क्यों जरूरी है समता सदभावना संवाद : विपिन जोशी

धरती का हर जीव सम्मान के लिए जीता है। मनुश्य किसी भी देश या समाज का हो उसके लिए जीवन में पहली प्राथमिकता होती है सम्मान पूर्वक जीवन चर्या। जिसे पाने के लिए शिक्षा और परिवार उसका सहारा बनती है। परिवार में बेहतर संबंधों के साथ जीवन निर्वहन हो सके इसके लिए देश और संविधान और जीवन मूल्य हैं। संवैधानिक मूल्यों का निर्वहन देश हित के साथ करते हुए विकास की राह में हर नागरिक अपनी भूमिका तय करता है। लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ सभी वर्गो व धर्म के लोग सदभावना के साथ सामाजिक समता को महसूस कर सकें और न्याय परक सामाजिक व्यवस्था में जी सकें यही उद्देश्य भारत के संविधान का रहा है। भारतीय संविधान में समरसता और न्याय का समावेश है। प्रत्येक नागरिक को मूलभूत सुविधाएं और अधिकार प्राप्त हैं। जीवन जीने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, भोजन का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, विचार अभिव्यक्ति का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार मूलभूत अधिकारों में प्रमुख हैं।
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी ने समाज के वंचित तबको के लिए सम्मान और समता की लड़ाई लड़ी। संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाबा साहेब का परिनिर्वाण दिवस 6 दिसंबर को मानाया जाता है। इस दिन लोकतंत्र के समर्पित सिपाही के जीवन को उनके कार्यो व सिद्धान्तो को याद किया जाता है। समाज के सभी वर्गो के लोग एकत्र होकर समानता और सदभावना के विचार को अपने जीवन में उतारने के लिए एकत्र होते हैं। साथ में मौजूदा सामाजिक राजनैतिक परिस्थितियों पर विमर्श करते हैं। आजादी के बाद भारत ने विकास के कई पायदान पार किए हैं। हमारे समाज का सामाजिक और आर्थिक जीवन बेशक बेहतरी की ओर अग्रसर हुआ है। विज्ञान और आधुनिकता ने हमें सोचने और अभिव्यक्त होने के नए अवसर दिए हैं। लेकिन इतना होने के बाद भी क्या हम सभी सम्मान और समता महसूस कर पाए हैं। जातिवाद और असमानता तथा लैंगिक विभेद, घरेलू हिंसा जैसे कई मुद्दे हमारे आसपास ही तैर रहे हैं। बेशक हम आधुनिक हुए हैं लेकिन आधुनिकता का असल विचार हमारी कार्य संस्कृति में कहीं दिखता भी नहीं। गांधी ने भी आधुनिकता पर कहा था कि आधुनिकता यदि इंसानी सभ्यता पर हावी होती है, मशीने यदि मानव का श्रम छीनती हैं तो ऐसी आधुनिकता समाज में असमानता की गहरी खाई पैदा करेगी। आज हम वैश्विक तौर पर गांधी जी के कथन को देख सकते हैं। ऐसी कौन सी शक्ति है जो अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए सामाजिक विभेद और उन्माद का प्रसार करती है। हमें संगठित होकर इन शक्तियों का मुकालबा करना होगा और समता, न्याय, सद्भावना के विचार को समझना होगा। हम सभी अपने दिल में हाथ रखकर सोचे और ईमानदारी से महसूस करे तो पाएंगे कि बाहर से समानता और समतावादी समाज में आंतरिक रूप से कितनी गहरी असमानता अभी भी कायम है। जाति और धर्म की गहरी रेखाएं हमारे मनों में खीच दी गई है। अगड़े पिछड़े का भाव हर पल हमारे दिमाग में डाला जाता है। किसी वर्ग विशेश के प्रति या जाति के प्रति वैमनस्य का भाव क्यों पैदा किया जाता है। हम भारत के लोग की विचारधारा को असमानता के मौजूदा मॉडल से धक्का लगता है, गहरी चोट भी लगती है। मानव रूप में विशिश्ठ होने का भाव, सर्वर्सेश्ठ होने का भाव प्रकृति प्रदद विविधता के साथ खिलवाड़ ही तो है। प्रकृति में कोई विभेद या असमानता नहीं है विविधतता है। प्रकृति के हर घटक का दूसरे घटक के साथ एक संबंध है जिसके असंतुलित होने से प्राकृतिक विपदाएं जन्म लेती हैं। इसी उदाहरण को मानव समाजों में देखें तो यहां विविधता के विचार को पनपने से पहले ही कुचलने की मनोवृति बना दी गई है। इसके लिए कौन दोशी है? यदि हम अपने इतिहास से सीखेंगे नहीं और वर्तमान का तथ्यपरक तार्किक विश्लेशण नहीं करेंगे तो यह सवाल हमेशा हमारे सामने बना रहेगा।
बाबा साहेब तो एक निमित्त हैं उनके परिनिर्वाण दिवस पर हम सभी ईमानदारी से समता और सदभावना के विचार को समझें और अपने जीवन में इस विचार को ढाल सकें। आज के संवाद का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी है कि हम व्यक्तिगत तौर से समानता और समता को जीने के लिए प्रतिबद्धता दिखाएं। वैचारिक समानता भी तभी आएगी तब व्यवहारिक समानता हमारे जीवन में, हमारी कार्य संस्कृति में दिखेगी। वह चाहे कोई संस्था हो या हमारा पारीवारिक जीवन। एक ऐसा समाज जहां सभी धर्म, जाति के लोग समता मूलक वातावरण में मधुर संबंधों के साथ जीते हों आज भी देश भर में दिख जाएंगे और उन्माद हिंसा का समर्थन करने वाले कुछ चंद लोग भी दिख जाएंगे। लेकिन हमें समता और सदभावना के साथ जीने वाले समाज की चाह रखनी चाहिए। ऐसा होगा सार्थकता पूर्ण शिक्षा के प्रसार और सामाजिक मुद्दों पर किए जाने वाले विमर्श से। प्रत्येक गॉव में एक छोटा सा पुस्तकालय हो, पढ़ने लिखने की संस्कृति विकसित हो और विमर्श केन्द्र बने। चाय की दुकानों में ताश खेलने से समता स्थापित नहीं होगी। समता और सदभावना के लिए हमें अपनी सोच बदलनी होगी। यह कार्य इतना आसान भी नहीं, लेकिन कठिन भी नहीं है। क्योंकी मानव का मूल स्वभाव में समता और न्याय निहित है, सम्मान निहित है, मानव कल्याण परस्पता की भावना निहित है। हमने नकली विकास के नाम पर दिखावे का एक बाहरी आवरण ओढ़ लिया है जिसे उतारे बिना समता और समानता का विचार समझना एक प्रकार से दिखावा ही होगा। गरूड़ कत्यूर घाटी में बाबा साहेब को श्रृद्वांजली और संवाद का यह आयोजन एक शुभ संकेत है। भविश्य में और अधिक लोग इस वैचारिक आयोजन से जुड़ कर समता मूलक समाज निर्माण के विचार में अपने योगदान की आहुति देंगे इस शुभ इच्छा के साथ। आप सभी का आभार।