विपिन जोशी
दिसंबर 2024 शनिवार का दिन। चटख धूप है आसमान बादल रहित है। हिमालय पर्वत साफ स्वच्छ है। हिम विहीन पर्वत उजाड़ सा लग रहा है। साथ में इसी सप्ताह प्रदेश में हिमालय दिवस समारोह मनाया गया है। प्रोजेक्टर पर स्लाइड शो चले हैं, विशेषज्ञों के भाषण चले हैं, पत्रकारों, लेखकों ने अपने अनुभव से हिमालय की गाथाएं गाई हैं। इस पूरे दृश्य में सरकार नाम की संस्था लगभग मौन रही है। मौन रहना सरकार की नियति बन चुकी है। हिमालय में आज तमाम सरकारी परियोजनाएं जारी हैं, इन परियोजनाओं में बड़े बांध, सुरंग बांध, आल वेदर रोड, उच्च हिमालय में पर्यटन के नाम पर प्लास्टिक कचरा, भारी निर्माण, पेड़ों का अवैध कटान, नदियों में अवैध खनन, सड़क के नाम पर मानकों के इतर खनन आदि अन्य निर्माण योजनाएं हैं जिनका असर हिमालय के स्वास्थ्य में पड़ रहा है। वैश्विक ताप बढ़ने से भी हिमालय हिम विहीन हो रहे हैं। लेकिन जल, जंगल, जमीन की चिंता यहां है किसे ? प्रकृति के घटक सिर्फ मुनाफा कमाने के लिए हैं, इसे बड़े पूजीपति अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानने लगे हैं। उनकी बला से जोशीमठ में भूधसाव हो या बर्फीले तूफान से कोई पर्वतारोही हिमालय में समा जाए। पूजीवादी कंपनियों के मालिक ही असली सरकार हैं जिनके अधीन सारी सरकारें नतमस्तक हैं। अब लूट ले सूत्रधारों से बचा लो हिमालय को। सिर्फ हिमालय दिवस मनाओ आलोचना और प्रतिरोध किया तो नौकरी जाने का खतरा है। नौकरी रह भी गई तो सरकार की एजेंसियां पीछे पड़ जाएंगी। और हिमालय की चिंता हवा हो जायेगी।
ऐसे में कौन रिस्क लेकर हिमालय बचाने की चिंता पर लिखना बोलना चाहेगा। लिख बोल भी ले तो उसे पढ़ने वाले आगे बढ़ाने वाले भी बहुत कम हैं। रील बनाने वालों की भीड़ यदि सप्ताह में एक बार भी हिमालय की चिंता कर ले तो भी चर्चा का माहौल बन जायेगा। लेकिन लाइक्स और कमेंट्स की दौड़ में रील के मुद्दे रियल मुद्दों से आगे निकल जाते हैं। कहां गई हिमालय की बर्फ इस सवाल पर सोचिए और सिकुड़ते जंगलों की चिंता किजिए। नदियों को तिल तिल मरते देखिए या पहाड़ों को दरकते हुए देखिए अगर इतना सब देखने के बाद भी आपका मन नहीं पसीजा तो कहीं कोई दिक्कत है इतना समझ लीजिए।
लेकिन घने कुहासे के बीच उम्मीद की लौ जलाने वाले अपने स्तर से जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसे ही एक समाजसेवी हैं डाक्टर किशन राणा, हितेषी नाम से संस्था चलाते हैं साथ में एक स्कूल का संचालन भी करते हैं। किशन राणा की संस्था गरुड़ के देवनाइ क्षेत्र में हैं। पिछले नौ साल से किरसान महोत्सव का आयोजन कर रहे हैं। दूर दराज के गावों में घस्यारी महोत्सव का आयोजन करते हैं। महिला किसानों के लिए घास काटने की प्रतियोगिता आयोजित कराई जाती है। दो मिनट में सबसे ज्यादा घास काटने वाली महिला को प्रथम स्थान मिलता है। पुरुस्कार में 25000 की धनराशि प्रदान की जाती है। सभी प्रतिभागी महिलाओं को एक शाल और थरमस इनाम के रूप में दिया जाता है। किशन राणा ने सभी विभागों को घस्यारी महोत्सव से जोड़ा है। विभाग अपने स्टाल लगाते हैं। स्कूल के बच्चे अपने स्टाल के द्वारा दीवार अखबार, विज्ञान के माडल आदि को प्रदर्शित करते हैं। महिला किसानों के साथ संस्था एक साक्षात्कार सत्र भी करती है। महिला किसानों से कुछ सवाल किए जाते हैं इस साक्षात्कार में अच्छे जवाब देकर महिलाएं पुरुस्कार प्राप्त कर सकती हैं।
किशन राणा जी ने बात चीत के दौरान बताया कि पहाड़ में तेजी से पलायन हो रहा है। लोग खेती किसानी छोड़ रहे हैं, नदियों पर संकट है और हिमालय पिघल रहा है। ऐसे में पहाड़ के शक्ति महिला किसानों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। उनको रोजगार उपलब्ध कराने की जरूरत है। ऐसे सफल किसानों और उद्यमियों को एक मंच देने की जरूरत है जो तमाम चुनौतियों के बाद भी खेती किसानी और जैविक उत्पादन में रोजगार सृजित कर रहे हैं। किशन राणा ने किरसान महोत्सव और घस्यारी महोत्सव जैसे आयोजन करके समाज को एक नया रचनात्मक विचार भी दिया है और श्रम को सम्मान देने का शानदार काम किया है। इस तरह के प्रयास आज प्रासंगिक हैं और हिमालय को ऐसे रचनात्मक प्रयासों की जरूरत है।
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