उत्तराखंड के धधकते जंगल : विपिन जोशी

उत्तराखंड के वन यहाँ की जैव संपदा हिमालय का जीवन आधार है. सर्दिया आते ही वनों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो जाता है. वन विभाग के पास ना तो उचित संसाधन हैं ना ही उनके पास आग बुझाने के लिए उपयुक्त कार्मिक, जो हैं उनकी स्थति भी बेहतर नहीं है. बिना मैन पॉवर के वनों की सुरक्षा कैसे होगी यह एक बड़ा सवाल है.
जंगलों में आग लगना अब मानव जनित घटना है, लेकिन आग लगने का सिलसिला व्यापक होता जा रहा है, उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में भी दावानल की घटना आम होने लगी है . जलवायु परिवर्तन और खराब भूमि प्रबंधन के कारण गर्म, शुष्क मौसम , बड़ी और उच्च तीव्रता वाली जंगली आग के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाता है। जंगल की आग के कई प्रकार हैं.
झाड़ी की आग (ऑस्ट्रेलिया में), रेगिस्तान की आग, घास की आग, पहाड़ी आग, पीट की आग, प्रेयरी आग, वनस्पति आग या वेल्ड आग के रूप में पहचाना जा सकता है। 2020 में संयुक्त राज्य अमेरिका के एरिज़ोना के कैबाब राष्ट्रीय वन में आग ने 70,000 एकड़ ,280 किमी से अधिक एरिया को को जला दिया था.
जंगल की आग मानव बस्तियों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है। धुएं और आग के प्रत्यक्ष स्वास्थ्य प्रभाव, साथ ही संपत्ति का विनाश और आर्थिक नुकसान शामिल हैं।
2024 में उत्तराखंड अल्मोड़ा जिले में पाँच वन क्रमिक आग बुझाते हुवे मृत्यु को प्राप्त हुए थे. यह एक दर्द नाक घटना थी. दूसरी ओर पानी और मिट्टी के दूषित होने से बीमारियां फैलती हैं . वैश्विक स्तर पर, बदलती जीवन शैली ने दावानल के प्रभावों को और भी बदतर बना दिया है, प्राकृतिक स्तरों की तुलना में जंगली आग से जलने वाले भूमि क्षेत्र में दोगुना वृद्धि हुई है। मानव ने जलवायु परिवर्तन, भूमि-उपयोग परिवर्तन और जंगली आग दमन के माध्यम से जंगली आग को प्रभावित किया है।
जंगल की आग से निकलने वाला कार्बन वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता को बढ़ाता है और ग्रीनहाउस प्रभाव में योगदान देता है। इस प्रक्रिया से जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है.
हमारे देश में जंगल की आग एक नियमित घटना है जो अक्सर गर्मियों के दौरान देखी जाती है। लेकिन अब सर्दियों में भी जंगल की आग बड़े पैमाने पर नजर आ रही है. नवंबर 2020 से जून 2021 तक जंगल की आग के मौसम में मॉडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रो-रेडियोमीटर सेंसर का उपयोग करके 52,785 जंगलों की आग का पता लगाया गया और सुओमी-नेशनल पोलर-ऑर्बिटिंग पार्टनरशिप – विजिबल इंफ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट का उपयोग करके 3,45,989 जंगल की आग का पता लगाया गया।
वन सूची रिकॉर्ड के आधार पर, भारत में 54.40% जंगल कभी-कभार आग के संपर्क में आते हैं, 7.49% मध्यम रूप से लगातार आग के संपर्क में आते हैं और 2.40% उच्च घटना स्तर के होते हैं, जबकि भारत के 35.71% जंगल अभी तक किसी भी वास्तविक महत्व की आग के संपर्क में नहीं आए हैं।
बायोमास में बंद कार्बन सहित बहुमूल्य वन संसाधन हर साल जंगल की आग के कारण नष्ट हो जाते हैं, जो प्राकृतिक संसाधनों का सबसे बड़ा दोहन है. वनस्पतियों के साथ कई छोटे जीव वनों की आग से समाप्त हो जाते हैं.
उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग तकनीक और जीआईएस उपकरण आग की आशंका वाले क्षेत्रों के लिए प्रारंभिक चेतावनी बनाने, वास्तविक समय के आधार पर आग की निगरानी और जले हुए निशानों के आकलन के माध्यम से आग की बेहतर रोकथाम और प्रबंधन में प्रभावी रहे हैं। इस तकनीक का उपयोग भारत में बढ़ाना चाहिए लेकिन ऐसा सिर्फ आंकड़ों में होता दिखता है. धरातल की हकीकत कुछ होती है. सरकार के लिए वन विभाग और जंगल सिर्फ मुनाफे का सौदा नहीं होना चाहिए, सरकार वन विभाग को तकनीकी रूप से मजबूत करे, विभाग में नई भर्तियाँ हो कार्मिको को उचित उपकरण और प्रशिक्षण मिले तो जंगल की आग से सुरक्षा संभव है. इससे रोजगार भी सृजित होगा और पलायन पर भी अंकुश लगेगा.