17 सितंबर, 2024
मानव और वन्य जीव संघर्ष के अनगिनत किस्से उत्तराखण्ड में मौजूद हैं। रामनगर जिम कार्बेट के पास की विगत वर्षो के दौरान घटी घटनाएं हो या उत्तराखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में गुलदार, सुवंर, बंदरों के हमले। इन सब घटनाओं से हम वाक़िफ हैं। 2023 में गरूड़ में सिविल सोसाइटी ने बंदर भगाओ अभियान की अगुवाई की इस अभियान में ऐतिहासिक तौर पर कत्यूर घाटी के साथ जिले के अन्य विकास खण्डों से भी प्रभावितों ने प्रतिभाग किया परन्तु बात-बात पर झण्डा डण्डा उठा लने वाले धरना प्रदर्शन करने वाले बाइक रैली निकाल कर जयकारा लगाने वाले तथाकथित राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता इस संपूर्ण अभियान से नदारद दिखे। मंत्री संत्रियों की तो बात छोड़ दो। जनता की लड़ाई अक्सर जनता को ही लड़नी होती है। भला हो विधायक बागेश्वर का जिन्होने विधान सभा में बंदरों की समस्या पर एक सवाल तो किया। उसके बाद क्या ? बंदरों की समस्या तो और भी विकराल रूप ले रही है। थोड़ा सा फ्लैश बैक में जाते हैं, करीब पांच साल पूर्व गरूड़ विकास खण्ड के हरिनगरी क्षेत्र में गुलदार ने एक साल के अंतराल में एक ही परिवार के दो मासूम बच्चों को निवाला बनाया था। इस घटना से आक्रोशित हो कर क्षेत्र वासियों ने आंदोलन भी किया था कुछ लोगों पर मुकदमा भी दायर किया गया और बाद में शिकारी लखपत सिंह ने आदमखोर गुलदार को मार गिराया था।
हरिनगरी गुलदार काण्ड के बाद अब गरूड़ विकास खण्ड के छटिया, डंगोली, चफुला क्षेत्र में इन दिनों गुलदार का एक जोड़ा अपने दो शावकों के साथ डेरा डाले हुए है। छटिया गॉव के कमोटिया तोक में एक परिवार से दो बकरियां, चफुला से एक कुत्ता और छटिया से कुछ और बकरियां को गुलदार अपना निवाला बना चुका है। क्षेत्र वासियों की गुहार सुन वन विभाग ने चफुला और छटिया में पिंजरा भी लगाया है। इस संबंध में कुछ ग्रामिणों से बात की तो उन्होने बताया। आंनद गिरी कुमोटिया निवासी – वन विभाग ने ग्रामीणों को साथ लेकर पिंजरा लगाना था। गुलदार जहां लगातार दिख रहा है वहां पिंजरा लगाने के बजाए पिंजरा दूर जंगल में लगाया गया है। चफुला की भगवती देवी अपनी एक नातिनी के साथ रहती है उनके कुत्ते को रात दस बजे उनके सामने गुलदार उठा ले गया। तब से भगवती देवी भय में जीने को विवश है। वन विभाग के कर्मी उनके घर हाल चाल जानने जाते रहते हैं। भगवती देवी ने उदास होते होते हुए बताया कि गुलदार की डर से अब उनको लिची और तमाम फल के पेड़ काटने पड़ रहे हैं। घर के आस पास फलदार वृक्षों को लगाना उनका शौक था लेकिन अब गुलदार का आतंक है तो क्या करें ? डंगोली के ग्रामीण राजेन्द्र ने बताया कि उन्होने गुलदार को दिन में बाजार के पास खेतों में गश्त लगाते देखा। एक युवा ने बताया कि उनकी बाइक पर ही गुलदार ने अटैक कर दिया था। किसी प्रकार जान बचाई। असोज का महीना लग चुका है। घास कटाई चल रही है ऐसे में छटिया गॉव की महिलाओं ने बताया कि वे डर सहम कर किसी तरह अपने खेतो तक पहॅुच रहे हैं। कई बार तो गुलदार ने घास काट रही महिलाओं पर भी हमला करने की कोशिश की है। बच्चों का स्कूल आना जाना भी प्रभावित हो रहा है। यह एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। लेकिन प्रशासन भी अपने संसाधनो के साथ गश्त लगा ही रहा है। कुछ और प्रयास वन विभाग को करने चाहिए। ये क्या प्रयास होंगे ? क्या वन विभाग को संसाधनों के आधार पर सक्षम नहीं किया जा सकता ? जितना बजट हमारे माननीय अपने प्रचार-प्रसार के होर्डिगों में लगवा देते हैं उतने में तो प्रभावित क्षेत्रों को ड्रोन युक्त निगरानी दी जा सकती थी। वन विभाग के रिक्त पदो को भरा जा सकता था। विभाग को अतिआधुनिक उपकरण दिए जा सकते थे। यदि ऐसा होता तो पिछले फायर सीजन में अल्मोड़ा बिनसर में वन विभाग के कर्मियों को दावाग्नि में अपनी जान ना गवानी पड़ती। हर साल जंगल में लगने वाली आग से जान माल के नुकसान की खबरें चिंताजनक हैं। परन्तु सरकार और प्रशासन इस दिशा में बहुत मजबूत इच्छा शक्ति के साथ और कारगर योजना के साथ आगे बढ़ रही हो ऐसा दिखता नहीं। राजनैतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र में देश दुनियां के मुद्दे तो होते हैं लेकिन स्थानीय मुद्दों के लिए कोई जगह नहीं होती है। जीवन का संघर्ष वोट की राजनीति के सामने इनता तुच्छ हो जाता है और हमारी प्रभावित जनता भी अपने जन प्रतिनिधियों से इस संघर्ष की बात नहीं कर पाती है। यह एक सामाजिक विडंबना ही तो है।
फिलहाल छटिया, गरूड़ के निवासियों ने बागेश्वर के जिलाधिकारी को पत्र लिख कर अपनी समस्या से अवगत कराया है। स्थानीय मीडिया ने भी लोगों की आवाज को आगे लाने का काम किया है। आगामी कुछ दिनों में प्रभावित क्षेत्र में गुलदार की स्थिति का पता लग पाएगा। ग्रमिणों का यह भी कहना था कि यदि स्थिति जल्द काबू में नहीं आती है तो वे एक बड़े आंदोलन की ओर जा सकते हैं।
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