उत्तराखंड के धधकते जंगल : विपिन जोशी

उत्तराखंड अपनी अथाह प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है। साथ में हिमालय की अपनी गरिमा और आस्था भी यहां कण कण में विराजमान है। लेकिन ग्रीशमकाल आते ही उत्तराखंड को न जाने किसकी नजर लग जाती हैं । किसी दौर में पर्यटकों के लिए मई और जून का सीजन टूरिस्ट सीजन के नाम से यहां के पहाड़ी क्षेत्रों में प्रसिद्ध था जो स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का भी एक केंद्र था लेकिन वक्त की उलटबासियां देखिए अब गर्मियों का सीजन फायर सीजन के नाम से जाना जाता है।

अबकी 2024 दिसम्बर से ही जंगलों आग लगनी शुरू हो है थी जो अब तक बदस्तूर जारी है। उत्तराखंड वन विभाग के अपने दावे हैं उनका कहना है कि दावाग्नि के कई कारण हैं। लोगों में जागरूकता की कमी भी एक प्रमुख कारण है। तो जनता इस बात को नकारती है और विभाग पर आरोप लगाती है कि विभाग अपने घपले घोटाले छिपाने के लिए जंगलों को आग के हवाले कर देता है। असल कारण एक रहस्य ही बने हैं। गरुड़ बागेश्वर क्षेत्र के वन क्षेत्र अधिकारी ने चर्चा के दौरान जानकारी देते हुवे बताया कि वन विभाग ले पास जमीनी स्तर पर कर्मचारियों और संसाधनों की घोर कमी है, ऐसे में यदि नागरिक अपनी जिम्मेदारी निभाते हुवे जंगलों को आग से बचाने में विभाग का सहयोग नहीं करेंगे तो यह एक विकराल समस्या बन जायेगी। आम तौर पर नागरिक अपनी जान पर खेलकर जंगलों की आग बुझाने में विभाग की मदद करते हैं, पहाड़ में कभी कभी विभाग के कर्मचारी विकट क्षेत्रों में पहुंच भी नहीं पाते। प्रशाशन ने टिहरी और नैनीताल के आसपास के जंगलों में हैलीकॉप्टर से पानी का छिड़काव करने की कोशिश भी की लेकिन वो नाकाफी है।

जंगलों को बचाने के लिए वन विभाग और स्थानीय नागरिकों को साथ मिलकर काम करना चाहिए। फायर सीजन में स्थानीय नागरिकों को कुछ दिनों के लिए रोजगारिल जाएगा और वन विभाग को भी मदद मिलेगी। लेकिन शीर्ष पर विराजमान नीति नियंताओं को ऐसे विचार शायद नहीं आते होंगे। वरना जंगल की आग में प्रति वर्ष करोड़ों की संपदा और वन्य जीव तथा स्थानीय लोग स्वाहा नही होते।

जंगल जलते हैं तो बड़े पेड़ों के साथ सैकड़ों प्रकार की अन्य वनस्प्तियो पर भी प्रभाव पड़ता है। बेजुबान निरीह प्राणी भी अपनी जान गंवाते हैं और बस्तियों की तरफ आने वाली आग से भी जन हानि होती है। पर्यावरण संरक्षण के सवाल भी धुवे के गुबार में गुम हो जाते हैं। इन दिनों उत्तराखंड के जंगल भयानक आग की चपेट में हैं। चारों ओर धुंध और धुंआ है। आंखों में जलन और सांस लेने में दिक्कत होना आम बात है। जंगलों की आग से अन्य पर्यावरणीय प्रभाव भी उभर रहे हैं। पर्यावरण के लिए हिमालय के लिए यह अशुभ संकेत है।

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