विपिन जोशी
अल्मोड़ा और पौड़ी जनपद के मध्य मरचुला में एक भीषण हादसा हुआ। दिवाली के बाद 4 नवंबर, 2024 को प्रातः 8 बजे के आसपास यह भीषण हादसा होता है और करीब 36 लोग इस हादसे में काल कल्वित हो जाते हैं। सल्ट क्षेत्र में ऐसे हादसे दो-तीन साल में रिपीट होते रहते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में भौगोलिक स्थितियां भी काफी कठिन हैं। कुमॉउ और गढ़वाल क्षेत्र में लगातार दुर्घटनाएं होती रहती हैं, साथ में सरकार की सड़क विस्तार योजना पर भी काम कई सालों से जारी है। परिवहन विभाग की सुस्ती और लोकल पुलिस की सुस्ती भी कई बार दुर्घटनाओं को आमंत्रित करती है। गहरी खाई में बस का गिरना और मौके पर स्थानीय नागरिकों के साथ मिलकर एनडीआरएफ और पुलिस ने आज दिन भर राहत और बचाब का काम करना सामाजिक एकजुटता का प्रतीक है .घायलों को रामनगर चिकित्सालय में भर्ती कराया गया, लेकिन सरकारी अस्पताल में उचित स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव से भी कुछ घायल गंभीर स्थिति में पहॅुच गए तो कुछ की मृत्यु इलाज के दौरान हो गई। नागरिक संगठनों ने और मृतकों के परिजनों ने रामनगर सरकारी अस्पताल में खूब विरोध प्रदर्शन करते हुए स्थानीय प्रशासन और विधायक के खिलाफ रोष प्रकट किया।
हिमालयी क्षेत्र में अक्सर दुर्घटनाएं होना आम बात मान ली गई है। या कहें कि इसे प्रकृति या नियति का खेल मान कर इतिश्री कर ली जाती है। परन्तु यदि गौर करें तो पाएँगे अधिकांश दुर्घटनाएं ओवर लोड, मद्यपान या वाहन चालकों की लापरवाही के कारण होती हैं। प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी कई सारी जानें जाती हैं। अभी हाल में राज्य सरकार ने बड़ी धूमधाम से सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया। स्कूल के बच्चों ने जागरूकता रैलियां भी की विभिन्न एनजीओ के कार्यकर्ताओं ने भी अच्छी मेहनत लगा कर समुदायों के बीच सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया। साथ में जिम्मेदार विभागों ने खूब सारे चालान भी काटे। इतना होने के बाद भी उत्तराखण्ड की सड़कों में लगातार होने वाले हादसे कई सारे सवाल पैदा करते हैं। किसकी नाकामी माने ? बदहाल सड़कें हादसों को आमंत्रित नहीं करती क्या ? ओवर लोड सवारियों को ढोने से क्यों नहीं रोका जाता ? सवारियां क्यों आंख मूंद कर भेड़ बकरियों की भाती तमाम नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए गाड़ियों में लद जाती हैं ? परिवहन विभाग क्यों खटारा बसों को रंग रोगन कर सड़कों में घुमाता है ? स्थानीय प्रशासन क्यों हमेशा हादसों के बाद ही जागता है ? वाहन फिटनेस के नाम पर, प्रदूषण सर्टिफिकेट के नाम पर की जाने वाली औपचारिकताएं भी कई बार गंभीर हादसों का कारण बनती हैं। परिवहन विभाग और स्थानीय प्रशासन प्रत्येक बस स्टेश्सन में वाहनों की जांच और मैन्टनेन्स का इंतजाम क्यों नहीं करता ? उन्हें करना चाहिए। वाहन अपने गंतव्य को रवाना हो इससे पूर्व उसकी ठीक से जांच होनी चाहिए। इन सवालों को हर हादसे में याद किया जाता है और हादसे के बाद भुला दिया जाता है। विज्ञान और तकनीकी का दंभ भरने से हादसे कम नहीं होंगे इसके लिए सरकारी और सामाजिक प्रयासों की सख्त जरूरत है। शराब का सेवन कर वाहन संचालन कर रहे लोगों पर कार्यवाही और सख्त होनी चाहिए। इसके अलावा त्योहारों के मौसम में ओवर लोडिग वाहनों पर भी कार्यवाही हो। किसी एक व्यक्ति की लापरवाही कभी-कभी सैकड़ों परिवारों के लिए अभिशाप बन जाती है। कुछ रचनात्मक और तकनीकी उपायों को अपना कर सड़क हादसों में काफी हद तक कमी लाई जा सकती है।
अक्सर पहाड़ में हादसों के बाद ही सरकारों को अस्पताल और डॉक्टर याद आते हैं। अल्मोड़ा सल्ट क्षेत्र में एक ढ़ग का अस्पातल तक नहीं है। यदि कभी इस तरह के हादसे होते हैं तो रानीखेत और रामनगर ही एक मात्र विकल्प होता है। प्रत्येक विकासखण्ड में एक बेहतर अस्पताल कुशल चिकित्सकों और उपकरणों के साथ क्यों नहीं खोला जाता । इस बात को उपेक्षित करने का परिणाम हादसों में लोगों का कालकल्वित होना और महिलाओं की प्रसव के दौरान अस्पताल नहीं पहॅुचने के कारण होने वाली मौतें हैं। सड़क हादसों से बचाव की जिम्मेदारी परिवहन विभाग को प्राथमिकता में लेनी चाहिए। इसके साथ सरकार को हिमालयी क्षेत्रों की सड़कों तथा वाहनों की स्थिति पर भी विचार करना चाहिए। नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारी के तहर ओवर लोडिंग वहनों के खिलाफ रिपोर्ट करनी चाहिए। ख़ुद भी ओवरलोडिंग वाहनों में यात्रा से बचना चाहिए. हादसों से सबक नहीं लेंगे तो हादसे पुनः किसी न किसी रूप में रिपीट होते रहेंगे।
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