कत्यूर घाटी की आवाज

Vipin Joshi
नोट – कृप्या इस आलेख को राजैनिक चस्मा हटा कर पढ़ें।
आज सुबह की शुरूआत ब्रिटेन के चुनाव परिणाम से हुई। वहां सुनक साहब बुरी तरह से हार गए हैं। लेबर पार्टी चार सौ पार हो गई है। इधर उत्तराखण्ड में मानसून बरस रहा है, किसानों के चेहरों पर मुस्कान हैं रोपाई हो चुकी है तो कहीं-कहीं बारिश ने अपना रौद्र रूप भी दिखाया है। बहरहाल मानसून सत्र के दौरान अभी कत्यूर घाटी की आवाज group में पढ़ी तो कल की बीडीसी बैठक पर लोकल मीडिया कवरेज से बैठक का हाल पता चला। दैनिक जागरण, हिंदुस्तान ने विस्तार से बीडीसी बैठक को कवर किया है। वर्ना मौजूदा दौर में मुख्य धारा मीडिया का हाल सबको पता है। ऐसे भी पत्रकार मित्र हैं जिनको लोकल खबरों के लिए भी हेड क्वाटर से स्वीकृति लेनी पड़ती है यानी पत्रकार चाहे भी तो अपने जन मुद्दों को बिना अप्रूवल के दिखा नहीं सकते। लेकिन प्रिन्ट मीडिया के उन साथियों को साधुवाद जो जनता के मुद्दों पर बेबाक राय रखते हैं और खबरों का रायता नहीं बनाते खबरों को तथ्यों के साथ परोसते हैं। बहरहाल।
कत्यूर घाटी का अपना ऐतिहासिक महत्व रहा है। सांस्कृतिक महत्व से सी सभी परिचित हैं। बावजूद इसके कत्यूर घाटी विकास से कोसों दूर खड़ी दिखती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, निर्माण, सड़क, पेयजल, सिचाई हर स्तर पर जनता संघर्षरत है। सबसे ताजा उदाहरण लाहूर घाटी का अनिश्चित कालीन प्रदर्शन है, हालाकी प्रशासन के दखल के बाद कुछ उम्मीदें जगी हैं लेकिन हाल फिलहाल कत्यूर की जनता हलकान है तमाम जन मुद्दे हावी हैं सरकार और प्रशासन पर। बीडीसी बैठक में सभी जरूरी मुद्दों पर चर्चा हुई लेकिन गोमती नदी का अवैज्ञानिक खनन किसी को नहीं दिखा। बंदर, गुलदार, सिचाई, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, जैसे मुद्दे छाये रहे अच्छी बात है लेकिन जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है कि वे क्षेत्र की हर समस्या पर अपनी गिद्ध दृष्टि जमाये रखें। लेकिन ऐसा होता नहीं। अक्सर देखा गया है कि जनता के प्रतिनिधि विकास की ठेकेदारी लिए घूमते रहते हैं और खूब चांदी बटोरते हैं। पिसती रहती है जनता और जनता के प्रधान। ऐसा नहीं कि सब कुछ नकारात्मक ही हो रहा है क्षेत्र में कुछ अच्छी खबरें भी मीडिया से पता चलती रहती हैं लेकिन अब तो डबल इंजन है और क्षेत्रीय स्तर पर एक मजबूत प्रतिनिधि भी कत्यूर घाटी के मिल चुका है तो समस्याओं पर अंकुश लगना चाहिए और जनता को राहत मिलनी चाहिए। अभी दो दिन पहले कत्यूर घाटी का एक हिस्सा अघोषित बिजली कटौती से जूझ रहा था। मीडिया की खबर के बाद कुछ राहत मिली होगी। सवाल यह है कि छोटी-छोटी समस्याओं पर प्रतिनिधियों की नजर क्यों नहीं पड़ती। चांदी बटोरने के अलावा और भी कार्य होंगे उनकी ओर क्यों नहीं पहल लेते हैं माननीय ? विकासखण्ड स्तर पर ही समस्याओं का अंबार लगा है तो प्रदेश और केन्द्रीय स्तर का हाल समझा जा सकता है। इस मानसून ने सारे विकास की पोल पट्टी पहले ही खोल कर दी है, ज्यादा बालने लिखने को कुछ रह नहीं गया अब।
खबरें तो आती रहेंगी, सूचना का विस्फोट इतना है कि अब हर व्यक्ति पत्रकार है, लेखक है अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर सकता है। लेकिन सीधी और सच्ची बात करने वाले पत्रकारों की नितांत कमी भी है जो हैं इस श्रेणी में उनको साधुवाद। ऐसे ही जनता के मुद्दों को छपास देते रहिए शायद कलम से समाधान की बानगी भी दिखेगी ।