Vipin Joshi/www.swarswatantra.in
बागेश्वर। भारतीय जीवन दर्शन में समस्त जगत में परस्परता का सम्बन्ध जीवन के लिए सर्वोपरि है. इसमें हमारा पर्यावरण भी आता है. मनुष्य कैसे अपने आसपास के पर्यावरण को सहेज कर रख सकता है इसके कई सारे उदहारण समाज में आज भी मौजूद हैं. ऐसे ही एक अनूठी परम्परा है पीपल वट वृक्ष विवाह . बागेश्वर दफौट क्षेत्र के मयूँ ग्राम में पीपल वट वृक्ष विवाह की सनातन परम्परा का अनूठा आयोजन संपन्न हुआ। मयूँ ग्राम के दिवंगत धर्मानंद फुलारा की पत्नी बसन्ती फुलारा अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहती है. इस परिवार ने सनातन परम्परा के अनुसार विधिवत अनुष्ठानों के साथ पीपल वट वृक्ष विवाह संपन्न किया। बड़ी संख्या में नैनीताल,हल्द्वानी दिल्ली मुंबई महानगरों के प्रवासी इस अनूठे विवाह समारोह के साक्षी बने। वट वृक्ष को दूल्हे के रूप में डोली में बिठाकर गांव के श्री गोलज्यु मंदिर से होकर गाजे बाजे और परंपरागत नृत्य के साथ गांव के सड़क मार्ग से होकर बारात के रूप में गांव के हरज्यू सैम व देवी मंदिर के प्रांगण में लाया गया । गांव के दिवंगत लक्ष्मी दत्त फुलारा की वृद्धा पुत्री मोहिनी देवी ने पीपल वृक्ष को दुल्हन के रूप में सुसज्जित कर वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ विवाह की रस्में संपन्न कराई।
धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक,और पर्यावरणीय दृष्टि से यह भव्य आयोजन नई पीढ़ी के लिए एक विशेष संदेश देने में कामयाब रहा। नैनीताल से पहुंचे आचार्य कथा व्यास के सी सुयाल ने बताया कि सनातन संस्कृति में वृक्ष पूजन कर पर्यावरण संरक्षण जैसे आयोजन किसी और संस्कृति में दृष्टि गोचर नहीं होते। लेखक व पर्यावरणविद हरीश जोशी का मानना है कि ऐसे आयोजन समाज को जोड़ने का काम तो करते ही हैं इन सबसे लुप्तप्राय परंपराएं भी पुनर्जीवित होती हैं।गौर करें तो भारत के आदिवासी समाजों में आज भी देवता के रूप में पेड़ पौधों की पूजा का रिवाज है इसलिए आदिवासी समाजों के आसपास बहुत सारे जंगल अभी तक सुरक्षित भी हैं . कार्यक्रम में शेखर चंद्र,नारायण दत्त,नरोत्तम,कमलकांत,हरीश चंद्र जोशी , हरनाथ फुलारा,पार्वती देवी, प्रभा जोशी,दीपक जोशी, लीलाधर जोशी,जीवन जोशी, हर्षित सुयाल आदि उपस्थित रहे।