Vipin Joshi editor – www.swarswatantra.in
लोकतंत्र का पर्व सम्पन्न हुआ और जागरूक मतदाताओं की उम्मीदें भी बरकरार रहीं. मुकाबला एक तरफा बनाने की सारी कवायदें धरी की धरी रह गई और जनता ने प्रभु श्री राम जी का मान रखते हुवे धार्मिक उन्माद को दरकिनार किया और लोकतंत्र के लिए वोट किया. जनता ने साबित किया कि फ्री स्कीम से काफी ऊपर है देश. दिवास्वपन कब तक दिखाओगे और कब तक अच्छे दिनों की आस में जनता को बहकाओगे यहाँ तो सभी समान हैं. देश के नागरिक हैं फिर नफरत की राजनीती क्यों ? मोहब्बत का माहौल क्यों नहीं ? भारत जोड़ो यात्रा में एक बड़ा संदेस देश और दुनिया को गया कि पद और प्रतिष्ठा से ऊपर व्यक्ति पूजा से ऊपर नागरिक अधिकार और संविधान हैं जिसके होने से सद्भाव और समता का प्रवाह तीव्र होता है. देश की सबसे बड़ी पार्टी को प्रचंड बहुमत से पहले रोकना आसान काम नहीं था. तमाम सरकारी एजेंसियां एक पार्टी की खिदमत में तैनात थी और विपक्ष को चुनाव में कमजोर करने के लिए बैंक खाते भी सीज किये गए. संसाधनों के आभाव में कैसे चुनाव लड़ते हैं और जनता जब रियल में चुनाव लडती है तो रिजल्ट वाकई रोचक होता है.इसके साथ एक बात तो साफ़ हो गई कि यदि जनता को मुद्दे समझाए जाए तो वो सुनते हैं. चुनाव परिणाम के बाद अब बारी है सरकार निर्माण की महामहिम द्वारा देश की बड़ी पार्टी को आमंत्रण मिलेगा और सरकार बन जाएगी. प्रचंड बहुमत की आदि पार्टी अब गठबंधन सरकार चलाने में कितना सफल होगी यह देखना भी मजेदार होगा. पल पल दल बदलते माननीय कब तक दल नहीं बदलेंगे यह देखना होगा. और ऐसे माननीय तो दोनों ओर मौजूद हैं.
अबकी बार चार सौ पार तो नहीं हो पाया. साथ में चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर भी सवाल उठे. खुद चुनाव आयोग ने पत्रकार वार्ता में इस बात को स्वीकार किया कि उनसे गलती हुई. बात बात पर विपक्ष को आँखे दिखाने वाला केचुआ प्रधानमंत्री और उनके सहयोगियों के धार्मिक बयानों पर क्यों उदार बना रहा ? इस बात को विश्व स्तर पर महसूस किया गया. बहुत सारे मंचों पर इस बात की निंदा भी हुई . लगातार बदलते और तीखे होते साम्प्रदायिक बयान बाजियों से जनता भी तंग आ चुकी थी. वह चाहे धर्म संसद में तथाकथित साधुओं के जहरीले बयान हो या नेताओं के मंचीय बयान सबने हेट स्पीच का माहौल बनाने में बड़ी भूमिका निभाई. इस प्रक्रिया में मुख्यधारा मिडिया ने खूब सहयोग किया और गोदी मिडिया तथा दरबारी मिडिया का ख़िताब भी ग्रहण किया. इस चुनाव में वोटर खामोश रहा हुपके से विश्लेषण करता रहा और वोट की चोट से सत्ता के अहंकार को चकनाचूर कर दिया. आधे अधूरे राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का मसला हो या मंगलसूत्र वाला विवादास्पद बयान सबका जवाब जनता ने दिया. लेकिन कुछ राज्य सत्ता के पक्ष में अडिग रहे जैसे मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, हिमांचल प्रदेश. इन राज्यों ने फिर से मोदी जी पर आस्था जताई और उनको जिताया भी. वोटर की आस्था का सम्मान होना चहिये और किसी भी पार्टी और उमीदवार को खुल कर चुनाव में उतरने का लोकतान्त्रिक अधिकार भी है जिसका पालन सरकारी एजेंसियों को करना चाहिए लेकिन उत्तरप्रदेश की बनारस सीट पर सैकड़ों निर्दलीय उमीदवारों को चुनाव लड़ने से रोका गया इस घटना को भी देश ने देखा. इतना होने के बाद भी चुनाव पारदर्शिता के आसपास बना रहा. इस चुनाव में वैकल्पिक मिडिया ने अच्छा काम किया और पत्रकारिता का धर्म निभाया. अब देखना दिलचस्प होगा और सवाल भी मुह बाए खड़ा है – कितना चल पायेगी जोड़तोड़ वाली सरकार पूरे पाच साल या फिर मचेगा जोड़तोड़ की राजनीती का हाहाकार.
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