इंटरनेट की दुनियां में साइबर ठगी एक नए धंधे के रूप में उभरता बिनजैस है। यह धंधा अवैध है इसको रोकने के लिए कानून में साइबर सैल गठित किए हैं जहां रिपोर्ट करने के बाद जांच पड़ताल होती है। इंटरनेट डिजिटल अरैस्ट का नाम सुनते ही बड़े नामी गिरामी लोग सतके में आ जाते हैं। पुलिस, सीअीआई, ईडी का भय उनको सताने लगता है और फिर वे फसने लगते हैं साइबर ठगो के जाल में। हाल में बिहार के एक नामी डाॅक्टर साहब के पास ऐसा ही एक साइबर धोखाधड़ी से जुड़ा काॅल आता है। ठग डाॅक्टर साहब को ईडी का अधिकारी बनकर कहते हैं कि उनके नाम से एचडीएफसी बैंक में एक खाता खोला गया है और उस खाते में मनी लांड्रिंग का पैसा जमा है। ईडी का नाम सुनकर डाॅक्टर डर जाता है और करीब 126 अलग-अलग बैंक एकाउंट में 4.40 करोड़ रूपए ठगों के खाते में जमा कर देता है। जब तक डॉक्टर को साइबर फ्राड के बारे में पता चलता तब तक ठगों का फोन बंद हो चुका था और धन राशी भी गायब हो चुकी थी। ऐसे सैकड़ों उदाहरण साइबर ठगी के नाम पर रोज दर्ज हो रहे हैं। साइबर ठगी से बचने का कोई तो उपाय होगा ? इस सवाल का फिलहाल एक ही जवाब है जागरूकता। इंटरनेट के भवसागर में अच्छी और बुरी दोनों बातें हैं उपभोक्ता की जागरूगता और जानकारी ही उसे साइबर ठगों से बचा सकती है। नेटफिलिक्स पर जमताड़ा नाम से एक सरीज भी आई थी जिसमें साइबर ठगी को विस्तार से दिखाया गया है।
साइबर ठगी में लाॅटरी, इंटरनेट गेम, क्रिकेट सट्टा, डिजिटल अरैस्ट, हनी ट्रैप जैसे कई प्रकार के मामले सामने आ रहे हैं। साइबर ठगों ने अपने स्टूडियो बना लिए हैं, अब वे नकली विभाग, नकली आई डी, आदि से लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। साइबर ठगों के लिए नकली बैंक एकाउंट खाता, आधार कार्ड, वेब साइड, ईमेल आई डी बनाना बहुत आसान कैसे हो जाता है यह एक गंभीर सवाल है। जबकी आम आदमी को एक अदद आधार कार्ड संशोधन कराने के लिए दिल्ली तक के चक्कर लगाने पड़ते हैं। बैंको में ईकेवाईसी कराते-कराते लोग परेशान हैं। लेकिन साइबर अपराध से जुड़े ठगों के लिए सब कुछ आसान है। विज्ञान और तकनीक का दंभ भरने से क्या फायदा जब हमारे आसपास ही करोड़ो का गबन करने वाले इंटरनेट अपराधी खुले घूम रहे हों। सिस्टम के सामने एक बड़ी चुनौती साइबर ठगी के रूप में आज मौजूद है।
अब आम व खास जन क्या करें ? कैसे खुद को साइबर ठगी से बचाए ? साइबर ठगों ने जनता की कमजोर नस को पकड़ लिया है। भयानक बेरोजगारी के दौर में हर कोई चाहेगा कि उसका ईमान ड्रीम इलेवन में आ जाए, लेकिन करोड़ों में कोई एक होता है जिसका ईनाम निकलता है। इसका फायदा साइबर ठगों ने निकाल लिया है। फेसबुक और अन्य शोसल मीडिया प्लेट फाॅर्म में तमाम तरह के फेक विज्ञापन चलते रहते हैं। कमिशन दो और ईनाम वाली टीम बनाओ। यह एक खुला फा्रड है। साइबर ठग व्हट्सअप काल के जरिए जुड़ते हैं और सामने वाले को फेक टीम प्रोवाइड कराते हैं बदले में अपने एकाउंट में पैंसा मंगवाते हैं। पैसा ट्रांसफर होते ही ठग गायब हो जाता है। लाॅटरी का खेल भी इसी तर्ज पर चलता है। आपके पास एक काॅल आती है और आपसे कहा जाता है कि आपके मोबाइल नंबर पर बम्पर लाॅटरी निकती है। सुनने वाला खुश हो जाता है और लाॅटरी के लालच में साइबर ठग के एकाउंट में पैसा डाल देता है। लेकिन यहां भी निराशा ही हाथ लगती है।
इन सब तरीकों के बाद साइबर ठगों ने ठगी का एक नया तरीका खोज लिकाला। पिछले एक दशक में समाज में ईडी और सीबीआई का खौफ बढ़ गया है। बहुत से मामलों में कई निर्दोष लोगों को सालों तक जेल में सजा काटनी पड़ी है। हमारी न्यायिक व्यवस्था बहुत धीमी है जिसकार खामियाजा ईडी सीबीआई जैसे विभाग राजनैतिक लाभ के लिए लेते रहे हैं। अखबारों के संपादक, सांसद, अधिकारी पत्रकार तक ईडी सीबीआई के शिकार बने हैं और इनमें से कई लोगों को अदालत ने बाद में सबूतों के आभाव में छोड़ दिया। इसका असर समाज में भय के रूप में पड़ा और इसी बात का लाभ साइबर ठगों ने उठाया। साइबर ठगों ने सारा सिस्टम ही बना डाला। साइबर ठगी के नकली साम्राज्य से बचने का सबसे आसान तरीका है। निडरता और जानकारी। अनजान लोगों से इंटरनेट पर मित्रता ना बढ़ाएं, किसी को अपना ओटीपी साझा ना करें, धन कमाने के लालच में ना आए, खुद पर भरोसा रखें, इंटरनेट की खबरों का सत्यापन करें उन पर आंख मूंद कर भरोसा ना करें। साइबर ठगी का शिकार होने से बचे। क्योकी जागरूकता और जानकारी ही बचाब है।
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