उत्तराखंड के बहुत से गांव अब तक मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं। जनपद बागेश्वर के कपकोट क्षेत्र का बघर गांव भी सुविधाओं से वंचित गांवों की सूची में आता है। गरुड़ विकास खंड मुख्यालय से करीब 75 किमी. की थकान भरी यात्रा के बाद बघर गांव आता है। कपकोट ब्लॉक का यह एक दुर्गम क्षेत्र है। ऐसे में पलायन पर चिंतन और गहरा जाता है। सूचना तकनीकी और इंटरनेट के युग में बघर गांव के निवासी सड़क, संचार, राशन की दुकान, स्टेशनरी शाप से भी वंचित हैं।
ग्रामीणों का जीवन खेती-बाड़ी पर निर्भर है , खेती-बाड़ी में भी सिर्फ वही अनाज होता है जिसकी उपज वहां की मिट्टी तथा आबोहवा के अनुकूल हो यानी मोटा अनाज यहां प्रचुर मात्रा में उगता है।
चाह कर भी अगर किसी को अच्छी दाल खाने का मन है तो वह भी नहीं खा सकता है। आलू की सब्जी खाने के लिए भी उन्हें सौ बार सोचना पड़ता है। इसका कारण जानने पर पता चला कि ग्रामीण बघर से 45 किलोमीटर का सफर तय करते हैं पास की एक मार्केट भराड़ी से पसंदीदा सब्जी, राशन खरीदते हैं। लेकिन हर बार उनके लिए भराड़ी जाना मुश्किल होता है। इसलिए रूखी सूखी खाकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
हमने गांव में महिलाओं और किशोरियों से बात की तो उन्होंने अपने मन की बात साझा करते हुए कहा कि उनका जीवन कष्टों से भरा है। महिलाओं और किशोरियों को तो यह भी एहसास नहीं है कि उनके आसपास को स्थिति कितनी भयावह है, मुख्य धारा से कटे हुवे से रहते हैं। बघर के अधिकतर लोग अपने इस असुविधाजनक क्षेत्र को बहुत ही सुविधाजनक क्षेत्र मानते हुए मजबूरी में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वह बस इतना ही देख रहे हैं जितना वह देखना चाहते हैं । उससे बाहर की जिंदगी ना तो अभिभावक देख रहे हैं और ना ही वह अपने बच्चों को दिखाना चाह रहे हैं।
एक अचंभे की बात यह भी है कि बघर गांव में राशन की दुकान भी नहीं है। बच्चों के लिए सामान्य सी स्टेशनरी की दुकान भी यहां नहीं है। लेकिन यहां शराब का बिजनेस बराबर चलता है। लोग बहुत रिस्क उठाकर बाजार जाकर शराब और मादक पदार्थो को गांव में सप्लाई करते हैं। नशे का कारोबार जोरों पर है तो दूसरी ओर शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, संचार जैसे जरूरी संसाधन गांव से नदारद है।
औरतों सुबह तड़के उठकर बहुत ऊंची ऊंची पहाड़ियों को पार कर घास कटती हैं। और इस बीच अगर कभी उनका पैर फिसल गया या कोई दुर्घटना हो गई तो वहां अस्पताल की भी सुविधा नहीं है। ऐसे में पीछे कुआ आगे खाई वाली बात हो जाती है। मगर गांव की महिलाओं और किशोरियों की पूरी जिम्मेदारी घरेलू कामकाज की है। अधिकांश पुरुष तो दिनभर कभी रोड के किनारे बैठकर जुआ खेलते नजर आते हैं या फिर नदियों में पत्थर तोड़ते हुए । इसके अलावा उनका और कोई तीसरा काम नहीं है । ऐसे में किशोरिया अपने आसपास कोई ख्वाब नहीं देख पा रही है। ख्वाब शिक्षा का हो या अच्छी नौकरी का, ख्वाब बस ख्वाब बन कर रह जाता है।
किशोरियों का कहना है कि क्या ही करेंगे हम सपने देखकर जब हमारे सपने पूरे ही नहीं होने हैं ऐसी निराशावादी, उदासीन बातों को सुनकर वास्तव में मन बहुत उदास हो जाता है । एक ओर तो हम बात करते हैं बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की, ग्रामीण क्षेत्रों में बेटियां मां के गर्भ से तो बच जा रही हैं परंतु आगे नहीं बढ़ पा रही है। जीवन का चक्र बस घूम ही रहा है । उनकी पुरानी पीढ़ी की तरह और उसके बाद कहानी खत्म।
देखा जाए तो जाए तो युवा पीढ़ी का भविष्य अंधकारमय है। जो लोग थोड़ा नौकरी वाले हैं वह अपने बच्चों को बाहर पढ़ने के लिए भेजते हैं। बाकी लोगो का का जीवन असुविधाओं के बीच घिरा हुआ है। साथ में अशिक्षा, अंधविश्वास, जातिवाद, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और कई अन्य मुद्दो यहां गहरे रूप में मौजूद हैं। इन समस्याओं के अलावा, भारतीय गावों में आवास, बिजली और पानी की समस्या आम बात हैं। गाँव में कच्चे घर होते हैं। कच्चे घर कमजोर होते हैं और हमेशा इनके टूट जाने का ख़तरा बना रहता है। बरसात में आपदा का कहर भी इन पर हर वर्ष बरसता है।
Recent Posts
गरुड़ मल्टी लेवल पार्किंग मामला खटाई में : विपिन जोशी
मार्च 11, 2025
कोई टिप्पणी नहीं

यहां कठिनाइयों से गुज़रती है ज़िंदगी
मार्च 4, 2025
कोई टिप्पणी नहीं
네 개의 NFL 라이브 스트림 만우절
मार्च 1, 2025
कोई टिप्पणी नहीं

सफलता के टिप्स देंगे ग्यारह अनुभवी विद्वान शिक्षक
मार्च 1, 2025
कोई टिप्पणी नहीं

महिलाओं के लिए रोज़गार का माध्यम है नया बाजार
फ़रवरी 28, 2025
कोई टिप्पणी नहीं