गैस एजेंसियों में जटिल होती ई-केवाईसी प्रक्रिया

Vipin Joshi – swarswatantra.in
उत्तराखंड, गरुड़ में इन दिनों गैस एजेंसियों में गैस उपभोक्ताओं से ई-केवाईसी की प्रक्रिया कराई जा रही है। ताकि ग्राहक के खाते में गैस सिलेंडर का अनुदान आ सके. लेकिन यह प्रक्रिया बड़ी जटिल होती जा रही है. दूर दराज गावों से महिलाएं, बुजुर्ग अपना सारा जरुरी काम छोड़ कर गैस एजेंसियों के चक्कर काट रहे हैं. चालीस-पचास किमी दूर से आने जाने का खर्चा भी गरीब तबके के लोगों को भरी पड़ता है. ग्रामीणों का कहना है कि सरकार ने जनता को कागज बनाने के काम में जोत दिया है. आखिर कितनी बार लोग अपने आधार आदि को अपडेट करते रहंगे ? वोट के लिए तो प्रशाशन घर घर पहुच जाता है तो क्या जरुरी कागज़ आदि को अपडेट करने के लिए गाव स्तर पर शिविर नहीं लगाये जा सकते ?  बड़ा तरस आता है बेदर्द व्यवस्था पर  एक गैस कार्यालय में  वृद्धा माता जी को पकड़ पकड़कर गरुड़ गैस एजेंसी तक लाया गया है बेचारी शरीर के दुखने से कराह भी रही हैं कुकिंग गैस ना हुई जीवन रक्षक ऑक्सीजन हो गई ? कम से कम ऐसे अशक्तो का तो ख्याल किया जा सकता है.

स्थानीय प्रशासन संज्ञान ले तो इस हेतु गांव गांव में शिविर आयोजित कर प्रक्रिया को सरल और सुविधाजनक बनाया जा सकता है। हर गली मोहल्ले में खुल चुके जन संचार केन्द्रों की मदद ली जा सकती है उनको और कुछ अन्य युवाओं को रोजगार भी मिलेगा और बुजुर्गों तथा एहिलाओं को सुविधा भी मिलेगी. इस तरह की योजनाओं से जनता को वास्तविक लाभ मिलेगा. क्या सरकार वेलफेयर सोसाइटी की अवधारणा पर काम करते हुवे  जनता का दर्द समझ पायेगी ? लोकसभा चुनावों से पूर्व योजनाओं के प्रचार हेतु सरकारी बजट से  गाड़ियाँ तो गाव-गाव में घुमा दी लेकिन उसका प्रत्यक्ष लाभ जनता को नहीं मिला इस तरह की कुछ मोबाईल गाड़ियाँ साप्ताहि चक्कर लगाये और जनता के कागज़ सम्बन्धी मामलों पर तुरंत हाथ के हाथ समाधान करे. मजबूत राजनैतिक इच्छा शक्ति हो तो कोई भी काम असम्भव नही है. लेकिन इस्तना करने के लिए रचनात्मक विकास का विजन भी तो होना चहिये. फिलहाल ऐसा होगा इसकी उम्मीद कम ही दिखती है.