केन्द्र सरकार की फैक्ट चैक यूनिट पर रोक : विपिन जोशी

केन्द्र सरकार की फैक्ट चैक यूनिट पर बाम्बे हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। केन्द्र सरकार इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। जानते हैं क्या है पूरा क्या मामला। किसी खबर या तथ्य की जांच पड़ताल को फैक्ट चैक कहा जाता है। वर्तमान समय में शोषल मीडिया और मुख्य धारा मीडिया में बहुत सी खबरें कई माध्यमों से चल रही होती हैं। इन खबरों में सच्चाई कम और सनसनी ज्यादा होती है। मुख्यधारा मीडिया टीआरपी बढ़ाने के लिए तो, शोषल मीडिया चैनल जल्दी प्रसिद्ध होने के लिए सनसनी युक्त खबरों का सहारा लेते हैं। फैक्ट सही या गलत हैं इसका मूल्यांकन कितना किया जाता है इस बात को समझना आसान है। तमाम राजनैतिक दल अधिकांशतः सूचनाओं, बयानों को क्रिएट करते हैं। फोटोशॉप जैसी तकनीकों का उपयोग कर और एडिटिंग से किसी के भी बयान या डेटा के साथ छेड़-छाड़ कर उसे तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा सकता है। इन फैक्ट विहीन खबरों को वायरल करने के लिए आईटी सेल तमाम ताम-झाम के साथ तैयार रहता है। कोई भी सरकार हो अपने उपर हो रहे बयानों के हमलों से बचने का उपाय भी खोजती है। सरकार अपनी सत्ता और ताकत के दम पर मुख्यधारा मीडिया के बड़े चैनलों को मैनेज करती है ताकी रीयल खबरों की जगह सरकार की सूचनाएं खबर के रूप में जनता तक पहॅुचती रहे और मुख्य मुद्दे, जनता की आवाज कहीं नेपथ्य में चली जाए।
जनता के वास्तविक मुद्दों को वैकल्पिक मीडिया ने पिछले एक दशक में तेजी से उठाया है। बहुत से बड़े पत्रकारों ने अपने चैनल भी शुरू कर दिए हैं। मोबाइल फोन मीडिया की पकड़ लगभग सभी घरों में हैं तो यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म से जन स्वरों और मुद्दों को आसानी से कवरेज मिलने लगी है। इसका असर 2024 के लोक सभा चुनावों में साफ तौर पर दिखा। दूसरा बड़ा उदाहरण है किसान आंदोलन। जब मुख्य धारा मीडिया किसानों की आवाज नहीं दिखा रही थी तो वैकल्पिक मीडिया ने लाइव कवरेज कर किसानों की समस्याओं को देश के सामने रखा। यह सब सरकार के लिए असहनीय था, उस दौर में वैकल्पिक मीडिया के कई पत्रकारों के साथ पुलिस ने हिंसा भी की कइयों के खिलाफ झूठे मुकदमे भी चले और कुछ पत्रकारों की नौकरियां भी गई। यह सिलसिला अभी थमा नहीं है।
फैक्ट चैक के बहाने जन स्वरों को दबाने की नीति पर जस्टिस ऐएस चन्दुरकर ने कहा कि मेरा मानना है आईटी एक्ट में किए गए बदलाव भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 और आर्टिकल 19 का उलंघन करते हैं। 2021 में केन्द्र सरकार इन्फोर्मेसन टेक्नॉलोजी रूल्स, इंटर मीडिया गाइडलाइन्स और डिजिटल मीडिया ऐथिक्स कोड लाई थी। इस कानून में 2023 में कुछ और परिवर्तन किए गए जिसे आईटी ऐमिडमेन्डस रूल्स 2023 कहा गया। इन बदलावों में फैक्ट चैक यूनिट की एडवोकेसी की गई थी। यह यूनिट केन्द्र सरकार प्रेस इन्फोर्मेसन ब्यूरो के तहत काम करती। यहां गौर करने वाली बात यह है कि यदि प्रेस इन्फोर्मेसन ब्यूरो ने किसी खबर या सूचना को गलत घोषित कर दिया तो उसे साझा करने पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
लेकिन कुछ लोगों ने सवाल उठाए कि फैक्ट चैक यूनिट का असर न्यूज में पड़ेगा। सरकार की आलोचना को चुप कराने के प्रयास इससे हो सकते थे। इस नियम के खिलाफ कुछ लोग न्यायालय गए उनका कहना था आईटी रूल्स शंसोधन 79 के खिलाफ है। साथ में याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि इससे समानता का अधिकार आर्टिकल 14 और कोई भी पेशा अपनाने की स्वतंत्रता के अधिकार में बाधा पड़ती है। इस केस की सुनवाई जस्टिस पटेल और जस्टिस नीला गोखले की बेंच ने की। लेकिन दो जजो ने फैसला पक्ष और विपक्ष में दिया तब एक और जज ऐ एस चन्दुरकर को केस की सुनवाई के लिए नियुक्त किया गया। फाइनल सुनवाई में तीन जजों की बेंच ने 20 सितंबर 2024 को अब केन्द्र सरकार की फैक्ट चैक यूनिट को असंवैधानिक करार देते हुए उस पर रोक लगा दी है। अब केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है।