विकास का दिवास्वप्न : विपिन जोशी

उत्तराखण्ड, गरूड़ विकास खण्ड का दुर्गम क्षेत्र है दाबू और हड़ाप गॉव। विकास खण्ड मुख्यालय से करीब 30 किमी. की दूरी पर स्थित है दाबू गॉव। दलित वर्ग बाहुल्य इस गॉव में गरीब और वंचित तबको की वास्तविक स्थितियां बिना लाग लपेट के प्रकट होती हैं। गॉव मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहा है। लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत है दैनिक मजदूरी। खेती किसानी से अनाज का उत्पादन बहुत न्यूनतम रूप में होता है। नीबू, मालटा, गडेरी और मौसमी सब्जी यहां प्रचुर मात्रा में लोग उगा लेते हैं। गॉव तक पहुॅचने के दो रास्ते हैं दोनों बहुत खराब हैं और विकट भी हैं। पय्या गॉव से पैदल रास्ता है जो काफी कठिन है। सुराग गॉव से भी रास्ता है जो और अधिक कठिन है। दाबू गॉव के लिए लिंक मार्ग का काम शुरू हुआ। सड़क कटान का काम आधे मार्ग में फस गया है। एक पुल भी बनाया गया था जिसकी गुणवत्ता पर ग्रामवासियां ने सवाल भी किए लेकिन सवाल बहुत दूर तक पहॅुच नहीं पाए। मैंने एक यूटयूब चैनल से दाबू गॉव पर स्टोरी की लेकिन रसूकदारों की कृपा दृष्टि के चलते मुझे चैनल छोड़ना पड़ा। खैर मैंने स्वर स्वतंत्र नाम से अपना नया न्यूज पोर्टल लांच किया और अब मैं स्वतंत्र रूप से जन मुद्दों को क्रमशः आप तक पहुॅचा रहा हूॅ। मुझे पाठकों का सहयोग मिल रहा है आज भले ही सहयोग की दर न्यूनतम है लेकिन भविष्य में जन-जन तक स्वर स्वतंत्र पहॅुचेगा और बेबाक तरीके से तथ्य पूर्ण अंदाज में जन मुद्दों की पैरवी करेगा।
दाबू गॉव में एक प्राथमिक विद्यालय है, विद्यालय की स्थिति औसत है। एक जूनियर हाईस्कूल भी यहां है जो गॉव से कुछ दूरी पर स्थित है। जैसे-तैसे बच्चे आठवीं कक्षा पास करके उच्च शिक्षा की आस में गॉव से करीब दस किमी. दूर जीआईसी अमस्यारी का रूख करते हैं। बच्चों की सबसे बड़ी दिक्कत है गॉव से स्कूल तक की आवाजाही जो उनको प्रतिदिन 20 किमी. का दुरूह सफर तय कराती है। जीआईसी अमस्यारी अब अटल उत्कर्षठ विद्यालय की श्रेणी में आ गया है। तमाम सुविधाओं से लैस यह इण्टर कॉलेज अच्छे से संचालित किया जा रहा है, समुदाय का शानदार सहयोग विद्यालय को मिल रहा है। ग्रामीणों ने 32 नाली जमीन भी विद्यालय को दान स्वरूप दी है। इन तमाम कयासों के बीच मुझे एक कार्यक्रम में दाबू गॉव के बच्चों का सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने को मिला। बच्चों ने एक समूह गीत प्रस्तुत किया जिसमें उत्तराखण्ड के लोग जीवन की झलक को प्रस्तुत किया गया था। प्रस्तुति शानदार थी और एक संदेश भी जनप्रतिनिधियों के उस गीत में था कि देखो इतनी कठिन चढ़ाई पूरी करने के बाद और न्यूनतम संसाधनों के बीच रहते हुए भी हम प्रतिभा में किसी से उन्नीस नहीं हैं। बच्चों ने खूब तालियां बटोरी और बाहर से आमंत्रित अतिथियों के साथ एक फोटो सेशन भी इन बच्चों के साथ किया गया।
दाबू गॉव के ग्रामीण कहते हैं कि सड़क हमारे लिए सबसे जरूरी माध्यम है। सड़क बन तो रही है लेकिन गॉव से पॉच किमी. पूर्व ही सड़क का कटान रूक गया है। कारण तो कार्यदायी संस्था और ठेकेदार बता पाएंगे लेकिन इस रूकी हुई अधूरी सड़क के पीछे दाबू और हड़ाप के ग्रामीणों की जीवन शैली कितनी कष्टदायी हो चुकी है इस बात को धरातल पर जाकर महसूस किया जा सकता है। सड़क होती तो बहुत से मरीजो का जीवन बचाया जा सकता था, जिनको अस्पताल पहॅुचने से पहले काल कलवित होना पड़ा। सड़क होती तो गॉव में बेतहाशा उत्पादित होने वाला फल बाजार तक पहुॅचता और काश्तकार का चूल्हा जलता उसकी जेब में कुछ पैसा आता। सड़क होती तो लोगों का जीवन आसान होता उनके कंधो को कुछ राहत मिलती और रोजगार के कुछ सीमित अवसर भी खुलते। सड़क तुम अब आई हो गॉव में जब गॉव जा चुका शहर। उम्मीद करनी चाहिए उपरोक्त कथन झूठा साबित हो और 2024 जाते-जाते दाबू गॉव की अधूरी सड़क पूर्ण हो जाए।
सड़क के साथ विकास और शिक्षा के मुद्दे तो जुड़े हैं लेकिन दाबू हड़ाप की स्वास्थ्य व्यवस्था भी बहुत संतोषजनक नहीं है। एएनएम मैडम लोग तो समय-समय पर गॉव में टीके आदि के कैम्प लगाते हैं लेकिन गॉव के आसपास कोई ऐसा केन्द्र नहीं है जो ग्रामीणों को मेडिकल संबंधी फौरी राहत मुहैया करा सके। केन्द्र कहीं दूर है और उसके कर्मचारी बैजनाथ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में संबंद्ध हैं। यानी दूर दराज क्षेत्र के नाम पर नौकरी कर रहे ये कर्मचारी सुगम क्षेत्र का आनंद उठा रहे हैं। इस तमाम प्रक्रिया से प्रशासन अनजान नहीं है, तो किस आधार पर इस प्रकार की सरकारी अनियमित्ता धड़ल्ले से जारी है ? मुख्य धारा की इलैक्ट्रानिक और प्रिन्ट मीडिया को इतनी फुरसत नहीं कि वे कष्ट उठा कर दाबू जाएं और अपने पल्ले का पैंसा खर्च गॉव की रीयल स्टोरी कवर कर दुनियां को दाबू के अविकसित विकास की गाथा सुनाएं। त्योहार का सीजन चल रहा है तो पत्रकारों पर विज्ञापन बटोरने का भी दबाव रहता है तो इन दिनों अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की वंदना का समय है, बिना विज्ञापन के मीडिया का दम घुट जाऐगा क्योंकी विज्ञापन ही एक मात्र स्रोत है जो मीडिया की मशीनरी को जिंदा रखे हुए है। बहरहाल दाबू हड़ाप गॉव की तमाम समस्याएं हैं जिनको किसी आलेख में पढ़ कर महसूस कर पाना कठिन है। प्रशासन के आला अधिकारियों को एक जनता दरबार दाबू गॉव में भी लगवाना चाहिए कभी कोई तहसील दिवस दाबू के स्कूल में मनाना चाहिए ताकी दुरूह जीवन शैली की एक झलक अधिकरी, कर्मचारी, जनप्रतिनिधि महसूस कर पाए।
Vipin Joshi 7505940378/9456593068