उत्तराखंड राज्य को स्थपित हुए 24 वर्ष हो चुके हैं . बहुत लंबे संघर्ष और बलिदानों तथा जिन सपनों और उम्मीदों को लेकर उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया था क्या उन तमाम कसौटियों पर उत्तराखंड खरा उतरा है ? बेरोजगारी,पलायन,गुणवत्ता परक शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था,बेहतर परिवहन और सड़क सुरक्षा, महिला सशक्तिकरण,बालिका शिक्षा और सुरक्षा जैसे मूलभूत मुद्दों पर हम एक हिमालय राज्य के रूप में कितना आगे बढ़ पाए हैं ? क्या आम जन का जीवन पिछले दो दशकों में सहज हुआ है ? या दबाव बढ़े हैं ? आर्थिक और सामाजिक रूप में हम कितने स्वतंत्र हुए हैं ? वैश्विक प्रसन्नता सूची में उत्तराखंड कहाँ कौन से पायदान में खड़ा नजर आता है ? प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट पर अंकुश लगा है या फिर सत्ता की छाव तले यह लूट और बढ़ी है ? विकास की राह पर विनाश से कितना बच पाए हैं ? कितने सबक लिए हैं हमने तमाम तरह की मानव जनित और तथाकथित आपदाओं से ? सवाल यहीं पर नहीं रुकते हैं वे आगे बढ़ते हैं पूछते हैं प्रतिव्यक्ति आय बढ़ी है या घटी है ? बेरोजगारी कम हुई है या पलायन कम हुआ है ? स्वरोजगार की दिशा में कौन से झंडे गाड़ दिए हैं हमने कि हम अन्य राज्यों के लिए नजीर बन जाएँगे ?
राज्य स्थापना दिवस के मौके पर ऐसे दर्जनों सवालों पर आत्मावलोकन करने की ज़रूरत है. समीक्षा करने की ज़रूरत है. यदि समाधान हुआ होता तो समस्याओं की एक लम्बी फ़ेहरिस्त हमारे सामने ना होती. समय अपनी गति से गुजरता जाएगा और कई सारी चुनौतियों से सवालों से हमारा परिचय कराता रहेगा. इन चुनौतियों में शामिल होंगी हमारी नदियाँ, सिमटते जंगल, जलते सुलगते जंगल, दरकते पहाड़ और प्रदूषित होता वातावरण, बदबू से बेहाल होते नगर, कचरा प्लास्टिक प्रबंधन की समस्या. क्या इस ओर हमारी सरकारें, जिम्मेदार संस्थाएं गंभीरता से विमर्श कर रही हैं या फिर एक रटे हुवे ढर्रे पर सारा सिस्टम चल रहा है ?
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