कावड़ यात्रा का सांप्रदायिक रंग

सैकड़ों साल से कावड़ यात्रा भक्तों के लिए अपार आस्था भरी यात्रा रही है। सावन आते ही हर तरफ भोले शंकर का जयकारा लगने लगता है। गाॅव देहात हो या शहर भोले नाथ के मंदिरों में जलाभिषेक की लंबी-लंबी कतारें दिन में और रात में भोले बाबा की बूटी और भक्ति मयी संगीत का वातावरण एक अलग एहसास कराने को काफी होता है। साधु, संतों की चिलम को और भक्तों की आस्था पर कभी कोई सवालिया निशान नहीं लगे हैं यह है भारत की विविधता। कावड़ यात्रा में हिंदू शामिल होते हैं तो देश के कई हिस्सों में मुस्लिम भी कावड़ियों की सेवा में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। शरबत, फल, चाय, लंगर जिससे जितनी हो सकती है लोग सच्चे मन से करते हैं। सब कुछ सौहार्दय पूर्ण चल ही रहा था, तो ये अचानक उत्तर प्रदेश से योगी सरकार का नया फरमान क्यों लागू किया गया जिसने धार्मिक धु्रवीकरण की एक नई बहस छेड़ दी। यह संयोग है या प्रयोग ?
एनडीए के घटक दल कावड़ यात्रा नेम प्लेट मुद्दे पर एक नहीं हैं। अब बिहार में विरोध शुरू हो गया है। बिहार में सुलतापनुर से कावड़ यात्रा चलती है और देवघर में बाबा बैजनाथ धाम में जलाभिषेक होता हैं। घटक दलों ने योगी सरकार के इस फैसले से असहमती जतानी शुरू कर दी है। जेडीयू ने योगी सरकार के उक्त फैसले का सख्त विरोध किया है, जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा है कि योगी सरकार अपने फैसले को तुरंत प्रभाव से वापस ले। तो वहीं बिहार में बीजेपी के प्रेम रंजन पटेल ने कहा कि कावड़ यात्रा के दौरान सुचिता और पवित्रता जरूरी है इसलिए बिहार में भी योगी सकरकार का कावड़ नेम प्लेट फैसला लागू होना चाहिए, यह धर्म का मसला है। इस पूरे मामले को लेकर एनडीए में दो धड़े बनते दिख रहे हैं, अब एलजेपी और जेडीयू योगी सकरकार के फैसले का सख्त विरोध कर रहे हैं। इस पूरे मुद्दे को देखकर लगता है इस बार अज़ट सत्र में काफी गहमा-गहमी रहेगी। कुल मिलाकर एनडीए के लिए कावड़ नेम प्लेट मुद्दा शुभ संकेत नहीं है। आने वाले दिनों में कावड़ यात्रा उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार मे पूरे महीने चलेगी इस दौरान शासन प्रशासन पर भी यात्रा को शांतिपूर्ण तरीके से संचालित करने का अतिरिक्त दबाव रहेगा।

Vipin Joshi