सेंगोल वाली नई संसद सेंट्रल विस्टा पानी-पानी

मई 2023 का दौर था। नए संसद भवन का उद्घाटन करते हैं माननीय प्रधान मंत्री। उनके हाथ में धर्मदण्ड अर्थात सेंगोल होता है। संसद में साधु संत होते हैं और विधि विधान से संसद भवन का उदघाटन किया जाता है। माननीय प्रधान मंत्री नए भवन को करोड़ों हिंदूस्तानियों के सपनो का स्तंभ करार देते हुए 2047 तक के विकास का विजन रखते हैं। नया संसद भवन एक नई शुरूआत है। इस भवन से अमृतकाल की शुरूआत हो गई है। 140 करोड़ भारतवासियों के लिए नया संसद भवन नई उर्जा लेकर आया है। अब है जुलाई 2024 मानसून सत्र जारी है। दिल्ली समेत देश के बड़े महानगर पानी-पानी हो चुके हैं। पहाड़ों की हालत भी ठीक नहीं। तमाम तरह के सरकारी निर्माण कार्यो की कलई खुल रही है। सड़के दरक रही हैं,  दिल्ली की हालत सबसे नाजुक है। यहां मकानों के बेसमेंट में जल भराव हो रहा है। सड़के तालाब बनी हैं। इस पूरे परिदृश्य ने नये भारत के नये संसद भवन को भी नहीं छोड़ा। नया संसद भवन टपकने लगा है, बालटियां लगाई हैं टपकती छत को माननीय प्रधानमंत्री बहुत ही आश्चर्य के साथ निहार रहे हैं। साथ में 2047 का विजन भी टपकते संसद भवन के साथ विकास का कोरस गा रहा है। सब आश्चर्य चकित हैं। सेंगोल अर्थात धर्मदण्ड एक कोने में चुप-चाप मौन साधे पड़ा है। विकास के सपने आश्वासनों की छतरी ओढ़े नए संसद भवन के किसी कोने में दुबके हैं। सुबह की चाय के साथ वैक्लपिक मीडिया से मानसून काल और अमृतकाल की मिलीजुली तस्वीरें स्क्रीन पर स्क्रोल हो रही हैं।
द वायर की संपादक आरफा कहती हैं कि अब लोकतंत्र बाल्टी तंत्र बन गया है। नये संसद भवन में जल निकासी का कोई ठोस काम हुआ ही नहीं है। इतनी बड़ी चूक देश की सबसे महत्वपूर्ण इमारत के निर्माण में कैसे हो गई ? यहीं चूक अयोध्या में भी हुई वहां श्री रामलला जी का नवोदित मंदिर भी टपकता दिखा। अयोध्या की सड़कों में कुएं बन गए। दिल्ली का ऐयरपोर्ट भी बारिश में हलकान दिखा। ऐसे में आम जनता किस पर भरोसा करें ? बारिश में घर से निकलते हैं पर इस बात की क्या गारंटी कि सही सलामत घर वापस पहॅुचेंगे। सड़कों में नौका विहार करते हुए लोगों को सुरक्षित ठिकानों पर पहॅुचाने की तस्वीरे भी इंटरनेट में मौजूद हैं। नए संसद भवन की टपकती छतों और जल भराव पर समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने ट्वीट किया है कि नई संसद से तो पुरानी संसद अच्छी थी क्यों न फिर से पुरानी संसद में चला जाए। कम से कम तब तक जब तक अरबो रूपए से बनी नई संसद में पानी टपकने का कार्यक्रम चल रहा है। नई संसद को बनाया टाटा गु्रप ने और इस भवन के डिजाइनर हैं गुजरात के मशहूर डिजाइनर विमल पटेल जो बनासर के विश्वनाथ कॉरिडोर का डिजाइन भी बना चुके हैं। पुराना संसद भवन 100 साल पुराना है आज तक किसी भी तरह की लीकेज उस भवन में नहीं हुई है लेकिन सेंट्रल विस्टा एक साल में टपकने लगा। 23 हजार करोड़ का सेंट्रल विस्टा प्रौजेक्ट 2026 तक तैयार होगा। ऐसे ही टपकता रहा तो निर्माण कार्यो की गुणवत्ता पर सवाल तो उठेंगे ही। अब केन्द्र सरकार के अंतर्गत आने वाले सेन्ट्रल पब्लिक वर्क डिपार्टमेंट ने सफाई देते हुए कहा है कि सेंट्रल विस्टा इमारत सुरक्षित है शीशे के जोड़ खराब हो गए थे बहुत ज्यादा गर्मी के बाद बारिश को वो झेल नहीं पाए लेकिन जल्दी ही टपकती छतों को रिपेयर कर दिया जायेगा।
अब सरकारी विभागों ने एक दूसरे पर टपकन का ठीकरा फोड़ना शुरू कर दिया है। सेन्ट्रल पब्लिक वर्क डिपार्टमेंट एमसीडी दिल्ली पर सारी जिम्मेदारी डाल रहा है तो एमसीडी दिल्ली ने भारी बारिश को जिम्मेदार बताया है उनका कहना है कि भारी बारिश की वजह से पानी की निकासी में देरी हो रही है। सवाल जवाब होते रहेंगे। जनता पूछेगी, कि उनके टैक्स के पैसे इस तरह क्यों बहाये जा रहे हैं ? क्यों नहीं गुणवत्तापूर्ण कार्य होते हैं ? दिल्ली से लेकर उत्तराखण्ड तक क्यों इस तरह के मंजर आम हो गए हैं। सड़क दो महीने नहीं टिकती, संसद की छत टपकने लगती है। ऐयरपोर्ट की छत गिर जाती है। मंदिर टपकने लगता है। आखिर ऐसे हालात क्यों पैदा हो गए ? ऐसे में 2047 का विकास विजन कितना लंबा सफर तय करेगा यह भी देखना होगा। उम्मीद करते हैं सरकार जल्दी ही समाधान खोजेगी।

Vipin Joshi