उत्तराखण्ड की प्राचीन लोक गायन विधा है भगनौल। सवाल-जवाब की यह गायन परंपरा सदियों से पहाड़ की वादियों में गूंजती रही है। तमाम तरह के शास्त्रीय बंधनों से मुक्त लोक जीवन की संगीत परम्परा को उत्तराखण्ड के लोक कलाकारों ने अब तक जीवित रखा है। वाचिक परम्परा और तार्किकता की त्वरित शैली जब हुड़के की थाप के साथ मधुर गायन में बदलती है तो सुनने वाले मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। दर्षक झूमने लगते हैं, गायक के साथ भाग लगाते हैं और मेले में रात गुजार लेते हैं। लोक गायकी की भगनौल परम्परा अब भी जीवंत है लेकिन इस परम्परा के वाहक कलाकारों की स्थिति बहुत ठीक नहीं है। उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध सांस्कृतिक कोट भ्रामरी मेले में कुछ लोक गायकों से मिलने का अवसर मिला। इनमें सेराघाट के धरम सिंह नेगी, उत्त्राखण्ड के लोक गायक जितेन्द्र तोमकियाल, बिशन लोबियाल, ब्लागर खुशी जोशी, द्वाराहाट के भवान राम, कौसानी के महेन्द्र सिंह और भगनौल गायकी में दषकों से कोट भ्रामरी मेले में आ रही प्रसिद्ध भगनौल गायिका भगवती देवी आदि षामिल रहे।
हमेषा की तरह इस बार भी कोट भ्रामरी मेला पूर्व तैयारियों और विवेचना के साथ भव्यतम रूप में संपादित हुआ। केन्द्रिय सड़क राज्य मंत्री अजय टम्टा ने मेले का उद्घाटन किया। साथ में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी की नई प्रतिका का अनावरण किया गया। नए सांस्कृतिक मंच का भी रंगारंग कार्यक्रमों के दौरान उद्घाटन किया गया। सरकारी विभागों के प्रदर्षन स्टाल भी लगाए गए। इन स्टालों में सर्व षिक्षा की ओर से लगाया गया स्टाल आकर्षण का केन्द्र बना रहा, जिसमें कठपुतली कला के माध्यम से ष्क्षिा को रूचिकर बनाने के तरीके दिखाए गए। साथ में एनडीआरएफ का स्टाल भी लगा था। जिसमें आपदा राहत व बचाव के आधुनिक तरीको को दिखाया गया था। कुल मिलाकर मेले को बेहरत बनाने के सभी प्रयास लगभग सफल रहे। दर्षनार्थियों ने ट्रक यूनियन के द्वारा लगाए गए भंडारे का भी लुत्फ लिया सारी रात भंडारा जारी रहा। मेलार्थियों ने प्रसाद रूप में छक कर भंडारे के स्वादिष्ट भोजन का मजा लिया।
लेकिन इन तमाम अच्छी बातों के साथ एक बात मुझे विगत कई सालों से खटक रही है जो इस बार भी बड़े जोर से खटकी। सांस्कृतिक संध्या के नाम पर मंचीय कार्यक्रम तो हिट हो जाते हैं। दर्षकों के लिए एक बेहतर जगह भी रहती है जंहा वे मंनोरंजन के साथ मेला इंजाय करते हैं। लोक संस्कृति और लोक कला के नाम पर चलने वाला मंचीय कार्यक्रम काफी खर्चीला भी होता है। लेकिन मेले में मंदिर गेट के पास एक ऐसा स्थान है जहां प्राचीन समय से ही भगनौल गायकी का अखाड़ा या कहें की मजमा लगता है। एक मद्धिम रोषनी वाला बल्ब, एक मात्र साउंड बॉक्स के साथ एक माउथपीस और सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर दो पीआरडी के जवान जो कहीं दूर बैठ कर भीड़ में मौजूद श्षराबियों के हुड़दंग से बचते हुए चुप चाप बैठे रहते हैं। कुछ इस तरह का अव्यवस्थित नजारा इस बार 2024 के मेले में भी नजर आया। लोकगायक अपने संसाधनों से मेला स्थल तक आते हैं और रात भर, नए पुराने त्वरित बने गानों से दर्षकों का मन बहलाते हैं। इसके ऐवज में इन लोक गायकों को गीत गाने के लिए खूब संघर्ष करना पड़ता है। एक गायक ने तो माइक में कई बार कहा कि हमें गाने दो, षराबियों को मंच से दूर करो। सुरक्षाकर्मियों ने तो उस गायक की आवाज नहीं सुनी लेकिन मैं एक पुलिस कर्मी के पास गया और उनको कहा कि भगनौल मंच को व्यवस्थित करने में मदद करें। पुलिसकर्मी ने कहा कि भगनौल मंच मंे दो सिपाही डयूटी पर हैं। बहरहाल वे आए और सहयोग किया। कुछ देर तक हुड़दंगी षांत बैठे रहे लेकिन घटिया गुणवत्ता की मदिरा का सुरूर कितनी देर तक चुप बैठता हुड़दंगी फिर सक्रिय हुए और लोक गायक इस वातावरण को अपनी नियती समझ पुनः गीत संगीत की दुनियां में खो गए, रम गए। भगनौल की गूंज इस षोर में कहीं दब गई।
मेला समिती के लिए कुछ सुझाव हैं हालाकि इन सुझावों को सुनने वाला कोई नहीं है फिर भी एक पत्रकार और नागरिक होने के नाते मेरा धर्म है कि मैं तठस्थ रहते हुए बेहतर समीक्षा कर महत्वपूर्ण सुझाव दूं। मेलार्थियों को अच्छी साउंड गुणवत्ता के साथ भगनौल सुनने को मिले। भगनौल गायकों को सुरक्षा मिले। षराबियों के लिए अलग दर्षकदीर्घा बने। हुड़दंगियों को ऐसे मंचों से दूर रखा जाए। अराजक तत्वों के खिलाफ त्वरित कार्यवाही हो। दर्षकों के बैठने के लिए बेहतर व्यवस्था हो, कुछ कुर्सियां हो या फिर दरी चटाई तो हो। दो चार अच्छी लाइटें भगनौल मंच में लगे ताकी अच्छी प्रकाष व्यवस्था बनी रहे। मंच पर आसीन गणमान्य बीच बीच में एक दो चक्कर भगनौल पंडाल का भी लगाए ताकी कलाकारों का मनोबल भी बना रहे। ऐसा करने से व्यवस्थाएं बेहतर हो सकती हैं।
मेला समिती और प्रषासन के बीच पूर्व तैयारी बैठक में इस बार यातायात व्यवस्था को लेकर काफी विमर्ष हुआ। दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री, तहसीलदार, पूर्व विधायक सहित पूरा प्रषासनिक अमला इस बैठक में मौजूद था। बात विमर्ष से कुछ असर भी इस बार दिखा जैसे प्रकाष व्यवस्था, सरकारी विभागों के स्टाल, भंडारा आदि। लेकिन यातायात व्यवस्था ने मेलार्थियों को खूब परेषान भी किया खासकर स्पीड बाइकर्स से तो पुलिस और यात्री सब परेषान दिखे। कुछ बाइकर्स तो बुलट बाइक पर रेटरों साइंलेंसर लगा कर खूब पटाखे भी छोड़ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे बाइक स्टंट का खेल भी मेले का ही एक कार्यक्रम है। पुलिस मेले में सुरक्षा और यातायात संभाल रही थी तो मौके का फायदा बाइकर्स उठा रहे थे। इस सबको कैसे नियंत्रित किया जाएगा यह एक यक्ष प्रष्न है। षायद नए एसपी और डीएम इस दिषा में कोई रचनात्मक व ठोस कमद जरूर उठाएंगे।
मेले के सफल संचालन के लिए कमेटी के सभी पदाधिकारी और सदस्य तथा क्षेत्रवासी धन्यवाद के पात्र हैं। आप सभी खुषहाल रहें, दीर्घायु रहें। इसी कामना के साथ।
विपिन जोषी/स्वर स्वतंत्र
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