मानसून से पहले राहत

Vipin Joshi

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में 19 जून 2024 का दिन राहत भरा रहा। दोपहर के बाद हल्की बौछारें तेज बारिश में बदल गई और तपती धरती को थोड़ा सा राहत जरूर मिली। जलते सुलगते जंगलों की अग्नि भी शांत हुई और नदियों का जल स्तर भी सामान्य हो गया। सीजन की पहली बारिश ने धान की पौध को भी जिंदा किया, वर्ना धान का बिनोड़ा तो सूख ही चुका था। कुल मिलाकर काश्तकारों के लिए कल की बारिश राहत का संदेश लेकर आई है।

साथ में कुछ ज्वलंत सवाल भी मौसम की आंख मिचौली ने जरूर खड़े किए हैं, इन सवालों की ओर आमजन का ध्यान तब जाता है जब समस्या उनके सामने विकराल रूप धारण कर प्रकट होती है। जैसे नदियों को बचाने की बात तब होगी जब नदिया दम तोड़ चुकी हो, आपदा से बचाव की तैयारी तब होती है जब कोई बड़ा नुकसान हो जाता है। हाल में बिनसर अभ्यारण में चार वन कर्मियों का जंगल की आग में समा जाना हमारे लचर सिस्टम और सामाजिक जागरूकता का विकराल रूप है। याने समस्या के संकेत को पहचानने की कोशिश नहीं की जाती या जागरूकता के आभाव में पर्यावरणीय मुद्दों को उठाया नहीं जाता, अधिकांश संस्थाएं अपना हित साधते हैं और कुछ चंद संस्थाएं हैं को पर्यावरण संरक्षण पर कबीले तारीफ कार्य कर रही हैं, लक्ष्मी आश्रम कौसानी, हिमोत्थान परियोजना, अमन, आरोही, संसाधन पंचायत, लोक प्रबंध विकास संस्था, जैसे कुछ नाम हैं जो अपनी पूरी शक्ति से उत्तराखंड के पर्यावरणीय मुद्दों पर सघन कार्य कर रहे हैं। सरकारी सस्थाओं में वन अनुसंधान संस्थान के कुछ प्रयास दिखते हैं जैसे नदियों को बचाने की कवायद और जड़ी बूटियों का संरक्षण जैसे मुनस्यारी का लाइनें गार्डन और गरुड़ गंगा और लाहुर नदी के कैचमेंट के संवर्धन का काम। प्रयास अच्छे हैं लेकिन इनको और तेज करने की जरूरत है। इसके लिए ग्राम स्तर पर जागरूकता अभियान और युवाओं को रोजगार से जोड़ने की जरूरत है। सरकार चाहे तो पर्यावरण संरक्षण के काम से युवाओं को जोड़ सकती है, कितना राजस्व सरकार को वन विभाग, आबकारी विभाग से जाता है उसके कुछ अंश से समाज में परोपकारी पहल की जा सकती है। लेकिन इसके लिए मजबूत इच्छा शक्ति का होना जरूरी है। ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को भांप कर दुनिया को बचाने का नाटक करने वाले विकसित देशों को भी अपनी लग्जरी लाइफ स्टाइल को नियंत्रित करना चाहिए और अन्य देशों पर पर्यावरण संरक्षण का अतिरिक्त कार्यभार नहीं डालना चहिए। इस सुंदर नीले ग्रह को बचाने की जिम्मेदारी दुनिया के सभी देशों की बराबर रूप में हैं।