नवोदित रचनाकारों की रचनाएँ : चरखा दिशा टीम

ग्रामीण क्षेत्रों में लेखन से बदलाव की मुहिम.

फिर वही दिन आया है

अंशु कुमारी
मुजफ्फरपुर, बिहार

सत्य, अहिंसा और लोकतंत्र का मार्ग,
हमें हमारे संविधान ने बताया है,
2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन की मेहनत से,
भारत ने यह पवित्र संविधान पाया है,
251 पन्ने में पूरा एक भारत समाया है,
इसी संविधान ने भारत में लोकतंत्र को बताया है,
न्याय, स्वतंत्रता, समानता और धर्मनिरपेक्षता,
यही है इसकी नींव और जीवन की सापेक्षता,
दुनिया में संविधान ने भारत का मान बढ़ाया है,
तभी तो भारतवासी ने इसे सर आंखों पर बिठाया है,
संशोधन है इसकी जीवंतता का सामान और,
न्याय है इसकी नैतिकता का प्रमाण,
भारत के संविधान ने ही विश्व गुरु का मंत्र बताया है,
और दुनिया में भारत को सम्मान दिलाया है,
आज भारतीय गणतंत्र का फिर वही दिन आया है,
जिस दिन हमने इस संविधान को अपनाया है।।

चरखा फीचर्स
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मेरे शहर की सड़कें

शुभांगनी सूर्यवंशी
केकड़ी, अजमेर,
राजस्थान

मेरे शहर की सड़कें,
जहां निडरता से घूमना मेरा ख्वाब है,
जुगनू की जगमगाहट अब काफ़ी नहीं,
सड़कों पर रोशनी के खंभों का इंतजार है,
खुली राहें तो पहचानते हैं सभी,
लेकिन जहां मैं कई बार भटकी,
उन सुनसान गलियों से अभी तक अनजान हैं,
भीड़ भरी बस में अनचाहे छू लेना,
सिटी बजाकर शब्दों से चोट देना,
हॉर्न के शोर से सड़क पर डर फैला देना,
उनकी कोई गलती नहीं, ये उनका इलाका है,
ये कहकर उनकी गलतियों का बचाव करना,
तानों की गूंज और थप्पड़ों की मार से,
क़दमों पर बंदिश और सपनों पर वार से,
घर और समाज में ये सब बातें हैं आम,
विकास से दूर और निर्भरता का चेहरा,
अधिकार छीनकर अवसरों पर लगता पहरा,
हिंसा मुक्त है ये घर मेरा,
हिंसा मुक्त है ये समाज मेरा,
हिंसा मुक्त है ये सूनी सड़कें,
ये बस सुनने की बात है,
ये सब कहने की बात है।।

चरखा फीचर्स
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मेरी मां

शिवानी पाठक
कक्षा-11, उम्र-16
उत्तरौड़ा, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड

सब सहती हो मां, क्यों नहीं कुछ कहती हो मां?
चुप क्यों रहती हो मां? अपना पेट काट कर,
सबका पेट तुम भरती हो मां,
अपनी झूठी हंसी के पीछे आंसुओं को छुपाती हो मां,
जब तू आगे खड़ी होती है तो परिवार जीत होती है,
अपने बच्चों की खातिर चट्टान बन जाती है,
मां तेरे अंदर इतनी ममता कहां से आती है?
तू मेरे झूठ में भी सच ढूंढ लाती है,
मेरे दिल की हर बात कैसे समझ लेती है?
तेरे बिना ये दुनिया सूनी सी लगती है,
जो तू साथ है तो दुनिया प्यारी लगती है।।

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क्यों हैं नशे के गुलाम?

तानिया आर्य
चोरसौ, गरुड़
उत्तराखंड

बूढ़े हो या जवान,
क्यों है नशे के गुलाम?
इतनी हानियां पता होकर भी,
क्यों अपना घर उजाड़ने चले हो?
मां-पिता, भाई और बहन को छोड़,
क्यों जिंदगी को मौत के हवाले कर रहे हो?
तुम हो तो तुम्हारा घर तुम्हारा परिवार है,
इसी से तुम्हारा जीवन और संसार है,
इसे तुम नशे में यूं बर्बाद न करो,
गांव घरों के रास्तों पर देखो,
अपने घर से बेघर क्यों ऐसे पड़े हो?
नशे में रहकर अपनी जिंदगी को,
क्यों तुम नर्क बना रहे हो?
जिंदगी एक बार मिलती है,
इस नशे में खत्म ना करो,
अपने जीवन के सुनकर पल का सोचो,
आने वाले कल को सुखी बनाने की सोचो।।

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