कावड़ यात्रा शुरू हो चुकी है। सावन का महीना हिंदुओं के लिए पवित्र माना जाना जाता है। भगवान भोले शंकर को जल चढ़ाते हैं। गंगा जी से जल लेकर श्रद्धालु अपने घर गांव मंदिर को पवित्र करते हैं। कावड़ यात्रा पैदल ही की जाती है। कावड़ यात्रा के प्रति सभी का सम्मान रहता है। यह भारत देश की सुंदरता है कि सभी धर्मो का एक समान सम्मान हो। संविधान भी यही शिक्षा देता है।
कावड़ यात्रा के साथ उत्तरप्रदेश सरकार ने एक नया फरमान जारी किया है। यात्रा रूट पर फल की दुकान लगाने वालों को अब अपनी दुकान पर अपना नाम भी लिखना होगा। हिंदू, मुस्लिम सभी को बाकायदा अपनी जाति सहित नाम का बोर्ड लगाना होगा ? उत्तराखंड बीजेपी प्रभारी दुष्यंत गौतम बताते हैं कि यात्रा की सुचिता और पवित्रता के लिए ऐसा किया गया है। इस बयान के क्या मायने हो सकते हैं ? कावड़ यात्रियों की सुरक्षा मामला है या पवित्रता के नाम पर धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश है। फल तो फल है हिंदू से खरीदो या मुस्लिम से फल की कौन सी जाति होती है ? फल का क्या धर्म होता है? कई जगहों पर यात्रियों के लिए जूस, शरबत, फ्रूट्स का इंतजाम सब लोग मिलकर करते हैं, मुस्लिम, सिख, हिंदू जिसे मौका मिलता है वो सब कावड़ यात्रियों की सेवा करते हैं। तब भंग नहीं होती सुचिता, पवित्रता।
किसी अला खान की दुकान का फल भी उतना ही रसीला होगा जितना किसी फला सिंह की दुकान का। तो फिर जाति और धर्म की नेम प्लेट लगाने के क्या मायने हैं ? इससे अच्छा होता यात्रियों की सुविधाओं का ध्यान रखा जाता। ट्रेफिक जाम से मुक्ति के लिए नए रूट अच्छे से बनाए जाते। ताकि यात्रा शांति से पूर्ण हो सके।