मजबूत पक्ष के साथ मजबूत प्रतिपक्ष

देश की संसद में मानसून सत्र जारी है। विगत एक दशक की तुलना में इस बार विपक्षी खेमा ज्यादा मजबूत है। उनके पास नेता प्रतिपक्ष है। संख्या बल भी है। स्वस्थ्य लोक तंत्र में विपक्षहीन सरकार अक्सर एक तरफा निर्णयों के अधीन हो जाती है। सरकारों का इतिहास तो यही कहता है कि मजबूत पक्ष के साथ एक मजबूत प्रतिपक्ष का होना भी जरूरी है। मौजूदा संसद सत्रों में नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गॉधी ने जिस मुखरता से जनता के सवाल, बेरोजगारी के मुद्दे, पेपर लीक के सवाल, मणिपुर हिंसा पर प्रधान मंत्री जी की खामोशी पर सवाल और लोकतंत्र के मजबूत स्तंभ केचुआ पर सवाल किये हैं यह समाचीन है, प्रासंगिक है और नेता प्रतिपक्ष के भूमिका के अनुकूल है।
वहीं दूसरी ओर सदन में कुछ ऐसे सांसद भी हैं जिनकी भाषाई मर्यादा लगातार गिर रही है। आपसी तकरार, सवाल जवाब, तर्क तथ्यों से दूर ये सम्मानित जनप्रतिनिधि संसद को मछली बाजार बनाने पर तुले हैं। संसद के सभापति मान्यवर सदस्य, मान्यवर सदस्य कहते रह जाते हैं और धैर्य उनका भी जवाब दे जाता है। इसी उधेड़बुन में आनन फानन में किसी सांसद का समय काट दिया जाता है तो किसी का माइक बंद कर दिया जाता है। माइक बंद करने के साथ सांसदों की महत्वपूर्ण बातें, प्रश्न, सुझाव तक कार्यवाही के रिकॉर्ड से हटा दिए जाते हैं। ध्यान से अवलोकन करें तो समझ आता है कि सदन के सभापति कहीं न कहीं सत्ता पक्ष के प्रति सॉफ्ट कार्नर रखते हैं। बहरहाल एक स्वस्थ्य लोकतांत्रिक सदन में चर्चाएं, विश्लेषण जितनी स्वस्थ्य होंगी देश का विकास भी उसी गति से आगे बढ़ेगा। करोड़ों का बजट लगता है इन महत्वपूर्ण चर्चाओं में। जहां योजनाओं की विवेचना की जाती है। आलोचना, समालोचना होती है और जवाबदेही तय होती है। लेकिन इन तमाम बातों को दरकिनार कर हमारे माननीय जनप्रतिनिधि संसद को किसी टीवी चैनल का डिवेट रूम समझ लेते हैं। तू तू मैं मैं से आगे मामला धमकी और असंवैधानिक भाषा तक पहॅुच जाता है। देश दुनिया देख रही है, संसद की कार्य प्रणाली का सीधा प्रसारण हो रहा है। लेकिन जनता की याददास्त काफी कमजोर भी होती है वो मनोरंजन की तरह सदन की कार्यवाही को देखती है और अगले कुछ दिनों में किसी नये मुद्दे में खो जाती है। इसका लाभ माननीय उठाते हैं। भीम आर्मी चीफ, सांसद चन्द्र शेखर ने संसद के बाहर तख्ती लेकर अकेले ही मोर्चा खोल दिया। उन्होने कहा कि राजस्थान और गाजियाबाद में दलितों की हत्या पर सवाल उठाया। शंकर लाल मेघवाल और राजकुमार यादव की हत्या का जिक्र करते हुए चन्द्र शेखर ने आरोप लगाया कि सांसद में स्पीकर साहब ने उनको बोलने का समय नहीं दिया गया।
केन्द्र सरकार के आकड़ों के अनुसार आज किसानों पर 50 फीसदी कर्ज है। द वायर/टीवी 9 के अनुसार देश में प्रति कृषि परिवार की राष्ट्राय मासिक औसत आय 6426 रूपये हैं, प्रति दिन 214 रूपये। देश के 16 करोड़ किसानों पर 21 लाख करोड़ का लोन है। क्या सरकार इन किसानों की आय बढ़ाने पर कुछ सोच रही है ? क्या इस नाजुक दौर में किसान को एमएसपी की लीगल गांरटी मिल सकती है ? कर्ज माफी हो सकती है ? बजट सत्र में उक्त संकेत नहीं दिखे तो किसान संसद में सरकार से मिलने आ गए। इस तरह के गंभीर मुद्दों पर ईमानदार बहस होनी चाहिए ताकी जमीनी मुद्दों की पड़ताल हो सके और भारत में वास्तविक अमृतकाल लाया जा सके।

Vipin Joshi