अपराध - Swar Swatantra https://swarswatantra.in Latest News | Breaking News | Live News Tue, 22 Apr 2025 10:37:58 +0000 hi-IN hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 https://swarswatantra.in/wp-content/uploads/2021/06/swarswatantra-2-150x150.png अपराध - Swar Swatantra https://swarswatantra.in 32 32 बागेश्वर पुलिस अराजकता के ख़िलाफ़ हुई मुखर https://swarswatantra.in/archives/10754?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25ac%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%2597%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25b6%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%2581%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25b8-%25e0%25a4%2585%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25a4%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%2595 https://swarswatantra.in/archives/10754#respond Tue, 22 Apr 2025 10:37:58 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10754 अराजक तत्वों/मनचलों पर लगाम लगाने व ट्रैफिक नियमों का पालन न करने वालों के विरुद्व सी0ओ0बागेश्वर के नेतृत्व में कोतवाली पुलिस का सघन चैकिंग अभियान लगातार जारी। इसी क्रम में सभी थाना प्रभारियों द्वारा भी अपने-अपने थाना क्षेत्र में चलाया सघन चैकिंग अभियान. पुलिस अधीक्षक, बागेश्वर चंद्र शेखर घोड़के के निर्देशन में पुलिस उपाधीक्षक, बागेश्वर ... Read more

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अराजक तत्वों/मनचलों पर लगाम लगाने व ट्रैफिक नियमों का पालन न करने वालों के विरुद्व सी0ओ0बागेश्वर के नेतृत्व में कोतवाली पुलिस का सघन चैकिंग अभियान लगातार जारी।

इसी क्रम में सभी थाना प्रभारियों द्वारा भी अपने-अपने थाना क्षेत्र में चलाया सघन चैकिंग अभियान.

पुलिस अधीक्षक, बागेश्वर चंद्र शेखर घोड़के के निर्देशन में पुलिस उपाधीक्षक, बागेश्वर व प्रभारी निरीक्षक कोतवाली श्कैलाश सिंह नेगी के नेतृत्व में कोतवाली पुलिस टीम द्वारा देर रात्रि तक नगर क्षेत्र में पैदल मार्च कर अराजक तत्वों/मनचलों पर लगाम लगाने व यातायात नियमों का पालन न करने वालों के विरूद्ध सघन चैकिंग अभियान चलाया गया जिसमें वाहनों, होटलों, ढाबों आदि को चैक किया गया एवं बाहरी व्यक्तियों के सत्यापन चैक किये गये साथ ही दुकानदारों व फड़ फेरी लगाने वालों को सुगम यातायात के दृष्टिगत सड़क मार्ग पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण न फैलाने हेतु सख्त हिदायत दी गयी।

इसी क्रम में जनपद पुलिस द्वारा अपने-अपने थाना क्षेत्रान्तर्गत चैकिंग अभियान चलाया गया एवं सम्बन्धितों के विरुद्व चालानी कार्यवाही की गयी ।
यातायात नियमों का उल्लंघन (ओवरलोडिंग, खतरनाक तरीके से वाहन चलाना, मोबाइल का प्रयोग करना, बिना रिफ्लेक्टर, बिना नम्बर प्लेट/दोषपूर्ण नम्बर प्लेट, बिना हेलमेट) वाले व सार्वजनिक स्थलों/ धार्मिक स्थलों पर शराब पीकर गन्दगी करने व हुड़दंग करने वाले कुल 68 व्यक्तियों के खिलाफ वैधानिक कानूनी कार्रवाई की गई।
विपिन जोशी

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आग का तांडव हर ओर सिर्फ धुँआ : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10741?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2586%25e0%25a4%2597-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25a4%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25a1%25e0%25a4%25b5-%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%2593%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25ab-%25e0%25a4%25a7%25e0%25a5%2581%25e0%25a4%2581 https://swarswatantra.in/archives/10741#respond Tue, 08 Apr 2025 14:40:50 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10741 बागेश्वर जनपद के जंगलों में नहीं थम रहा आग का तांडव. जनपद के अलग-अलग क्षेत्रों के जंगलों में लगातार भीषण आग लगने से जहा एक ओर वन संपदा को भारी नुकसान हो रहा है, साथ ही आग लगने से चारों ओर धुवां छा गया है, जिससे कौसानी से हिमालय का दीदार करने आए पर्यटकों को ... Read more

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बागेश्वर जनपद के जंगलों में नहीं थम रहा आग का तांडव. जनपद के अलग-अलग क्षेत्रों के जंगलों में लगातार भीषण आग लगने से जहा एक ओर वन संपदा को भारी नुकसान हो रहा है, साथ ही आग लगने से चारों ओर धुवां छा गया है, जिससे कौसानी से हिमालय का दीदार करने आए पर्यटकों को हिमालय नहीं दिखने से पर्यटक मायूस नजर आ रहे हैं. होटल व्यवसायी भी निराश हैं. व्यवसायियों का कहना है कि कौसानी में पर्यटक अच्छे मौसम व हिमालय के दीदार करने को पहुंचता है, ऐसे में चारों ओर आग के धुंए ने विजिबिलिटी कम कर दी है और हिमालय के दीदार नहीं होने से कौसानी आए पर्यटक मायूस हो लौटने को मजबूर हैं.
सामाजिक कार्यकर्त्ता,गिरीश कोरंगा ने बताया कि इस बार समय से पहले ही जंगलों में भीषण आग लग गयी हैं,जंगलों में आग की वजह से यहां आए पर्यटक मायूस लौट रहे हैं क्योंकि उन्हें हिमालय का दीदार नहीं हो पा रहा है, उन्होंने बताया की चारों ओर अभी से धुँवा ही धुँवा फैल गया हैं, जिससे बुजर्गो को भी दिक्कतें हो रही हैं. दमे के मरीजों के लिए यह सीजन मुश्किल भरा है. उन्होंने वन विभाग से आग पर नियंत्रण कर व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए कहा है.
उप जिलाधिकारी गरुड़ जीतेन्द्र वर्मा ने बताया की पिछले वर्ष के फायर अनुभव के आधार पर हमने इस वर्ष सर्दियों से ही दावानल की घटनाओं की रोकथाम हेतु योजना बनाई हैं, कई जगहों पर शिविर भी लगाए गए हैं, इन शिविरों में एसडीआएफ, फायर फ़ोर्स, पुलिस विभाग,राजस्व विभाग स्थानीय नागरिक संगठन शामिल रहे, गावों में भी शिविर लगाने की योजना है. उक्जात संदर्गभ में जागरूकता अभियान भी चलाये जा रहे हैँ. कृषि भूमि तथा वन भूमि में लगाई जाने वाली आग वातावरण के लिए हानिकारक हैं इस बात की जानकारी लोगो को दी जा रही हैं. वर्तमान में तीन आग की घटनाये सेटेलाइट से रिकार्ड हुई हैं, जिले में 32 फायर क्रू स्टेशन बनाये गए हैँ, जिसमे प्रत्येक क्रू स्टेशन में 4 फायर वाचार नियुक्त हैँ, आग लगाने वालों व आग की जानकारी देने वालों की सूचना देने वालों को इनाम भी दिया जायेगा .उन्होंने स्थानीय लोगो अपील की हैं की इस तरह की घटनाओं से बचें, तांकी पर्यटक यहाँ आकर प्राकृतिक छटा का आनंद लें व अच्छा संदेश लेकर जाएँ.
गड़खेत रेंज के वन श्रेत्र अधिकारी केवलानंद पांडे ने लोगों से अपील की है कि फायर सीजन में अपनी नाप भूमि हो या जंगलात की भूमि उसे आग से बचाने में विभाग की मदद करें। केवलानंद पांडे ने जानकारी दी कि उन्होंने अभी तक 38 खूंखार जानवरों को पिंजड़े में कैद किया है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति और वन्य जीव के प्रति वन विभाग अपनी टीम के साथ हमेशा तत्पर है।
पांडे ने बताया कि आम तौर पर तीन प्रकार की आग जंगलों में लगती है। जो आग के व्यवहार और जंगल की संरचना पर आधारित होती हैं।
सतही आग , यह आग जंगल की सतह पर फैलती है और मुख्य रूप से सूखी घास, पत्तियाँ, टहनियाँ और छोटे पौधों को जलाती है। यह सबसे आम प्रकार की जंगल की आग है और इसे नियंत्रित करना अपेक्षाकृत आसान होता है।
मुकुट आग ,यह आग पेड़ों की चोटियों (मुकुट) तक पहुँचती है और तेजी से फैलती है, खासकर जब हवा तेज होती है। यह बहुत तीव्र और खतरनाक होती है, क्योंकि यह बड़े पैमाने पर पेड़ों को नष्ट कर देती है।
भूमिगत आग , यह आग जमीन के नीचे जलती है, जहाँ जैविक पदार्थ जैसे पीट या जड़ें मौजूद होती हैं।यह धीरे-धीरे जलती है और लंबे समय तक सुलगती रह सकती है, जिससे इसे बुझाना मुश्किल होता है।
बागेश्वर के वनों में फिलहादल सतही आग ज्यादा फैल रही है। समुदाय और विभाग के समन्वय से इस प्रकार की आग को नियंत्रित किया जा सकता है।

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पानी का घालमेल : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10732?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a8%25e0%25a5%2580-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%2598%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%25ae%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25b2-%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%259c%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25b6%25e0%25a5%2580 https://swarswatantra.in/archives/10732#respond Sun, 06 Apr 2025 07:48:59 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10732 पानी का घालमेल : भारत सरकार और उत्तराखण्ड सरकार की बहुउद्देशीय योजना थी जल जीवन मिशन याने घर-घर नल। बस सिर्फ नल क्योकी जल या तो गायब है या फिर तुर-तुर करके रेंगता हुआ किसी स्टैण्ड पोस्ट तक पहॅुच भी गया तो गनीमत समझो। किस्सा है वैसे तो संपूर्ण उत्तराखण्ड का लेकिन एक गॉव से ... Read more

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पानी का घालमेल :
भारत सरकार और उत्तराखण्ड सरकार की बहुउद्देशीय योजना थी जल जीवन मिशन याने घर-घर नल। बस सिर्फ नल क्योकी जल या तो गायब है या फिर तुर-तुर करके रेंगता हुआ किसी स्टैण्ड पोस्ट तक पहॅुच भी गया तो गनीमत समझो। किस्सा है वैसे तो संपूर्ण उत्तराखण्ड का लेकिन एक गॉव से समझते हैं जल जीवन मिशन के घोटाले को विस्तार से। दो वर्ष पूर्व तैलीहाट के ग्रामीणों के अथक प्रयासों से 65 लाख की परियोजना पर काम शुरू हुआ। नदी के किनारे लिफ्ट योजना के तहत 260 मीटर गहरी ड्रील कराई गई 13 पाईप लगने थे ग्रामीण बताते हैं कि 260 मीटर गहरा डी्रल होना था लेकिन सिर्फ 35 मीटर डी्रल किया गया और काफी राजैनतिक दबाव के बाद ग्रामीणों के हो हल्ला करने के बाद 5 अप्रैल को पेयजल योजना को पानी का डिस्चार्ज नापने के लिए दो घंटा चलाया गया। पानी का डिस्चार्ज स्टोरेज टैंक पर नापना था, हालांकी स्टोरेज टैंक अभी बना नहीं है। पानी का डिस्चार्ज बहुत कम है 4 सेकेण्ड में 1 लीटर पानी भर रहा है। स्टोरेज टैंक की क्षमता है 27500 लीटर इस हिसाब से टैंक को लगभग 27 घंटे लगेंगे भरने में यदि पानी लगातार चालू रहा तो।
दो साल से जल जीवन मिशन की योजना में अटक-अटक कर निर्माण कार्य चल रहा है। ग्रामीणों ने मनरेगा स्कीम में जो टैंक बनाया था अब उसे स्टोरेज टैंक बनाया जा रहा है। रेता मिट्टी में तब्दील हो रहा है विभागीय एक्शन और जेई कहते हैं कि एक महीने में टैंक बन कर तैयार हो जाएगा। तब तक इस सूखे सीजन में ग्रामीण पानी के संघर्ष से जूझते रहेंगे। इस पूरे किस्से में कौन दोषी है। योजना का मुख्य ठेकेदार कहता है कि विभाग ने उसे भुगतान नहीं किया है, विभाग कहता है कि कार्य संतोषजनक नहीं है तो भुगतान में विलंब हो रहा है। स्वयं मैंने तीन शिकायतें जल जीवन मिशन की उक्त योजना के खिलाफ तहसील प्रशासन को दी हैं। उस पर भी कोई लिखित जवाब नहीं आया है। मुख्य मंत्री पोर्टल में भी मामला लगाया है। साथ में सूचना के अधिकार से जानकारी मांगी है। ग्राम वासियों का एक ही सवाल है कि सरकार ने 65 लाख खर्च किए हैं तो उसका समुचित लाभ ग्रामीणों को मिलना चाहिए। सरकारी योजनाओं का बुरा हाल तब होता है जब जनता योजना के प्रति जागरूक न हो। समय-समय पर निगरानी करने और विभाग से जानकारी लेने के बाद भी परियोजना का हाल संतोषजनक नहीं है तो स्थिति की गंभीरता जग जाहिर है। उक्त प्रकरण पर ग्रामीणों ने दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री शिव सिंह बिष्ट से भी मुलाकात की मंत्री महोदय ने फोन पर एक्शन को निर्देश देते हुए कहा कि एक सप्ताह में पानी की लाइन शुरू नहीं हुई तो अग्रिम कार्यवाही की जाएगी। एक्शन साहब अब हरकत में है। पानी तो चढ़ चुका है लेकिन इस चढ़ाई में पानी का दम फूल गया है साथ में योजना को भी दमा न हो जाए। इस गंभीर मामले पर विभाग तुरंत कार्यवाही करे, पाइप लाइन की मुख्य स्रोत पर गहराई की जांच डीपीआर के आधार पर हो।

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शराब संस्कृति पर साहित्यिक चर्चा https://swarswatantra.in/archives/10729?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25b6%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25ac-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25b8%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%2583%25e0%25a4%25a4%25e0%25a4%25bf-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25af https://swarswatantra.in/archives/10729#respond Sun, 06 Apr 2025 06:59:40 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10729 पंत विथिका में शराब की संस्कृति पर साहित्यिक चर्चा. उत्तराखंड के कौसानी में हाल ही में जो कुछ हुआ, उसने साहित्यप्रेमियों और संस्कृति के रखवालों को झकझोर कर रख दिया है. प्रकृति के कवि, युगवाणी के शिल्पी और मानवतावाद के पुरोधा सुमित्रानंदन पंत की स्मृति में बनी पंत विथिका, जहां शब्दों में सौंदर्य, संवेदना और ... Read more

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पंत विथिका में शराब की संस्कृति पर साहित्यिक चर्चा.
उत्तराखंड के कौसानी में हाल ही में जो कुछ हुआ, उसने साहित्यप्रेमियों और संस्कृति के रखवालों को झकझोर कर रख दिया है. प्रकृति के कवि, युगवाणी के शिल्पी और मानवतावाद के पुरोधा सुमित्रानंदन पंत की स्मृति में बनी पंत विथिका, जहां शब्दों में सौंदर्य, संवेदना और शांति का वास होता है, वहां शराब की दुकान के समर्थन में एक बैठक का आयोजन, न केवल अप्रत्याशित है, बल्कि चिंताजनक और शर्मनाक भी है.
सुमित्रानंदन पंत न केवल छायावादी युग के स्तंभ थे, बल्कि वे आधुनिक भारत की सांस्कृतिक आत्मा के प्रतीक रहे. कौसानी, जो उनकी जन्मभूमि है, वर्षों से साहित्यप्रेमियों और पर्यटकों के लिए एक तीर्थ समान रहा है. ऐसे स्थान पर किसी वाणिज्यिक और विवादित विषय जैसे शराब की दुकान खोलने के पक्ष में बैठक का होना, एक प्रकार से उस पवित्र स्थल की आत्मा को आहत करने जैसा ही है. शराब का मुद्दा सामाजिक, स्वास्थ्य और नैतिक दृष्टिकोण से हमेशा संवेदनशील रहा है। जिस स्थल पर राष्ट्र और प्रकृति को समर्पित कविताएं गूंजी हों, वहां ऐसी चर्चा का होना न केवल अनुचित है, बल्कि युवाओं के लिए भी गलत संदेश देता है. पंतजी की कविता में जिस निर्मलता और आत्मिक शुद्धता की बात थी, उसके विपरित शराब की दुकान खोले जाने की प्रबल भावना और ललक इस बैठक के लिए सहमति प्रदान करने वाले पंत विथिका के संरक्षक को जरूर दिखाई दे रही होगी तभी तो उन्होंने आनन—फानन विथिका के आंगन के साथ ही भीतरी मुख्य कक्ष भी तुरंत ही खोल दिया. अब पंत विथिका के संरक्षक के सामने भी तो किंकर्तव्य विमूढ़ वाली स्थिति हो गई होगी.
दबी आवाज में कुछ लोगों का कहना है कि पर्यटन और विकास का मार्ग स्वच्छ संस्कृति से होकर गुजरता है, न कि नशे के प्रोत्साहन से. पंत विथिका जैसे स्थल का प्रयोग यदि सांस्कृतिक जागरूकता, साहित्यिक गोष्ठियों और शिक्षा के उद्देश्यों के बजाय शराब की दुकान के समर्थन जैसे विषयों के लिए होने लगे, तो यह पूरे समाज के लिए एक चेतावनी के साथ ही कलंक हुआ.
क्या कभी इन सवालों के उत्तर मिल पाएंगे. क्या यह निर्णय स्थान की गरिमा और उसकी ऐतिहासिक-सांस्कृतिक पहचान की अवहेलना नहीं है? क्या हम अपने साहित्यिक पूर्वजों के योगदान को इस तरह तुच्छ मुद्दों में घसीट सकते हैं? क्या विकास की परिभाषा अब सिर्फ राजस्व और वाणिज्य बनकर रह गई है? कौसानी क्षेत्र में अवैध शराब किसके संरक्षण में फल फूल रहा होगा? वैसे सवाल तो ये भी उठता है कि, इस पर खबरनवीसों की नजर क्योंकर चूक गई होगी..??
आज जब हम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, तब यह आवश्यक है कि हम अपनी जड़ों को न भूलें. सुमित्रानंदन पंत केवल एक कवि नहीं थे, वे एक युगद्रष्टा थे, जिनकी संवेदना आज भी कौसानी की हवाओं में जीवित है. उनका अपमान, केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरी सांस्कृतिक चेतना का अपमान है.
कौसानी, जहां सूरज की पहली किरण हिमालय की चोटियों पर पड़ती है, वहीं कहीं कोने में शराब की अवैध नदी भी बहती है. और हां, ये नदी बिना बारिश के भी कभी सूखती नहीं है.
माना जाता है कि यहां की जलवायु अवैध शराब बेचने के लिए बहुत अनुकूल है. पर असली कमाल तो उस छाया का है जो इसे संरक्षण देती है. अब वो छाया कौन है? कोई पेड़ नहीं, साहब… वो तो कुछ छायादार नीति नियंता वाले बड़े लोग हुऐ.
पुलिस का जबाव, यहां सब ठीक है.
प्रशासन से पूछो तो जबाव मिलेगा, ‘जांच करेंगे’
जनप्रतिनिधि से पूछो तो वो कहे, ‘हमें विश्वास है कि सब ठीक चल रहा है.’
और शराब माफिया से पूछो तो…?
वो तो कहे, ‘हमारे ग्राहक संतुष्ट हैं, धन्यवाद.’
लोग कहते हैं कौसानी स्वर्ग है. हाँ, बस यहां देवता की जगह शराब ने लेनी शुरू कर दी है. अब कोई शिकायत करे तो वही पुरानी बात, ‘शराब पीना अपराध नहीं, अवैध बेचना अपराध है. और वो तो…’ऊपर’ वाले देख ही लेंगे.’
अफसोस..! नीति-नियंताओं के कानों में सिर्फ शराब समर्थक और शराबियों की मधुर आवाजें ही गूंजायमान हो रही हैं. जनता की आवाजें तो हमेशा से ही नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह ही हुई जो कभी भी नीति-नियंताओं के कानों तक पहुंच ही नही पाती हैं. वैसे भी उन्हें ये बेसूरे राग तो बिल्कुल भी पसंद नही हुए.
पत्रकार केशव भट्ट की रिपोर्ट

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बढ़ते आवारा पशु https://swarswatantra.in/archives/10679?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2586%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25a8%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25b5%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25b6%25e0%25a5%2580 https://swarswatantra.in/archives/10679#respond Sat, 29 Mar 2025 01:32:50 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10679 विपिन जोशी गरुड़ में आवारा पशुओं के खिलाफ बढ़ता आक्रोश, संवेदनाओं का हनन और प्रशासन की चुप्पी । गरुड़ में आवारा पशुओं पर लोगों का गुस्सा अब थमने का नाम नहीं ले रहा। मानवीय संवेदनाओं का हर दिन मखौल उड़ रहा है। एक तरफ गाय को माता का दर्जा देकर गगरास खिलाने की परंपरा निभाई ... Read more

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विपिन जोशी
गरुड़ में आवारा पशुओं के खिलाफ बढ़ता आक्रोश, संवेदनाओं का हनन और प्रशासन की चुप्पी ।
गरुड़ में आवारा पशुओं पर लोगों का गुस्सा अब थमने का नाम नहीं ले रहा। मानवीय संवेदनाओं का हर दिन मखौल उड़ रहा है। एक तरफ गाय को माता का दर्जा देकर गगरास खिलाने की परंपरा निभाई जाती है, धार्मिक आयोजनों में गौदान से पुण्य कमाया जाता है और वैतरणी पार करने का विश्वास जताया जाता है, वहीं दूसरी ओर जब वही गाय दूध देना बंद कर देती है, तो उसे सड़कों पर बेसहारा छोड़ दिया जाता है। यह कैसी धार्मिकता है? क्या यह संवेदनहीनता की पराकाष्ठा नहीं ?
महिलाओं का आंदोलन और गौ सेवा सदन पर दबाव ,आवारा मवेशियों के खिलाफ आक्रोश अब सड़कों पर उतर आया है। बैजनाथ, गागरीगोल और भकुनखोला से आई महिलाओं का एक दल पहले बहुउद्देशीय शिविर गरुड़ पहुंचा और फिर नारेबाजी करते हुए गौ सेवा सदन तक मार्च किया। वहां उन्होंने आवारा मवेशियों को फिर से गौ सदन में बांध दिया। पिछले दो महीनों से ये महिलाएं कभी तहसील तो कभी गौ सेवा सदन में मवेशियों को छोड़कर अपना विरोध जता रही हैं। गौ सेवा सदन के संचालक विनोद कांडपाल का कहना है कि उनके पास अब अतिरिक्त मवेशियों के लिए जगह नहीं बची। वर्तमान में 130 मवेशी पहले से मौजूद हैं, जिसके चलते स्थिति अनियंत्रित हो रही है। महिलाएं अपनी एक सूत्रीय मांग पर अडिग हैं। उनका कहना है कि गौ सदन को दूसरी जगह स्थानांतरित किया जाए, ताकि अधिक मवेशियों को आश्रय मिल सके। यह मांग न केवल जायज है, बल्कि गंभीर हालात को देखते हुए तत्काल कार्रवाई की जरूरत को भी उजागर करती है।
सरकारी योजना लंबित
जिला पशु अधिकारी के अनुसार, गरुड़ के जैसर में 6 नाली भूमि पर 58 लाख 50 हजार रुपये की लागत से 150 मवेशियों के लिए एक गौशाला बनाने की योजना स्वीकृत हुई है। लेकिन यह योजना अभी शासन स्तर पर अटकी पड़ी है और निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है। कागजों में भले ही योजना तैयार हो, लेकिन जमीनी हकीकत में कोई प्रगति नजर नहीं आती।
प्रशासन की खामोशी और चुनावी चुनौती।
आवारा पशुओं की समस्या दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है, लेकिन प्रशासन की चुप्पी समझ से परे है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव सिर पर हैं, और यह मुद्दा कहीं नेताओं के लिए गले की हड्डी न बन जाए। जनता का आक्रोश अब सड़कों पर है, और यदि इसे अनदेखा किया गया तो यह राजनीतिक परिणामों को भी प्रभावित कर सकता है।
गरुड़ में यह विडंबना न केवल सामाजिक और धार्मिक मूल्यों पर सवाल उठाती है, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता को भी उजागर करती है। जरूरत है एक ठोस और त्वरित समाधान की, ताकि न गाय माता सड़कों पर भटकने को मजबूर हो, न ही जनता को अपने हक के लिए बार-बार सड़कों पर उतरना पड़े। क्या यह संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का समय नहीं है?

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अलविदा दिसंबर 2024 : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10534?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2585%25e0%25a4%25b2%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a6%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25a6%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25b8%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25ac%25e0%25a4%25b0-2024-%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%259c%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25b6%25e0%25a5%2580 https://swarswatantra.in/archives/10534#respond Mon, 23 Dec 2024 01:51:15 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10534 दिसंबर के साथ साल 2024 विदाई लेने को तैयार है. वक्त मुट्ठी में कसी रेत की मानिंद फिसल रहा है. लेकिन दूर दूर तक बारिश का नामोनिशा नहीं है. गेहूँ के खेत सूख चुके हैं, नहरों में झाड़ियाँ जमी हुई हैं लिफ्ट योजना के पंप जवाब दे चुके हैं. गेहूँ को पाला यानी तुषार मार ... Read more

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दिसंबर के साथ साल 2024 विदाई लेने को तैयार है. वक्त मुट्ठी में कसी रेत की मानिंद फिसल रहा है. लेकिन दूर दूर तक बारिश का नामोनिशा नहीं है. गेहूँ के खेत सूख चुके हैं, नहरों में झाड़ियाँ जमी हुई हैं लिफ्ट योजना के पंप जवाब दे चुके हैं. गेहूँ को पाला यानी तुषार मार देता है यदि समय पर सिंचाई ना हो तो पंप से सिंचाई करना महंगा हो गया है पेट्रोलियम महंगा हुआ तो सिंचाई भी महँगी हो गई. चलिए सिचाईं कर भी दी तो बची ख़ुशी कसर आवारा गाय, बैल और बंदरों ने पूरी कर दी है. बंदर के साथ जंगली सुवरों का आतंक भी खुल कर सामने आ चुका है. बंदरों ने लोगों को गंभीर रूप से चोटिल किया है तो कुछ मामलों में जान भी गवाई है.
किसान दो तरफा मार झेलने को विवश हैं. मौसम, तुषार और सूखे की मार से बचे तो जंगली जानवरों का ख़ौफ़ मुंह बाएं खड़ा रहता है. बंदरों से मुक्ति का कोई उपाय सूझे उससे पहले घर, खेत, रास्ते में गुलदार खड़ा घूरता है. यानी प्रकृति ने हर ओर से दस्तक दी है. चलिए दिसंबर में पिघलते हिमालय को काला पड़ते देख कुछ दुःख कर जैसे ही सभलते हैं तो कागज पत्री के चक्कर आदमी को घनचक्कर बना रहे हैं. हर दस्तावेज का डिजिटलाइजेशन हो गया है उस प्रक्रिया में कागज पाती का काम और मुश्किल हो गया है. आधार कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, बच्चों का वजीफा, आवास योजना के कागज और भी तमाम तरह के दस्तावेज. आम आदमी के को उलझाए रखने के बहुत अच्छे टूल हैं. सरकार दिखावे के लिए दूर दराज गावों में बहुउद्देशीय शिविर भी लगाती हैं लेकिन इन शिविरों की हकीकत हमको मालूम है, जैसे तहसील दिवस की औपचारिकता को सभी जानते हैं. शिकायत दर्ज तो जाती है परंतु समाधान होता नहीं दिखता.
गुजरते बीतते दिसंबर के आख़िरी सप्ताह में एक नजर इन्फ्रास्ट्रक्चर्स पर भी डाल लेते हैं. सड़क सुरक्षा सप्ताह धूम धाम से मनाया जाता है. लेकिन लंबित पड़ी सड़कों की सुध नहीं ली जाती है. सड़कों का नया डामरीकरण दो सप्ताह में उतर जाता है. आधी अधूरी घटिया सड़कें सड़क सुरक्षा और सुशासन के दावों को खारिज करती हैं .
अब शिक्षा व्यवस्था को देखें तो शिक्षा का बाजारीकरण और माफियाकरण दोनों तीव्रगति से फ़ैल रहा है. प्राइवेट स्कूलिंग विशुद्ध रूप से बाज़ारीकरण में लिप्त है तो वहीं सरकारी शिक्षा व्यवस्था को एनजीओ कल्चर धीरे धीरे घुन की तरह खोखला कर रहा है, सरकार की निजीकरण नीति एक दिन सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर भारी पड़ेगी तब सरकारी शिक्षा में गहरी सेंध लगा चुका एनजीओ कल्चर का सच सार्वजनिक होगा लेकिन क्या कन तब जब चिड़िया चुग गई खेत.
स्वास्थ्य व्यवस्था ख़ुद आईसीयू में बेहाल पड़ी है. ना जाने क्या हो गया है दिसंबर के जाते जाते बहुत जवान अधेड़ आयु वर्ग के लोगों को हृदय घात जैसी बीमारी के चलते दिवंगत होते देखा है. इस बात का गहन विश्लेषण भी कोई कर रहा होगा कि कोविड काल के बाद हृदयघात, ब्रेन हैमरेज जैसे मामलों में कितनी तेजी आई है .
कभी तो अवश्य सच सामने आयेगा इस बात पर भरोसा करने के अलावा जनता के पास कोई दूसरा रास्ता है क्या ? शायद नहीं.
दिसंबर तो चला जाएगा, तारीखें बदलेंगी, मौसम बदलेगा, कौन जाने बदलते बदलते सत्ता भी बदल जाए. इस बात पर भी भरोसा कर ही लेते हैं कि जब कभी सत्ता बदलेगी तो दुःख, अन्याय, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण, महंगाई से राहत मिलेगी, मिलनी तो इनसे मुक्ति चाहिए चलो राहत से भी काम चला लेंगे.
सब कुछ ग़लत और अशुभ तो नहीं घटा किसी के लिए शुभ और अच्छा सुखद भी रहा होगा 2024 तो उनको बधाई ऐसे लोगों का आने वाला कल और सुखद हो, ऐसी दुआ प्रार्थना करते हैं.
मानवीय हस्तक्षेप और अप्रासंगिक विकास नीतियों ने ग्लोबल वार्मिंग को न्यौता दिया जिसके दुष्परिणाम आज साफ़ तौर पर सामने दिख रहे हैं . काला पड़ता हिमालय, बदलता मौसम चक्र ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज के असर को भी दर्शा रहा है. ऐसे में भविष्य में बहुत सुखद महसूस होने के संकेत तो नहीं दिखते हैं. सामने भयानक संकट की आहट महसूस होती है.
इसलिए हे दिसंबर 2024, अब तक जो हुआ सो हुआ आगे के लिए हमारे बुद्धिजीवियों, नीतिनियंताओ, राजनीतिक दलों के नेताओं को सदबुद्धि प्रदान करना ताकि अब भविष्य में कोई बड़ी आपदा ना आने पाए. आपदा के बाद पीछे छूट जाती हैं एक टीस, अपनों की याद और बहुत से दुखद एहसास.

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भीमराव अंबेडकर का अपमान क्यों : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10531?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25ad%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25b5-%25e0%25a4%2585%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25ac%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25a1%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%2585%25e0%25a4%25aa%25e0%25a4%25ae%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%2595 https://swarswatantra.in/archives/10531#respond Fri, 20 Dec 2024 02:09:48 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10531 संसद में देश के गृहमंत्री ने डाक्टर भीमराव अंबेडकर पर अमर्यादित टिप्पणी करके पूरे देश में खलबली मचा दी है. कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष आज भीमराव अंबेडकर के अपमान पर आक्रोशित है. पिछड़े और हाशिए के लोगों के लिए डाक्टर भीमराव अंबेडकर उनकी विचारधारा के आराध्य हैं. संविधान प्रद्दत लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्षधर लोग अब ... Read more

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संसद में देश के गृहमंत्री ने डाक्टर भीमराव अंबेडकर पर अमर्यादित टिप्पणी करके पूरे देश में खलबली मचा दी है. कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष आज भीमराव अंबेडकर के अपमान पर आक्रोशित है. पिछड़े और हाशिए के लोगों के लिए डाक्टर भीमराव अंबेडकर उनकी विचारधारा के आराध्य हैं. संविधान प्रद्दत लोकतांत्रिक मूल्यों के पक्षधर लोग अब गृहमंत्री अमित साह के ख़िलाफ़ बड़े स्तर पर आंदोलन की तैयारी में हैं. संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने वालों की सूची में भीमराव अंबेडकर का नाम सबसे ऊपर दर्ज है. भीमराव अंबेडकर करोड़ो लोगो के लिए आदर्श और प्रेरणास्रोत हैं ऐसे में गृहमंत्री अमित शाह के द्वारा अपमान जनक व्यवहार पर आक्रोश बढ़ता जा रहा है. राजनैतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि यह घटना जनता का ध्यान भटकाने के लिए आयोजित की गई. सदन में अंबेडकर के अपमान की घटना के बाद बीजेपी सांसद ने विपक्ष के नेता राहुल गांधी पर धक्का मुक्की का आरोप लगाया और वे हॉस्पिटल में भर्ती हो गए. बीजेपी के सांसदों ने विपक्ष को सदन के अंदर जाने से रोका. लाठी डंडे लेकर बीजेपी के सांसद क्यों खड़े थे ? क्या भीमराव अंबेडकर सिर्फ दलितों के मसीहा थे ? अंबेडकर ने मानवता की बात की थी और दलितों को लोकतांत्रिक अधिकार दिलाने की बात की थी क्या ऐसा करना उचित नहीं था ? समाज के कुछ वर्ग किसी वर्ग का सामाजिक शोषण नहीं कर सकते. इस बात की पैरवी भीमराव अंबेडकर ने की थी. लेकिन बीजेपी के वरिष्ट नेता गृहमंत्री अमित शाह ने अपने बयान में मन की बात कर दी. जब मन की बात जुबा पर आई है तो हंगामा मचना तय है. देश भर के दलित अब सड़कों पर होंगे और आंदोलनात्मक प्रदर्शन से अपनी बात आगे पहुचाएँगे.
भीमराव अंबेडकर के अपमान के बाद दलित वोट बैंक से बीजेपी को आगामी चुनाव में भारी नुक़सान उठाना पड़ेगा. क्योंकि भीमराव अंबेडकर ने दलितों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी . सामाजिक समरसता कायम करने के लिए और जाति व्यवस्था को खत्म करने के लिए भीमराव अंबेडकर मील का पत्थर हैं. इसलिए भीमराव अंबेडकर के अपमान का मामला बीजेपी को भारी पड़ेगा. समता, समानता और न्याय की बात करने वाले नेता का अपमान कोई भी नागरिक सहन नहीं कर सकता. क्योंकि भीमराव अंबेडकर सभी राजनैतिक दलों के लिए पूज्य थे और रहेंगे. अब गृहमंत्री अमित शाह देश से माफ़ी माँग लें तो भी यह मुद्दा शांत होने वाला नहीं है. इसका परिणाम आने वाले दिनों में और ज़्यादा भयावह होगा. इस बात को बीजेपी के रणनीतिकार जितनी जल्दी समझ लें उनके लिए अच्छा होगा. भीमराव अंबेडकर के अपमान का मामला और तूल पकड़ेगा.

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डिजिटल अरैस्ट से डरें नहीं जागरूक बनें : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10514?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25a1%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%259f%25e0%25a4%25b2-%25e0%25a4%2585%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%2588%25e0%25a4%25b8%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%259f-%25e0%25a4%25b8%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%25a1%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%2582-%25e0%25a4%25a8%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2580 https://swarswatantra.in/archives/10514#respond Thu, 12 Dec 2024 03:22:30 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10514 इंटरनेट की दुनियां में साइबर ठगी एक नए धंधे के रूप में उभरता बिनजैस है। यह धंधा अवैध है इसको रोकने के लिए कानून में साइबर सैल गठित किए हैं जहां रिपोर्ट करने के बाद जांच पड़ताल होती है। इंटरनेट डिजिटल अरैस्ट का नाम सुनते ही बड़े नामी गिरामी लोग सतके में आ जाते हैं। ... Read more

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इंटरनेट की दुनियां में साइबर ठगी एक नए धंधे के रूप में उभरता बिनजैस है। यह धंधा अवैध है इसको रोकने के लिए कानून में साइबर सैल गठित किए हैं जहां रिपोर्ट करने के बाद जांच पड़ताल होती है। इंटरनेट डिजिटल अरैस्ट का नाम सुनते ही बड़े नामी गिरामी लोग सतके में आ जाते हैं। पुलिस, सीअीआई, ईडी का भय उनको सताने लगता है और फिर वे फसने लगते हैं साइबर ठगो के जाल में। हाल में बिहार के एक नामी डाॅक्टर साहब के पास ऐसा ही एक साइबर धोखाधड़ी से जुड़ा काॅल आता है। ठग डाॅक्टर साहब को ईडी का अधिकारी बनकर कहते हैं कि उनके नाम से एचडीएफसी बैंक में एक खाता खोला गया है और उस खाते में मनी लांड्रिंग का पैसा जमा है। ईडी का नाम सुनकर डाॅक्टर डर जाता है और करीब 126 अलग-अलग बैंक एकाउंट में 4.40 करोड़ रूपए ठगों के खाते में जमा कर देता है। जब तक डॉक्टर को साइबर फ्राड के बारे में पता चलता तब तक ठगों का फोन बंद हो चुका था और धन राशी भी गायब हो चुकी थी। ऐसे सैकड़ों उदाहरण साइबर ठगी के नाम पर रोज दर्ज हो रहे हैं। साइबर ठगी से बचने का कोई तो उपाय होगा ? इस सवाल का फिलहाल एक ही जवाब है जागरूकता। इंटरनेट के भवसागर में अच्छी और बुरी दोनों बातें हैं उपभोक्ता की जागरूगता और जानकारी ही उसे साइबर ठगों से बचा सकती है। नेटफिलिक्स पर जमताड़ा नाम से एक सरीज भी आई थी जिसमें साइबर ठगी को विस्तार से दिखाया गया है।
साइबर ठगी में लाॅटरी, इंटरनेट गेम, क्रिकेट सट्टा, डिजिटल अरैस्ट, हनी ट्रैप जैसे कई प्रकार के मामले सामने आ रहे हैं। साइबर ठगों ने अपने स्टूडियो बना लिए हैं, अब वे नकली विभाग, नकली आई डी, आदि से लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। साइबर ठगों के लिए नकली बैंक एकाउंट खाता, आधार कार्ड, वेब साइड, ईमेल आई डी बनाना बहुत आसान कैसे हो जाता है यह एक गंभीर सवाल है। जबकी आम आदमी को एक अदद आधार कार्ड संशोधन कराने के लिए दिल्ली तक के चक्कर लगाने पड़ते हैं। बैंको में ईकेवाईसी कराते-कराते लोग परेशान हैं। लेकिन साइबर अपराध से जुड़े ठगों के लिए सब कुछ आसान है। विज्ञान और तकनीक का दंभ भरने से क्या फायदा जब हमारे आसपास ही करोड़ो का गबन करने वाले इंटरनेट अपराधी खुले घूम रहे हों। सिस्टम के सामने एक बड़ी चुनौती साइबर ठगी के रूप में आज मौजूद है।
अब आम व खास जन क्या करें ? कैसे खुद को साइबर ठगी से बचाए ? साइबर ठगों ने जनता की कमजोर नस को पकड़ लिया है। भयानक बेरोजगारी के दौर में हर कोई चाहेगा कि उसका ईमान ड्रीम इलेवन में आ जाए, लेकिन करोड़ों में कोई एक होता है जिसका ईनाम निकलता है। इसका फायदा साइबर ठगों ने निकाल लिया है। फेसबुक और अन्य शोसल मीडिया प्लेट फाॅर्म में तमाम तरह के फेक विज्ञापन चलते रहते हैं। कमिशन दो और ईनाम वाली टीम बनाओ। यह एक खुला फा्रड है। साइबर ठग व्हट्सअप काल के जरिए जुड़ते हैं और सामने वाले को फेक टीम प्रोवाइड कराते हैं बदले में अपने एकाउंट में पैंसा मंगवाते हैं। पैसा ट्रांसफर होते ही ठग गायब हो जाता है। लाॅटरी का खेल भी इसी तर्ज पर चलता है। आपके पास एक काॅल आती है और आपसे कहा जाता है कि आपके मोबाइल नंबर पर बम्पर लाॅटरी निकती है। सुनने वाला खुश हो जाता है और लाॅटरी के लालच में साइबर ठग के एकाउंट में पैसा डाल देता है। लेकिन यहां भी निराशा ही हाथ लगती है।
इन सब तरीकों के बाद साइबर ठगों ने ठगी का एक नया तरीका खोज लिकाला। पिछले एक दशक में समाज में ईडी और सीबीआई का खौफ बढ़ गया है। बहुत से मामलों में कई निर्दोष लोगों को सालों तक जेल में सजा काटनी पड़ी है। हमारी न्यायिक व्यवस्था बहुत धीमी है जिसकार खामियाजा ईडी सीबीआई जैसे विभाग राजनैतिक लाभ के लिए लेते रहे हैं। अखबारों के संपादक, सांसद, अधिकारी पत्रकार तक ईडी सीबीआई के शिकार बने हैं और इनमें से कई लोगों को अदालत ने बाद में सबूतों के आभाव में छोड़ दिया। इसका असर समाज में भय के रूप में पड़ा और इसी बात का लाभ साइबर ठगों ने उठाया। साइबर ठगों ने सारा सिस्टम ही बना डाला। साइबर ठगी के नकली साम्राज्य से बचने का सबसे आसान तरीका है। निडरता और जानकारी। अनजान लोगों से इंटरनेट पर मित्रता ना बढ़ाएं, किसी को अपना ओटीपी साझा ना करें, धन कमाने के लालच में ना आए, खुद पर भरोसा रखें, इंटरनेट की खबरों का सत्यापन करें उन पर आंख मूंद कर भरोसा ना करें। साइबर ठगी का शिकार होने से बचे। क्योकी जागरूकता और जानकारी ही बचाब है।

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उत्तराखंड बन रहा है नशे का हब: विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10506?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2589%25e0%25a4%25a4%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25a4%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%2596%25e0%25a4%2582%25e0%25a4%25a1-%25e0%25a4%25ac%25e0%25a4%25a8-%25e0%25a4%25b0%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%25b9%25e0%25a5%2588-%25e0%25a4%25a8%25e0%25a4%25b6%25e0%25a5%2587-%25e0%25a4%2595%25e0%25a4%25be https://swarswatantra.in/archives/10506#respond Mon, 09 Dec 2024 02:16:05 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10506 उत्तराखंड सरकार ने राज्य में पलायन आयोग बनाया। लेकिन पलायन नहीं रुका,गांव के गांव खाली हो गए। अल्मोड़ा जनपद के भिकियासैंण ब्लॉक को तो घोस्ट ब्लॉक की संज्ञा दे गई। रोजगार के नाम पर नदी का रेता, और टूरिस्ट सीजन में टैक्सी संचालन और होटल ही तो हैं जो उत्तराखंड में थोड़ा बहुत रोजगार उपलब्ध ... Read more

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उत्तराखंड सरकार ने राज्य में पलायन आयोग बनाया। लेकिन पलायन नहीं रुका,गांव के गांव खाली हो गए।
अल्मोड़ा जनपद के भिकियासैंण ब्लॉक को तो घोस्ट ब्लॉक की संज्ञा दे गई। रोजगार के नाम पर नदी का रेता, और टूरिस्ट सीजन में टैक्सी संचालन और होटल ही तो हैं जो उत्तराखंड में थोड़ा बहुत रोजगार उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा रोजगार के साधन न्यूनतम हैं। मनरेगा स्कीम का काम ठप्प पड़ा है। छोटे और मझौले रोजगार बंद हैं। जनता तो आधार कार्ड सत्यापन, संशोधन जैसे कठिन कार्यों में व्यस्त है जो लोग प्रश्न कर रहे हैं उनको लाभार्थी योजना से चुप कराने का प्रबंध भी सरकार के पास है। राजनैतिक दलों को अपने बूथ और पन्ना प्रमुख मजबूत करने हैं उनको जल, जंगल, जमीन के मुद्दों से क्या लेना देना। शराब जैसे मुद्दे भी आमजन के लिए मायने नहीं रखते। आश्चर्य की आमजन उस दिन ज्यादा मदिरा सेवन करता है जब ड्राइ डे होता है। ब्लैक में शराब बेची जाती है और लोग ज्यादा भुगतान करके शराब पीते हैं। समाज के कुछ ज्ञानी लोग शराब को रोजगार से जोड़ते हैं, किसी गरीब का रोजगार चल रहा है कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं। विकासखंड मुख्यालय से सटे हुवे गावों में भी फुटकर शराब खुलेआम बेची जाती है। इन क्षेत्रों की महिलाएं खासा परेशान होती हैं, शराबियों की हरकतें और घरेलू हिंसा के प्रभावों को महिलाएं चुप चाप सहन करती हैं। लेकिन महिलाओं की ये चुप्पी एक दिन जरूर टूटेगी तब तक वे शराब का श्राप सहती रहेंगी।
विकास कार्य कागजों में हैं या फिर पार्टी कार्यकर्ताओं की तिजोरियों में। धरातल में मौजूद हैं सड़क के गढ्ढे, दुर्घटनाए, आम जन का संघर्ष। ऐसे में सवाल तो बनता है कि सरकार के पास सटीक विकास योजनाएं क्या हैं ?
सरकार देव भूमि के नाम पर खूब प्रवचन कर ले लेकिन नमामी गंगे परियोजना से हमारी नदियां तो साफ स्वच्छ नहीं हुई, हां नेताओं के बंगलो में स्विमिंग पूल जरूर बन गए। अब सबसे संवेदनशील मुद्दे को देखें जो लाखों परिवारों के लिए बरबादी का कारण भी बना है। वह है उत्तराखंड में बढ़ता नशे का व्यापार। नगरों में लगातार खुलने वाले शराब के ठेके और बार।
सरकार देव भूमि में शराब के कारोबार को क्यों बढ़ावा दे रही है इसका एक जवाब तो है शराब से पैदा होने वाला राजस्व। लेकिन राजस्व कमाई के फेर में बरबादी का मंजर किसी को नहीं दिखता। दिवाली के सीजन में गरुड़ विकास खंड के देवनाइ क्षेत्र में एक व्यक्ति ने नशे की लत के कारण सात समूमों की जिंदगी लील ली। उस दर्दनाक घटना से सारा जिला सतके में रहा। सड़क पर चलते हुए डर लगता है, शराब पीकर तेज गति से बाइक दौड़ाते, कार ड्राइव करते लोग दूसरों के लिए खतरा बन रहे हैं। नशे के सैकड़ों दुष्प्रभाव हमारे सामने हैं लेकिन नीति नियंताओं को यह सब नहीं दिखता है।
आंकड़े क्या कहते हैं, आबकारी नीति 2024 के तहत, प्रदेश में देशी-विदेशी शराब की कुल 628 दुकानों का आवंटन किया गया है. इनमें से 544 दुकानों का आवंटन हो चुका है. वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए आबकारी विभाग ने 4,440 करोड़ रुपये का राजस्व लक्ष्य रखा है।
क्यों नहीं सरकार आबादी के अनुसार शराब के ठेके और बार खोलने की नीति पर पुनर्विचार करती है? बाबा बागनाथ के समीप बागेश्वर नगर में करें एक दर्जन शराब की दुकानें हैं। गरुड़ विकासखंड में 6 दुकानें हैं। खबर है कुछ और बार खुलने वाले हैं। स्थानीय नागरिकों के विरोध के बाद भी शराब की दुकानें खुल रही हैं। गावों में फुटकर रूप से देशी विदेशी आर्मी कैंटीन की शराब का मिलना बहुत आसान हो गया है। दूर दराज के गावों में सड़क गई तो अवैध रूप से शराब कारोबार ने गति पकड़ ली। ऐसा नहीं कि प्रशाशन को ये सब बातें नहीं मालूम। उनके पास खूफिया तंत्र हैं, गावों में ग्राम प्रहरी हैं जो सूचनाओं का प्रसार करते हैं। बावजूद इसके नशे से नाश का धंधा खुले आम धड़ल्ले से जारी है।

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तल्लीहाट पेयजल योजना अधर में : विपिन जोशी https://swarswatantra.in/archives/10472?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%25a4%25e0%25a4%25b2%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b2%25e0%25a5%2580%25e0%25a4%25b9%25e0%25a4%25be%25e0%25a4%259f-%25e0%25a4%25aa%25e0%25a5%2587%25e0%25a4%25af%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25b2-%25e0%25a4%25af%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%259c%25e0%25a4%25a8%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%2585%25e0%25a4%25a7%25e0%25a4%25b0 https://swarswatantra.in/archives/10472#respond Tue, 19 Nov 2024 02:30:49 +0000 https://swarswatantra.in/?p=10472 घर घर जल योजना में घोर लापरवाही घर घर नल घर घर जल योजना में लापरवाही की दर्जनों खबरें आए दिन मीडिया में छपास पा रही हैं. गाँव गांव में पाइप लाइन तो बिछा दी गई हैं लेकिन इन पाइप लाइनों में जल कब प्रवाहित होगा इसका कुछ पता नहीं. तैलीहाट गांव में दो साल ... Read more

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घर घर जल योजना में घोर लापरवाही
घर घर नल घर घर जल योजना में लापरवाही की दर्जनों खबरें आए दिन मीडिया में छपास पा रही हैं. गाँव गांव में पाइप लाइन तो बिछा दी गई हैं लेकिन इन पाइप लाइनों में जल कब प्रवाहित होगा इसका कुछ पता नहीं.
तैलीहाट गांव में दो साल पूर्व पाइप लाइन बिछ चुकी हैं. नदी किनारे पंप और फिल्टर भी लग चुका है. विद्युत लाइन लग चुकी है लेकिन पानी की सप्लाई कब होगी यह सवाल बना हुआ है. संबंधित विभाग के जेई से बात की तो पता चला कि मामला विधुत विभाग के पाले में अटका पड़ा है. जल संस्थान ने विधुत विभाग को कनेक्शन लगवाने की राशी जमा कर दी है. बावजूद इसके अभी तक विधुत विभाग ने विद्युत कनेक्शन नहीं जोड़ा है. जल संस्थान के अधिकारी का कहना है यदि कनेक्शन जुड़ा होता तो सप्लाई हेतु टैंक निर्माण शुरू हो जाता.
सम्बंधित विभाग एक दूसरे पर आरोप लगा कर योजना की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहे हैं और ग्रामवासी पेयजल के लिए कभी तहसील तो कभी जल संस्थान के चक्कर काट रहे हैं. पेय जल के लिए स्वजल योजना पर आश्रित गांव प्रतिदिन संघर्ष करता है सक्षम लोगों ने स्वजल की लाइन से प्राइवेट कनेक्शन लिए हैं लेकिन बाकी लोग स्टैंड पोस्ट से पानी एकत्र करने के संघर्ष से जूझ रहे हैं. ये परेशानी गर्मियों और सर्दियों में बनी रहती है. घर घर नल योजना ने ग्रामीणों को एक उम्मीद जगाई थी लेकिन अब इस उम्मीद पर भी निराशा के बादल मडराने लगे हैं.
यही स्थिति बैजनाथ नगर पंचायत की भी है. यहां वृहद पेयजल योजना का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है. ग्रामीण आक्रोशित हैं. तहसील दिवस पर अपनी समस्याओं को लिखित रूप से दर्ज करवाने के बाद भी पेयजल विभाग की लापरवाही बनी हुई है.

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