जल संकट: जाने अपनी नदियों को


Vipin Joshi – swarswatantra.in
प्राथमिक स्तर पर बच्चों को पानी के महत्व की जानकारी कैसे दें ? जल ही जीवन है कि सूक्ति को बच्चे रट तो लेते हैं क्या उसके गहरे अर्थ को समझते भी होंगे ? इसे समझना क्यों जरूरी है ? यह प्रश्न हो सकता है। इस मुददे के प्रति संवेदनशील हो भी जाये तो क्या जल संकट से निजात मिल जायेगी ? इस उहापोह के बीच आज अमर उजाला दैनिक में अल्मोड़ा जिले की नदियों पर एक फीचर पढ़ा। अखबार के मुताबिक पचास साल पूर्व अल्मोड़ा जिले की नदियों की लम्बाई 1639 किमी. थी। अब मात्र 810 किमी. रह गई है। यानी 829 किमी. नदियां सूख गई हैं, अब वह बरसाती नाले में तब्दील हो गई हैं। इनमें गगास, पश्चिमी रामगंगा, कोसी, पनार, सरयू प्रमुख है। इसी तर्ज पर बागेश्वर जिले की नदियां भी लगातार साल दर साल सूख रही है। गोमती, गरूड़ गंगा, सरयू, पंच गड़ी, बुरसौल, घांघली सब सूखने की कगार पर हैं। नदियों के सूखने से हमारे जीवन में क्या प्रभाव पड़ते हैं ? नदियां हमारे लिए समृद्धि का प्रतीक हैं, इंसान कैसे इन नदियों को सुखा रहा है आइये करते हैं एक पड़ताल।
नदियांे का जल स्तर एक रात में कम नहीं हुआ। – क्या आपके गाॅव के आस-पास की नदी हर मौसम में एक रूप में दिखती है ? आजकल गर्मी में कहां जाता है सारा पानी ? संभावित उत्तर या कमेण्टस – बरसात में नदी आती है, बारिश होती है। आजकल गर्मी ज्यादा है तो नदियों का जल स्तर कम है। ये सामान्य सवाल जवाब का क्रम हो सकता है जो हमें अपने दैनिक जीवन में रोजाना दिखता है। और क्या कारण हो सकते हैं जल स्तर कम होने के ? इस पर सवाल पर बात की जा सकती है। जैसे – हमारे आस-पास के जंगल कैसे हैं ? रोज ही तो देखते हैं हम इन जंगलों को कभी मन में सवाल आया कि किस तरह के पेड़ हमारे जंगलों में हैं ? चीड़, बांज, बुराश, फल्यांट, काफल, आम, नाशपाती, अखरोट, आडूं, पुलम, केला, पीपल, खड़ीक, तेजपात, आदि। पेड़ो का असर पर्यावरण पर सीधे पड़ता है। नदियों का जल स्तर सिंर्फ गर्मी बढ़ने के कारण कम नहीं हुआ है। इसे समझने से पहले यह भी समझना होगा कि वातावरण इतना गर्म क्यों हो रहा है ? हम अपने घर में या गाॅव में जो भी बुजुर्ग लोग है उनसे पता कर सकते हैं कि आज से करीब चालीस साल पहले इन जंगलों की क्या स्थिति थी ? तब बारिश कितनी होती थी ? कैसे होती थी ? बहुत तेज या धीरे-धीरे ? रिमझिम-रिमझिम। बारिश के तेज होने से या धीमे-धीमे होने से नदियां कैसे प्रभावित होती है ? शायद किसी के मन में यह सवाल भी आये। इस तरह के सभी सवालों को ध्यान में रखते हुए नदियों और वनों के स्वाभाव को समझना आसान होता जायेगा। नदी का रिचार्ज क्षेत्र होता है। बारिश का पानी धीरे-धीरे जमीन में समाता है और भूमिगत वाटर लेबल बना रहता है। जैसे ही ज्यादा तेज बारिश होती है पानी सीधा बह जाता है। पानी को जमीन के अन्दर समाने का समय नहीं मिल पाता है। इस लिए बारिश की गति को समझना होगा। इस आधार पर नदियों के सूखने के कारण को और समझ सकते हैं।
चैढ़ी पत्ती के वनों का कम होना। ये पत्तियां झड़ती हैं, सड़ती हैं, मिट्टी के साथ मिलकर एक पर्त बनाती हैं। इसे टाॅप सोयल कहते हैं। इस पर्त को बनने में काफी समय लगता है। जब बारिश होती है तो पानी सीधा नही बहता है वनों की उपरी सतह वाली मिट्टी से होते हुए जमीन में समा जाता है। धरती की पानी सोखने की क्षमता भी बढ़ती है और जमीन के अन्दर पानी का भण्डारण बना रहता है। चैढ़ी पत्ती वाले वनों के कम होने से वर्षा का पानी सीधा बह कर आगे निकल जाता है। और नदियों के रिचार्ज क्षेत्र सूखे रह जाते हैं। गर्मी का सीजन आते-आते जल स्तर कम होने लगता है। एक और बात – हम देख सकते हैं कि हमारे आस-पास कि नदियों में पानी कहां से आता है ? किसी स्रोत से या ग्लेशियर से। दो तरह की नदियां होती है एक बर्फ के पहाड़ो से अर्थात ग्लेशियरों से निकलने वाली नदी और दूसरी गैर बर्फानी नदी जिसमें किसी एक या अधिक स्रोत से पानी आता है और रास्ते की सहायक नदियां या गधेरे उसमें मिलते जाते हैं। आज भी कई गाॅवों में छोटे गघेरों में पानी को जैविक तरीके से रोकते हैं, मछली पकड़ना इसका उद्देश्य होता है इसे लोकल भाषा में ग्वाद लगाना भी कहते हैं। इसे पीरूल और लकडियों को एकत्र कर पत्थर की दीवार बनाकर लगाते हैं। गधेरे का पानी जमीन के अन्दर घुसता है और उस क्षेत्र के आसपास जमीन के अंदर पानी का भण्डार बना रहता है, नमी बनी रहती है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पानी की फिजूल खर्ची – हमारा देश पानी के क्षेत्र में सबसे अमीर है तो कहीं-कहीं पानी के बिना 7-8 वर्षो से सूखे के हालात हैं। राजस्थान का उदाहरण देखें तो जैसलमेर और बाड़मेर में पानी कि भारी किल्लत है वहीं जयपुर और उदयपुर जैसे बड़े शहरों में सड़क सौन्दर्य के नाम पर सड़क के बीच में फव्वारें लगाये गये हैं। जिनमें 18 से 20 लाख लीटर पानी प्रति दिन इस्तेमाल होता है। यदि इस पानी का उपयोग किसी सूखे ग्रस्त क्षेत्र में होता तो कितनी बड़ी राहत होती। वहीं मुम्बई में दो दर्जन से अधिक मनोरंजन पार्क हैं यहां भी पानी के फव्वारे हैं और वाटर पार्क भी हैं। कुछ धनी लोगों के मनोरंजन की कीमत 50 अरब लीटर पानी प्रतिदिन है।