Vipin Joshi / www.swarswatantra.in
उत्तराखण्ड कुछ सिपाही विगत तीन दशकों से पानी और जंगल को बचाने के साथ जंगल को बनाने की मुहिम में जुड़े हैं बागेश्वर गरूड़ के पर्यावरण विद व किसान जगदीश कुनियाल और शिक्षक एमसी काण्डपाल। दोनों की कार्य प्रवृति भिन्न होते हुए भी पर्यावरण के प्रति इनकी संवेदनशीलता प्रेरित करने को काफी है। आने वाले वर्षो में धरती में पेय जल का भयावह संकट समूची मानवी जाति के लिए प्राण घातक साबित होने वाली हैं। दुनिया के विकसित देशों ने अपने विकास की अय्याशी का ठिकरा आर्थिक रूप से कमजोर देशों पर फोड़ना है और उनको पर्यावरण संरक्षण के पाठ पढ़ाने हैं बदले में भारी-भरकम ग्रीन बज़ट भी दिया जायेगा। ऐसे में यदि वक्त रहते सरकारें और नागरिक संगठन नहीं चेते तो गंभीर परिणाम झेलने होंगे। उत्तराखण्ड के कुछ और नाम हैं जिन्होने अपना जीवन पानी को बचाने और जंगल को बनाने में झोंक दिया है। जैसे पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली ने लाखों पौधों का रोपण कर अच्छे खासे जंगल ही खड़े कर दिए। बहुत से युवा जगत सिंह जंगली के कार्यो पर शोध भी कर रहे हैं। पानी की शुद्धता और उपलब्धता पर डाॅं ब्रज मोहन शर्मा कई वर्षो से शोध में जुटे हैं।
अल्मोड़ा द्वाराहाट के निवासी शिक्षक मोहन चन्द्र काण्डपाल ने द्वाराहाट के आसपास 10 किमी के दायरे में नागरिक समूहो और विद्यार्थियों के सहयोग से दस लाख खाव बनाये हैं। विगत तीन दशकों से मोहन चन्द्र काण्डपाल ने पानी बोओ पानी उगाओ अभियान को जिंदा रखा है साथ में अल्मोड़ा के द्वाराहाट की रिस्कन नदी के संरक्षण की तैयारी भी कर रहे हैं। पानी बचाने की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए रूद्रप्रयाग निवासी पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली ने एक लाख पौधों को प्लानटेंशन कर सदी का एक महान कार्य किया है। इस श्रृंखला मंे देहरादून के बृजमोहन शर्मा का नाम भी आता है जिन्होने बंूद-बूंद पानी को संजोने का सपना बुना और उस सपने को साकार करने के लिए उनके प्रयास जारी हैं।
मोहन चन्द्र काण्डपाल ने करीब 1.5 लाख पौधों का रोपण किया है। बांज, बुरांश, उतीश, शीशम इनमें प्रमुख हैं। मोहन बताते हैं कि पानी रोकने के पारंपरिक तौर तरीकों में कुंड, पोखर, हौज, चाल, नौला, खाल, गधेरा, खाव, धारे, तालाब प्रमुख हैं इनका संरक्षण ही पानी को बचायेगा। कोई दूसरा विकल्प फिलहाल दिखता नहीं। किन कारणों से पानी की कमी हो रही है? इस पर पर्यावरणविदों को बहुत साफ नजरिया हैं वे बताते हैं कि पहाड़ों से पलायन, खेती का बंजर होना, नदियों का जल स्तर कम होना, वृक्षा रोपण में कमी और रोपे गए पौधों की देखभाल नहीं हो पाना, जंगलों में लगने वाली आग आदि। कुछ तरीके यदि समाज अपना ले तो जंगल बचें रहेंगे और पानी भी रिचार्ज होता रहेगा। यह आसान तरीका है इसे अपना कर पानी की कमी से बचा जा सकता है।
गरूड़ सिरकोट क्षेत्र के किसान और पर्यावरण प्रेमी हैं जगदीश कुनियाल। इन्होने अपनी पैत्रक जमीन में करीब एक लाख पौधों को सफल रोपण किया इनमें शामिल हैं बांज, काफल, उतीश, बुरांश। पौधे लगाये तो एक जंगल उग आया और उग आया पानी का एक स्रोत आज उस पानी से कई गाॅवों को पेय जल सप्लाई होता है बदले में ग्रामीण जंगल की सुरक्षा करते हैं। एक अनूठी पहल जगदीश कुनियाल ने शुरू की आपने ग्राम वासियों से कहा जंगल तुमको पानी देगा और तुम जंगल को सुरक्षा देने का वादा करो। लोगों को यह विचार पसंद आया और आज एक घना जंगल सिरकोट में कुनियाल जी के प्रयासों के साथ जन सहभागिता की मिशाल पेश कर रहा है।
पानी के योद्धाओं की कहानी आगे बढ़ती है और रूद्रप्रयाग के जंगत सिंह जंगली पर थोड़ा ठहरती है। जंगली जी ने अपना जीवन जंगलों की रक्षा, सुरक्षा के लिए समर्पित किया और आज परिणाम हमारे सामने हैं। पूर्व सैनिक रह चुके जंगली जी ने अपनी 300 एकड़ भूमि में विविध प्रकार के पौधे रोपे और एक बड़ा जंगल खड़ा हो गया। जगत सिंह जंगली को पर्यावरण से लगाव था और सरकारी नौकरी छोड़ कर खुद जंगल उगाने में जुट गए। जंगल उगा तो सूख चुके पानी के स्रोत पुनः उग आये और अब पानी को सहेज कर औषधीय पौधों पर कार्य कर रहे हैं। जंगली जी को पर्यावरण संरक्षण के लिए एशिया प्राइड पुरूस्कार से सम्मानित किया गया है।
घटते पानी के साथ कम होता पेय जल एक प्रमुख समस्या है। पीने के लिए शुद्ध जल की उपलब्धता को बनाये रखना एक कठिन चुनौती है। इस क्षेत्र में डाॅ. बृजमोहन शर्मा गहन अध्ययन कर रहे हैं आपने एक ऐसा यंत्र बनाया है जिसकी सहायता से कोई भी अपने घर में आने वाले पानी की जाॅच स्वयं कर सकता है। बृजमोहन शर्मा सोसायटी आॅफ पाॅल्यूशन एंड कंजरवेक्शन सांइटिस्ट के सचिव हैं। 2018 में बृजमोहन शर्मा को नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया।