भूमिया बाबा मंदिर, मासी अल्मोड़ा

Vipin Joshi/ www.swarswatantra.in

एक देवता जो अपने चाहने वालों की रक्षा करते हैं, उनको सब कष्टों से बचाते हैं उत्तराखंड के लोकदेवता हैं भूमिया बाबा. लोक जीवन में देवताओं की भी अपनी लोक छटा होती है. जन मान्यताएं होती हैं जो समाज को आपसी भाई चारे और प्रेम में बाधें रखती है. ऐसा एक मंदिर है  तल्ला गेवाड़ घाटी में . यह मंदिर उत्तराखण्ड, अल्मोड़ा के मासी बाज़ार में स्थित है . भूमिया बाबा मंदिर दिल्ली से लगभग 350 किलोमीटर दूर, रामनगर से 100 किलोमीटर दूर ,और चौखुटिया से 13 किलोमीटर दूर मासी के रामगंगा नदी के तट पर स्थित हैं। मासी बाजार में स्थित यह मंदिर 25 साल पहले छोटे स्वरुप में था लेकिन भक्तों के सहयोग से मंदिर का पुनर्निमाण करके भव्य और विशाल बनाया गया है। मासी में प्रवेश करते ही यह मंदिर आपको सड़क के किनारे दिखाई देगा। पवित्र रामगंगा के किनारे बना यह मंदिर आलौकिक है। उत्तराखंड भूमि देवता की बहुत ही मान्यता है। इस क्षेत्र के रहने वाले उत्तराखंडी चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रहें भूमि देवता के मंदिर में आकर पूजा करवाना नहीं भूलते।
उत्तराखंड में प्रचलित जन श्रुतियों में कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी के आसपास जब पहाड़ों में तांत्रिकों का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ गया था तब मासी नदी के तट पर एक ज्योतिपुंज प्रकट हुआ जिसके बाद वहां पर एक मंदिर का निर्माण किया गया और उस स्थान पर भूमिया देवता की पूजा प्रारंभ हुई . मान्यता के अनुसार तब लोगों को तांत्रिको के प्रभाव से मुक्त होने में मदद मिली कहा जाता है कि जो भी अपनी मनोकामना लेकर वहां पर जाता है। निश्चित ही उसकी मनोकामना पूरी होती है। भूमिया मंदिर के बारे में एक आस्था भरा पक्ष है फसल पकने के बाद फसल की बालियां और नई फसल से तैयार पकवान भूमिया देवता को चढ़ाते हैं। उत्तराखंड में भूमिया देवता के मंदिर लगभग सभी गांव में है जिन्हें रक्षक देवता के रूप में माना जाता है। इन्हें क्षेत्रपाल भी कहा जाता है।

मासी के भूमिया देव के मंदिर की कुछ खास बातें इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती हैं. मंदिर का दिव्य स्वरूप जिसमे हवन शाळा, पुस्तकालय, पेय जल व्यवस्था, पर्यावरण जागरूकता के लिए नव ग्रह आधारित वृक्षों का रोपड़, बेहतरीन बैठक व्यवस्था आदि शामिल है. उत्तराखंड में वैसे तो कई अलग-अलग प्रकार के देवी देवताओं की पूजा की जाती है, कहा जाता है कि यहां 33 कोटि देवी देवता निवास करते हैं हालांकि इस 33 कोटि शब्द को लेकर भी मतभेद हैं। कई लोग इसे 33 करोड़ बोलते हैं तो कहीं कहा जाता है कि कोटि शब्द का अर्थ है, प्रकार यानी कि 33 प्रकार के देवी देवता जिनके नाम इस प्रकार हैं – 8 वसु ,11 रुद्रा ,12 आदित्य ,1 इंद्र व 1 प्रजापति कोटि शब्द को ही बोलचाल की भाषा में कर्म में बदला गया और इसलिए मान्यता प्रचलित हो गई कि कुल 33 करोड़ देवी देवता हैं। और इन्हीं देवताओं मैं से एक देवता है भूमिया देवता। भूमिया देवता को भूमि का देवता माना जाता है। जिन्हें भूमिया देवता व क्षेत्रपाल नामों से जाना जाता है ,भूमिया देवता को भूमि का स्वामी ,गांव का रक्षक ,पशु तथा खेती किसानी की रक्षा करने वाले ग्राम देवता के रूप में पूजा जाता है। उत्तराखंड में अलग-अलग स्थानों पर भूमिया देवता को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे मासी चौखुटिया में बाबा तो जागेश्वर में झांकर सैम तथा गढ़वाल में इन्हें कंडोलिया देवता के रूप में पूजा जाता है।

भूमिया देवता की पूजा एक प्राकृतिक लिंग के रूप में की जाती है। कई जगहों पर भूमिया देवता के जागर भी आयोजित किए जाते हैं भूमिया देवता को चढ़ने वाला प्रसाद हलवाई मंदिर में बनाया जाता है। और मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं को यह प्रसाद दिया जाता है। कहा जाता है कि कन्नौज (उत्तर प्रदेश) से कण्व ऋषि आश्रम से कुछ यात्री जब प्राचीन काल में बद्रीनाथ जी के दर्शन के लिए आए थे।तो यहां की सुंदरता को देखते हुए यही राम गंगा नदी के तट पर अपना पड़ाव डालकर यही के हो गए। और यही लोग बाद में मासी गांव में रहकर मासीवाल कहलाने लगे बाद में इन्होने भूमिया देव मंदिर की स्थापना की तभी से भूमिया देव यहां पूरे क्षेत्र के रक्षक हैं। पूरे इलाके की बहन बेटियां शादी के बाद भूमिया मंदिर पर बधाई देने आती है। भूमिया बाबा का आशीर्वाद लेती है .यहाँ स्थित है माता का मंदिर , गणेश, शिव , शनिदेव, बजरंगबली, राधा कृष्ण जी का मंदिर.