क्या होने चाहिए निकाय चुनाव के मुद्दे ? निकाय चुनाव स्थानीय मुद्दों का चुनाव है। छोटे छोटे मुद्दे होते हैं जो आम जन के लिए रोजाना की जरूरतों से जुड़े रहते हैं। बिजली, पानी, स्वास्थ्य, सड़क, जमीन के मुद्दे, रास्ते आदि। इन मुद्दों पर काम करने वाला प्रतिनिधि संघर्ष शील हो, विभिन्न मामलों का जानकार हो, पब्लिक रिलेशन बेहतर हो और हमेशा जन सेवा के लिए तत्पर रहता हो। प्रतिनिधि चाहे राष्ट्रीय पार्टी का समर्थित उम्मीदवार हो या निर्दलीय स्वतंत्र उम्मीदवार उपरोक्त गुण प्रत्याशी में होने ही चाहिए। यदि प्रत्याशी को उपरोक्त नेतृत्व धारी गुणों के आईने में परखा जाए तो निकाय चुनाव में गुणवत्ता वाले प्रतिनिधि चुन कर आयेंगे। दबाव, लालच, भय, दलगत राजनीति से ऊपर उठ स्वतंत्र निर्णय के आधार पर मतदाता अपने वोट का उपयोग करे तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया आसान होती दिखती है को पिछले एक दशक से राष्ट्रीय राजनीति में कुंद पड़ चुकी है। क्योंकि निकाय चुनाव बैलेट पेपर से होंगे तो पारदर्शिता की संभावना अधिक होगी। राष्ट्रीय दलों ने निकाय चुनाव को लगभग दलगत राजनीति के रंग में रंग लिया है। उत्तराखंड में अब क्षेत्रीय राजनीति का स्कोप न्यूनतम सा लग रहा है। यूकेडी, उपपा, अन्य क्षेत्रीय दलों का खामोश हो जाना अच्छा संकेत नहीं है। स्थानीयता की राजनीति को बेहतर तरीके से क्षेत्रीय दल ही कर सकते हैं, लेकिन धन बल, सत्ता भय जिसमे तमाम एजेंसियों का सहारा लेकर स्थानीय राजनीति को खामोश करा दिया जाता है ने उत्तराखंड में राजनीति की संकुचित सोच को ही जन्म दिया है।
ऐसे में वोटर के सामने दो ही विकल्प होते हैं कि वो नाग नाथ को चुने या साप नाथ को। अर्थात कम बदमाश को चुन लिया जाता है। दरअसल राजनीति के मैदान में बड़े मिया और छोटे मियां के अलावा कोई मजबूत प्रतिनिधि दिखाता नहीं है। निकाय चुनाव में भी निर्दलीय प्रत्याशी कोई भी हो वोटर का आकलन उसे दरकिनार करने की जुगत में रहता है। इसलिए निर्दलीयों को भी दमखम के साथ चुनाव में आना होगा, अपनी योजना, मुद्दे सब साफ गोया तरीके से जनता को बताने होंगे। निर्दलीयों को यदि राष्ट्रीय दलों से टक्कर लेने है तो जन मुद्दों को समझ कर जनता के बीच बिना झंडे, डंडे की राजनीति करनी होगी। राष्ट्रीय दल हर प्रकार के हथकंडे अपना रहे हैं। शीर्ष नेतृत्व की नाक का सवाल है इसलिए वे पूरी जड़ तक की ताकत सभी सीटों में झोंक रहे हैं। चुनाव प्रबंधन के नायब तरीके उनके पास हैं, कार्यकर्ताओं की फौज है, प्रचार प्रसार के लिए खरीदी गई मीडिया है, शोषक मीडिया प्लेटफॉर्म का ग्लैमर है, अथाह धन और पूजीपतियो का सहयोग है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि ताज किसके माथे सजेगा ? निर्दलियों को जनता पसंद करेगी बागियों के पाले में शीट जायेगी या राष्ट्रीय दल आराम से निकाय चुनाव में अपना परचम लहराएंगे।
Recent Posts
गरुड़ मल्टी लेवल पार्किंग मामला खटाई में : विपिन जोशी
मार्च 11, 2025
कोई टिप्पणी नहीं

यहां कठिनाइयों से गुज़रती है ज़िंदगी
मार्च 4, 2025
कोई टिप्पणी नहीं
네 개의 NFL 라이브 스트림 만우절
मार्च 1, 2025
कोई टिप्पणी नहीं

सफलता के टिप्स देंगे ग्यारह अनुभवी विद्वान शिक्षक
मार्च 1, 2025
कोई टिप्पणी नहीं

महिलाओं के लिए रोज़गार का माध्यम है नया बाजार
फ़रवरी 28, 2025
कोई टिप्पणी नहीं