हिमालय प्रहरी थे सुन्दरलाल बहुगुणा : विपिन जोशी

आज उत्तराखंड के पर्यावरणीय मुद्दों के जानकार सामाजिक कार्यकर्ता सुंदर लाल बहुगुणा को याद करने का दिन है। 9 जनवरी, 1927 को टिहरी जिले में जन्मे बहुगुणा ने चिपको आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका दी उनको चिपको आन्दोलन का प्रणेता भी माना जाता है । उन्होंने सत्तर के दशक में गौरा देवी, चंडी प्रसाद भट्ट तथा कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी । टिहरी डैम आंदोलन के लिए बहुगुणा गंगा के किनारे गंगा कुटी में रहे उन्होंने 84 दिन का लंबा अनशन भी रखा था।
पद्मविभूषण तथा कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण का भी बढ़-चढ़ कर विरोध किया और एक बार उन्होंने विरोध स्वरूप अपना सिर भी मुंडवा लिया था। टिहरी बांध के निर्माण के आखिरी चरण तक उनका विरोध जारी रहा । उनका अपना घर भी टिहरी बांध के जलाशय में डूब गया। टिहरी राजशाही का भी उन्होंने खूब विरोध किया जिसके लिए वे जेल भी गए। बहुगुणा ने हिमालय में बढ़ते लक्जरी टूरिज्म का मुखर विरोधी किया था। हिमालयी क्षेत्र में बेतहाशा खनन और भारी निर्माण कार्यों का उन्होंने विरोध किया था। वर्तमान में हिमालय कई प्रकार की ज्वलंत समस्याओं से जूझ रहा है। सुंदर लाल बहुगुणा ने बहुत पहले इन क्षेत्रों से आगाह किया था।
किशोरावस्था से ही बहुगुणा सामाजिक गतिविधियों में शामिल होने लगे थे। उन्होंने 1965 से 1970 तक शराब विरोधी अभियान में महिलाओं को संगठित करना शुरू कर दिया था। श्री देव सुमन के मार्गदर्शन में 13 साल की उम्र में सामाजिक गतिविधियां शुरू की जो अहिंसा का संदेश फैलाने वाले एक राष्ट्रवादी थे और वे स्वतंत्रता के समय कांग्रेस पार्टी के साथ थे। बहुगुणा ने 1947 से पहले औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लोगों को लामबंद किया था।
सुंदर लाल बहुगुणा ने अपने जीवन में गांधीवादी सिद्धांतों को अपनाया और विमला जी से इस शर्त पर विवाह किया कि वे ग्रामीण लोगों के बीच रहेंगे और गांव में आश्रम स्थापित करेंगे। गांधी से प्रेरित होकर बहुगुणा ने हिमालय के जंगलों और पहाड़ियों का भ्रमण किया और 4700 किलोमीटर से अधिक की पैदल यात्रा की। उनके परिवार में पत्नी विमला, दो पुत्र और एक पुत्री है।
सुंदर लाल बहुगुणा को प्राप्त सम्मान इस प्रकार हैं –
1981 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार दिया गया, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।
1987 में राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड (चिपको मूवमेंट के लिए)
1986 में रचनात्मक कार्यों के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार मिला
1989 में IIT रुड़की द्वारा सामाजिक विज्ञान के डॉक्टर की मानद उपाधि प्रदान की गई।
2009 में पर्यावरण संरक्षण के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन नेता सुंदरलाल बहुगुणा कोविड-19 से संक्रमित थे 94 साल की उम्र में ऋषिकेश के एम्स में उनका निधन हुआ ।