Vipin Joshi
9 जून 2024 को बनेगी एनडीए गठबंधन की सरकार। सपथ ग्रहण समारोह में पहली बार नरेन्द्र मोदी मिली जुली सरकार के प्रधान मंत्री बनेगे इससे पूर्व वे पूर्ण प्रचंण बहुमत का स्वाद पूरे दस साल तक केन्द्र में ले चुके हैं। लेकिन 2024 में ऐसा क्या हुआ कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सिर्फ 240 के आंकड़े को ही छू पाई और पार्टी के कई दिग्गजों ने अपनी शीटें भी गवाई। आश्चर्य तो तब हुआ जब अयोध्या सीट पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा साथ में अमेठी की चर्चित सीट से स्मृति ईरानी भी चुनाव हार गई। अबकी आर चार सौ पार की मुहिम में क्या कमी रह गई इस बात का गहन विश्लेषण पार्टी के आला कमान केन्द्र से लेकर बूथ और पन्ना प्रमुख तक करेंगे ही करना भी चाहिए। वर्तमान दौर में बीजेपी सांगठनिक रूप से अन्य दलों के मुकाबले काफी आगे है। लेकिन भारतीय लोकतंत्र की आत्मा में सदभावना और विविधता के साथ समता और समानता का बहुत सुन्दर मिश्रण सदा रहा है। कुछ तानाशाहों ने हमेशा लोकतंत्र को कुचलने की नाकाम कोशिशें जरूर की हैं लेकिन वे अपने कमसद में नाकाम ही रहे हैं, समझदार जनता ने अपना नागरिक बोध वोट के रूप में हमेशा देश के पटल पर रखा है। 2024 का लोक सभा चुनाव इसी बात के लिए इतिहास में दर्ज हो गया।
अब एनडीए गठबंधन को हकीकत का सामना करना है। दो महत्वपूर्ण राजनैतिक चेहरों के साथ अनचाहे मन से सरकार की स्थिरता के लिए समन्वय करना है। ये दोनों चेहरे सामाजिक मुद्दों और लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ हमेशा खड़े रहे हैं। इसलिए सभी मजहबों और जातियों को समरूप से आगे आने के ऐजेण्डे पर डंटे रहते हैं। आज कुछ वैकल्पिक चैनलों ने अपने सूत्रों से प्राप्त खबरों के अनुसार जानकारी दी कि एनडीए गठबंधन के सहयोगी चंद्रबाबू नायडू ने आंध्रप्रदेश विधान सभा चुनाव के मैनिफेस्टों में मुस्लिम आरक्षण और मुस्लिमों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर कुछ बातें रखी हैं। जैसे 50 वर्ष से अधिक आयु के मुस्लिमों को पेंशन दी जायेगी, मदरसों का विकास किया जायेगा आदि और भी बिन्दु हैं जिनका जिक्र चन्द्र बाबू नायडू जी ने किया है। गौरतलब है कि अब चन्द्र बाबू नायडू एनडीए गठबंधन के सहयोगी हैं जिसमें बीजेपी एक बड़ा दल है। हालिया लोक सभा चुनाव का प्रचार अभियान देखें और बीजेपी के पुराने बयान देखें तो उनमें हिंदू मुस्लिम की बू आती है। मंगल सूत्र, भैंस बटवारा जैसे कई बयान हमारे सामने हैं और हिंदू राष्ट्र की प्र्रबल समर्थक बीजेपी के मंच से उनके कई माननीयों ने समय-समय पर हिंदू मुस्लिम के सवाल पर गहन धू्रवीकरण की राजनीति भी की है। अब बीजेपी अपने घटक दलों को साथ लेकर चले यह सबसे कठिन कार्य होगा। नीतिश कुमार और चन्द्र बाबू नायडू के साथ एनडीए की नय्या कितना लंबा सफर तय करेगी यह देखना भी दिलचस्प होगा।
बीजेपी का दूसरा पक्ष है जोड़-तोड़ मंत्र साधना जिसे राज्य स्तर पर आॅपरेशन कमल के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन जोड़-तोड़ के लिए भी तो पूर्ण बहुमत जरूरी है। फिलहाल गठबंधन के पास नंबर तो हैं, अब देखना होगा कि सरकारी ऐजेंसियों का उसी रूप से उपयोग किया जायेगा या मजबूत विपक्ष पल-पल की गतिविधियों पर दृष्टि गढ़ाए रखेगा ? नये संसद भवन में एनडीए सरकार का पहला दिन कैसा रहेगा ? पुरानी पेंशन योजना, अग्निवीर, स्पेशल राज्य का दर्जा, जाति जनगणना, लोक सभा स्पीकर पद की मांग इन तमाम मांगों पर बीजेपी का क्या रूख रहेगा ? फिलहाल ये सवाल पर्दे के पीछे हैं इन पर खुलासा सपथ ग्रहण के बाद होगा। इतना तो तय है कि नरेन्द्र दामोदर दास मोदी एनडीए गठबंधन के सहयोग से तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनेंगे, इसके लिए बधाई बनती है। किसी भी दल को पूर्ण बहुमत मिलना स्वस्थ्य लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए अच्छी बात नहीं होती हैं। गठबंधन सरकार में विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है, सभी की सहमती से लोकहितकारी ऐंजेण्डे आगे बढ़ते हैं। इस बार मजबूत विपक्ष है, नेता प्रतिपक्ष है और साथ में विपक्ष के पास जनता के मुद्दों को सकारात्मक तरीके से आगे ले जाने के अवसर भी हैं। सत्ता सुख से कौन वंचित रहना चाहेगा ? विरले ही होंगे जो सत्ता की पाॅवर को महत्व नहीं देते इसलिए इंडिया गठबंधन भी आंतरिक तौर पर सरकार बनाने के मौके तलाशने में पीछे नहीं रहेगी, एनडीए गठबंधन का एक गलत कदम उनको विपक्ष में बैठाने के लिए काफी हो सकता है। तो यह सब कयास हंै, राजनीति के जानकारों का विश्लेषण है। जिस तरह का जनादेश आया है उसके चलते एक स्थिर सरकार चला पाना बड़ी चुनौती है। एक अकेला सब पर भारी की धारणा को जनता ने दरकिनार किया है और साझी, सहिष्णु राजनैतिक विचार धारा पर भरोसा जताया है। अब यह निर्भर करता है एनडीए गठबंधन पर कि वह कैसे सत्ता का रथ हांकते हैं।