ची ने एक भी काफल उठा कर नहीं चखा इंतजार किया सोचा जब माँ आएगी तब खाएंगे। आखिरकार माँ आई। बच्ची दौड़ के माँ के पास गयी और बोली माँ माँ अब काफल खाएं? मां बोली, थोडा साँस तो लेने दे छोरी। फिर माँ ने काफल की टोकरी निकाली, उसका कपड़ा उठा कर देखा, अरे ! ये क्या काफल कम कैसे हुए ? तूने खाये क्या ? नहीं माँ, मैंने तो चखे भी नहीं ! जेठ की तपती दुपहरी में दिमाग गरम पहले ही हो रखा था, भूख और तड़के उठ कर लगातार काम करने की थकान । माँ को बच्ची के झूठ बोलने से गुस्सा आ गया। माँ ने जोर से एक झाँपड़ बच्ची के सर पे दे मारा। बच्ची उस अप्रत्याशित वार से तड़प के नीचे गिर गयी और, मैंने नहीं चखे माँ कहते हुए उसके प्राण पखेरू उड़ गए। जब माँ का क्षणिक आवेग उतरा तो उसे होश आया। वह बच्ची को गोद में उठाकर प्रलाप करने लगी। ये क्या हो गया ! दुखियारी का एक मात्र सहारा था वो भी अपने ही हाथ से खत्म कर दिया !! वो भी तुच्छ काफल की खातिर ! आखिर लायी किस के लिए थी ! उसी बेटी के लिये ही तो तो क्या हुआ था जो उसने थोड़े खा लिए थे ! माँ ने उठा कर काफल की टोकरी बाहर फेंक दी। रात भर वह रोती बिलखती रही। दरअसल जेठ की गर्म हवा से काफल कुम्हला कर थोड़े कम हो गए थे। रात भर बाहर ठंडी व् नाम हवा में पड़े रहने से वे सुबह फिर से खिल गए और टोकरी पूरी हो गयी। अब माँ की समझ में आया, और रोती पीटती वह भी मर गयी। कहते हैं कि वे दोनों मर के पक्षी बन गए। और जब काफल पकते हैं तो एक पक्षी बड़े करुण भाव से गाता है काफल पाको। मैं नी चाखो (काफल पके हैं, पर मैंने नहीं चखे हैं) और तभी दूसरा पक्षी चीत्कार कर उठता है पुर पुतई पूर पूर (पूरे हैं बेटी पूरे हैं)