उत्तराखंड सरकार ने राज्य में पलायन आयोग बनाया। लेकिन पलायन नहीं रुका,गांव के गांव खाली हो गए।
अल्मोड़ा जनपद के भिकियासैंण ब्लॉक को तो घोस्ट ब्लॉक की संज्ञा दे गई। रोजगार के नाम पर नदी का रेता, और टूरिस्ट सीजन में टैक्सी संचालन और होटल ही तो हैं जो उत्तराखंड में थोड़ा बहुत रोजगार उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा रोजगार के साधन न्यूनतम हैं। मनरेगा स्कीम का काम ठप्प पड़ा है। छोटे और मझौले रोजगार बंद हैं। जनता तो आधार कार्ड सत्यापन, संशोधन जैसे कठिन कार्यों में व्यस्त है जो लोग प्रश्न कर रहे हैं उनको लाभार्थी योजना से चुप कराने का प्रबंध भी सरकार के पास है। राजनैतिक दलों को अपने बूथ और पन्ना प्रमुख मजबूत करने हैं उनको जल, जंगल, जमीन के मुद्दों से क्या लेना देना। शराब जैसे मुद्दे भी आमजन के लिए मायने नहीं रखते। आश्चर्य की आमजन उस दिन ज्यादा मदिरा सेवन करता है जब ड्राइ डे होता है। ब्लैक में शराब बेची जाती है और लोग ज्यादा भुगतान करके शराब पीते हैं। समाज के कुछ ज्ञानी लोग शराब को रोजगार से जोड़ते हैं, किसी गरीब का रोजगार चल रहा है कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं। विकासखंड मुख्यालय से सटे हुवे गावों में भी फुटकर शराब खुलेआम बेची जाती है। इन क्षेत्रों की महिलाएं खासा परेशान होती हैं, शराबियों की हरकतें और घरेलू हिंसा के प्रभावों को महिलाएं चुप चाप सहन करती हैं। लेकिन महिलाओं की ये चुप्पी एक दिन जरूर टूटेगी तब तक वे शराब का श्राप सहती रहेंगी।
विकास कार्य कागजों में हैं या फिर पार्टी कार्यकर्ताओं की तिजोरियों में। धरातल में मौजूद हैं सड़क के गढ्ढे, दुर्घटनाए, आम जन का संघर्ष। ऐसे में सवाल तो बनता है कि सरकार के पास सटीक विकास योजनाएं क्या हैं ?
सरकार देव भूमि के नाम पर खूब प्रवचन कर ले लेकिन नमामी गंगे परियोजना से हमारी नदियां तो साफ स्वच्छ नहीं हुई, हां नेताओं के बंगलो में स्विमिंग पूल जरूर बन गए। अब सबसे संवेदनशील मुद्दे को देखें जो लाखों परिवारों के लिए बरबादी का कारण भी बना है। वह है उत्तराखंड में बढ़ता नशे का व्यापार। नगरों में लगातार खुलने वाले शराब के ठेके और बार।
सरकार देव भूमि में शराब के कारोबार को क्यों बढ़ावा दे रही है इसका एक जवाब तो है शराब से पैदा होने वाला राजस्व। लेकिन राजस्व कमाई के फेर में बरबादी का मंजर किसी को नहीं दिखता। दिवाली के सीजन में गरुड़ विकास खंड के देवनाइ क्षेत्र में एक व्यक्ति ने नशे की लत के कारण सात समूमों की जिंदगी लील ली। उस दर्दनाक घटना से सारा जिला सतके में रहा। सड़क पर चलते हुए डर लगता है, शराब पीकर तेज गति से बाइक दौड़ाते, कार ड्राइव करते लोग दूसरों के लिए खतरा बन रहे हैं। नशे के सैकड़ों दुष्प्रभाव हमारे सामने हैं लेकिन नीति नियंताओं को यह सब नहीं दिखता है।
आंकड़े क्या कहते हैं, आबकारी नीति 2024 के तहत, प्रदेश में देशी-विदेशी शराब की कुल 628 दुकानों का आवंटन किया गया है. इनमें से 544 दुकानों का आवंटन हो चुका है. वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए आबकारी विभाग ने 4,440 करोड़ रुपये का राजस्व लक्ष्य रखा है।
क्यों नहीं सरकार आबादी के अनुसार शराब के ठेके और बार खोलने की नीति पर पुनर्विचार करती है? बाबा बागनाथ के समीप बागेश्वर नगर में करें एक दर्जन शराब की दुकानें हैं। गरुड़ विकासखंड में 6 दुकानें हैं। खबर है कुछ और बार खुलने वाले हैं। स्थानीय नागरिकों के विरोध के बाद भी शराब की दुकानें खुल रही हैं। गावों में फुटकर रूप से देशी विदेशी आर्मी कैंटीन की शराब का मिलना बहुत आसान हो गया है। दूर दराज के गावों में सड़क गई तो अवैध रूप से शराब कारोबार ने गति पकड़ ली। ऐसा नहीं कि प्रशाशन को ये सब बातें नहीं मालूम। उनके पास खूफिया तंत्र हैं, गावों में ग्राम प्रहरी हैं जो सूचनाओं का प्रसार करते हैं। बावजूद इसके नशे से नाश का धंधा खुले आम धड़ल्ले से जारी है।
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