करवा चौथ और पहाड़ : विपिन जोशी

पहाड़ के संदर्भों को करवा चौथ कितना सार्थक रूप दे पाता है यह गंभीर सवाल है. सदी के सारे व्रत महिलाओं के पल्ले पढ़ते हैं. सोमवार, मंगल, तीज, सावन सभी व्रतों को करने का जिम्मा महिलाओं पर क्यों ? बाज़ार और मीडिया ने कुछ त्योहारों का स्वरूप व्यापार के अनुसार बदल दिया है. त्योहारों पर आर्थिक दबाव भी पड़ने लगा है. जिन परिवारों के पास आर्थिक व्यवस्था अनुकूल नहीं है उनके लिये चमक दमक से परिपूर्ण त्योहारों का कोई आशय नहीं. उस पर धार्मिक आस्था का डर भी जनमानस को देखा देखी करने पर मजबूर करता है. यह धारणा कि व्रत करके पति की आयु दीर्घायु होगी किसी कपोल कल्पना से कम नहीं है. पति पत्नी दोनों व्रत करते हों तो दोनों का सम्मान है और उनकी अपनी व्यक्तिगत आस्था है. जिसका सम्मान होना ही चाहिए.
परंतु समाज में बढ़ती आर्थिक विषमता को ध्यान में रखकर सोचें तो पाएँगे कि अपने लोक त्योहारों के सामने आयातित पर्वों त्योहारों ने ज़्यादा जगह बनाई है. इससे सामाजिक स्टेट्स भी जुड़ा है. बाज़ार तो सजा ही है जेबें ढीली करने को. लोक पर्वों में ग्लैमर भले ही ना हो लेकिन लोक जीवन की ठसक ज़रूर समाहित रहती है. ख़ान पान, गीत संगीत और आपसी परस्परता भी दिखती है. आयातित त्योहारों में ग्लैमर का तड़का ज़्यादा नज़र आता है.
करवा चौथ महिलाओं के सौंदर्यबोध से भी जुड़ा है. बनना संवरना हर इंसान के लिए ज़रूरी होता है. प्रतिदिन सौन्दर्यबोध का एहसास हो और आपसी प्रेम हो इसके लिए किसी ख़ास दिन का इंतज़ार क्यों ? लेकिन अब बनने संवरने के अर्थ बदल गए हैं. बाज़ार में ऐसे केंद्र हैं जहां महिला पुरुषों के लिए सजने संवरने की अच्छी व्यवस्था है. लाखों लोगों को रोज़गार भी सौन्दर्यबोध के काम से मिला है जो एक अच्छी बात है.
किसी जीवित समाज का पहला नियम यही है कि वह परंपराओं के नाम पर जड़ नहीं होता. संस्कृति के नाम पर कट्टर नहीं होता है. संस्कृति तो सहृदय होती है. जो भी अच्छा लगता है उसे स्वीकार किया जाता है. विविधता का सम्मान होता है. और नवीनता को अपनाने का साहस भी संस्कृत और जीवित समाज का प्रमुख लक्षण है.
पहाड़ के संदर्भ में आयातित त्योहारों ने महिलाओं को घर से बाहर निकलने के अवसर दिए हैं. अपने वजूद में ख़ुद को टटोलने के अवसर भी दिए हैं. आधुनिकतावाद में आपसी विभेद के लिए कोई जगह नहीं है बहुत से दंपत्ति एक दूजे की कुशलता के लिए प्रेम के लिये मिलकर उपवास भी करते हैं और सम्मान की परंपरा का निर्वहन करते हैं. यह एक सकारात्मक संदेश है करवा चौथ का.